नई दिल्ली: GST, जिसे सरकार गुड ऐंड सिंपल टैक्स बताती है और विपक्ष के नेता इसे गब्बर सिंह टैक्स कहते हैं. हम आपको बताते हैं कि GST से कारोबारियों को कितनी आसानी हुई और कितनी परेशानी बढ़ी.


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मोदी सरकार के 8 सालों का टैक्स सिस्टम


30 जून 2017, मध्य रात्रि.. आजाद भारत के इतिहास में पहली बार आधी रात को संसद के सेंट्रल हॉल में ये हलचल उस कानून को लागू करने के लिए थी, जो देश में अर्थ-व्यापार की दिशा बदलने वाला था.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कुछ देर बाद नई व्यवस्था में कदम रखने जा रहे हैं. पांच सौ तरह के टैक्स नहीं, अब जीएसटी.. वन नेशन वन टैक्स होगा.


वन नेशन, वन टैक्स यानी जीएसटी, प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल का ये सबसे बड़ा फैसला था. जिस पर बैठकों का दौर तो 2002 में ही शुरू हो गया था, लेकिन इस राज्यों को राजी करने और कारोबारियों की नाराजगी झेलने की हिम्मत सिर्फ मोदी सरकार ने दिखाई.


शुरुआत में हर कोई जीएसटी से परेशान था. प्रधानमंत्री मोदी जिसे गुड ऐंड सिंपल टैक्स बता रहे थे, वो शुरुआत में लोगों जटिल ही लगा, लेकिन धीरे-धीरे कारोबारियों और उद्योगपतियों को जीएसटी का फायदा समझ में आने लगा.


लोगों को फायदा हुआ या नुकसान?


ज़ी मीडिया ने जीएसटी को लेकर मोदी सरकार की नीतियों का लोगों पर कैसा असर पड़ा है, ये जानने के लिए कई उद्योगपति, व्यापारी और तरह-तरह के लोगों से बात की. उद्योगपति चंदन शर्मा ने बताया कि वैट के दौरान टैक्स चोरी की परेशानी होती थी. उन्होंने हमसे अपनी आपबीती भी सुनाई.


वहीं आगरा के व्यापारी पीयूष शर्मा ने कहा कि पहले बहुत सी फाइलें इकट्ठी करनी पड़ती थीं, अब समय बचता है.


अर्थशास्त्री राजन मट्टा ने कहा कि 'जीएसटी से टैक्स कलेक्शन में बढ़ोतरी हुई.'


जूता फैक्ट्री मालिक राजाराम यादव ने जीएसटी को लेकर कहा कि 'पहले बहुत करना पड़ता था, सोल में भी करना पड़ता था, लेदर में भी करना पड़ता था.'


जीएसटी लागू होते समय सबसे बड़ी चिंता यही थी कि टैक्स रिटर्न कैसे दाखिल होगा? आज भी ये ऐसी पहेली है, जो किसी को आसान लगती है, तो किसी के लिए बहुत मुश्किल..


कारोबारी दिनेश बाली ने इस मसले को लेकर ज़ी मीडिया से बातचीत में कहा कि 'जीएसटी में थोड़ा फायदा, लेकिन रिटर्न फाइल करने में परेशानी होती है.'


वहीं कारोबारी अमित आहूजा ने कहा कि 'दिक्कत कि हमने जिसको माल बेचा, उसने जीएसटी भरा या नहीं..'


जम्मू के एक दुकानदार ने बताया कि 'रिटर्न फाइल करना बिल्कुल आसान है. मोबाइल या कंप्यूटर से कर सकते हैं. मेरा बेटा फाइल कर देता है, जो अभी कॉलेज में है.'


आगरा के व्यापारी सौमित्र वर्मा ने बताया कि टैक्स स्लैब समझने में परेशानी हो रही है. वहीं कारोबारी अमित आहूजा का कहना है कि 'कभी एक्ट बदल जाता है, कभी कुछ, चार्टर्ड अकाउंटेंट की फीस भरनी पड़ती है.'


कारोबारी बृज गोपाल खोसला ने भी अपनी समस्या गिनाते हुए बोला कि 'सिम्प्लीफिकेशन होना अभी बाकी है, लगातार बदलाव से अपडेट रहना चुनौती है.'


विपक्ष ने जीएसटी पर साधा निशाना


जीएसटी से जुड़ी ये परेशानियां विपक्ष को नाकामी नजर आती हैं, जबकि सत्ता पक्ष और अर्थशास्त्रियों की नज़र में जीएसटी का फायदा इन छोटी-मोटी दिक्कतों से कहीं ज़्यादा बड़ा है.


कांग्रेस महासचिव अविनाश पांडे ने कहा कि 'जीएसटी कांग्रेस की परिकल्पना थी, जिसे उन्होंने गब्बर सिंह टैक्स बना दिया है.' वहीं 


बीजेपी एमएलसी निरंजन दवखरे ने उनका जवाब देते हुए कहा कि 'जीएसटी से इंटरस्टेट कारोबार आसान हुआ है.'


आर्थिक मामलों के जानकार सुनील शाह का मानना है कि जीएसटी से टैक्स चोरी रुक गई है. इसके अलावा अर्थशास्त्री राजन मट्टा का कहना है कि जीएसटी से जीडीपी में भी बढ़ोतरी हो रही है.


जीएसटी लागू होने से ठीक पहले देश में अप्रत्यक्ष कर यानी VAT, CESS और एक्साइज़ ड्यूटी से कुल 8 लाख 66 हज़ार करोड़ का राजस्व मिला था. जबकि GST लागू होने के बाद 2017-18 में अप्रत्यक्ष कर की रकम 9 लाख 41 हज़ार करोड़ से ज़्यादा थी. जो कोरोना संकट के बावजूद वर्ष 2020-21 में 11 लाख करोड़ के पार चला गया.


आंकड़ों में तो जीएसटी देश की आर्थिक सेहत के लिए फायदेमंद है, लेकिन अभी आम लोगों को इसका पूरा फायदा मिलना बाकी है. पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की महंगाई की वजह भी यही है कि ये अभी जीएसटी के दायरे में नहीं हैं, इसलिए डबल टैक्स यानी केंद्र को एक्साइज ड्यूटी और राज्यों को वैट देना पड़ता है.


पेट्रोल-डीजल पर टैक्स की ये दरें कुल मिलाकर 50 प्रतिशत से अधिक हैं, जबकि जीएसटी की सबसे ऊंची दर भी 28 प्रतिशत ही है. पेट्रोल-डीज़ल को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए राज्य सरकारें तैयार नहीं हैं.


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