`फंस गए रे चाणक्य`... अमित शाह ने `अंबेडकर` के मुद्दे पर विपक्ष को कैसे दे दिया बड़ा मौका?
Ambedkar Amit Shah Controversy: विपक्ष ने भाजपा की सबसे कमजोर नब्ज पकड़ ली है. दलित वोट बैंक पर हुई सियासत में भाजपा पहले भी दो बार गच्चा खा चुकी है. अब एक बार फिर गृह मंत्री शाह के बयान से भाजपा की मुश्किलें बढ़ गई हैं.
नई दिल्ली: Ambedkar Amit Shah Controversy: अंबेडकर के मुद्दे पर संसद में सियासत तेज हो गई है. आज संसद में शीतकालीन सत्र का आखिरी दिन है, इसके बाद विपक्ष 'अंबेडकर' के मुद्दे पर सड़क पर भी नजर आ सकता है. आज भी विपक्षी दल विजय चौक से संसद तक पैदल मार्च निकालकर अपना विरोध दर्ज करवाने वाले हैं. इंडिया गठबंधन द्वारा एक बार फिर लोकसभा चुनाव जैसा माहौल बनाने की कोशिश हो रही है. दूसरी ओर, भाजपा को इसकी चिंता है कि जैसे लोकसभा चुनाव में दलित वोटर छिटका, कहीं वैसे ही राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी न छिटक जाए.
क्या बोल गए थे अमित शाह?
सोशल मीडिया पर गृह मंत्री अमित शाह की एक 12 सेकेंड की क्लिप वायरल है. करीब-करीब सभी विपक्षी दलों ने इस क्लिप को शेयर करते हुए अमित शाह पर निशाना साधा है. इसमें शाह कह रहे हैं- 'अभी एक फैशन हो गया है. अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर... इतना नाम भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता.' अब विपक्ष का कहना है कि शाह को अंबेडकर के नाम से दिक्कत क्यों हैं. विपक्ष ने इस बयान के लिए शाह से माफी मांगने और गृह मंत्री के पद से इस्तीफा देने की मांग की है.
शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की, डिफेंसिव नजर आए
अमित शाह ने इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस की. ये पहली बार था जब शाह अपने द्वारा दिए गए किसी बयान पर स्पष्टीकरण देने के लिए मीडिया के सामने आए. वह आक्रामक राजनीति करने वाले नेता हैं, आमतौर पर विपक्ष पर हमला बोलने के लिए ही प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं. शाह ने कहा- 'कल से कांग्रेस ने जिस प्रकार तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर रखने का प्रयास किया है. ये निंदनीय है. मैं इसकी निंदा करना चाहता हूं. मैं मीडिया से भी अनुरोध करना चाहता हूं कि वह मेरा पूरा बयान जनता के सामने रखें, मैं उस पार्टी से हूं जो कभी अंबेडकर जी का अपमान नहीं कर सकती.' लंबे समय बाद शाह अपने द्वारा कही गई किसी बात पर डिफेंसिव नजर आए.
पिछली गलतियों से नहीं लिया सबक
पहला वाकया: 2015 में RSS चीफ मोहन भागवत के एक बयान से भी मुश्किलें खड़ी हो गई थीं. भागवत ने कहा था- 'आरक्षण पर राजनीति हो रही है और इसका दुरुपयोग किया जा रहा है. इसे देखते हुए आरक्षण पर फिर से विचार करने की जरूरत है. इसके लिए एक कमेटी बने जो तय करे कि कितने लोगों को कितने समय तक आरक्षण मिलना चाहिए.' तब बिहार विधानसभा के चुनाव थे, लालू यादव ने इस मुद्दे को लपक लिया और प्रचारित किया कि भाजपा आरक्षण के खिलाफ है. नतीजतन, 2014 में भारी बहुमत से केंद्र में सरकार बनाने वाली भाजपा महज एक साल बाद बिहार में चुनाव हार गई.
दूसरा वाकया: लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा के कुछ नेताओं ने कह दिया था कि पार्टी 400 सीटें इसलिए चाह रही है, ताकि संविधान में बदलाव किया जा सके. इनमें नागौर से भाजपा प्रत्याशी ज्योति मिर्धा और पूर्व केंद्रीय मंत्री अनंतकुमार हेगड़े का बयान भी शामिल है. विपक्ष ने प्रचारित किया कि भाजपा 400 सीटें लाकर आरक्षण हटाना चाहती है. 400 पार का नारा बैकफायर हुआ और भाजपा को इससे नुकसान हुआ. लोकसभा 84 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. भाजपा महज 30 सीटें जीत पाई. 2019 में भाजपा ने 46 सीटें जीती थीं. कांग्रेस 6 से बढ़कर 20 सीटें जीत गई.
भाजपा की कमजोर नब्ज
दो बार भाजपा के लिए दलित वोटर्स ने मुश्किलें खड़ी की, लेकिन फिर भी पार्टी इसका समाधान नहीं निकाल पा रही. भाजपा के सबसे कद्दावर नेता और सियासत के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह भी इस 'चक्रव्यूह' फंस गए. इंडिया ब्लॉक के हाथ भाजपा की कमजोर नब्ज लग गई. अब यही सियासी दांव इंडिया ब्लॉक आगामी विधानसभा चुनाव में भी चलेगा.
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