नई दिल्ली. भारतीय जनता पार्टी के नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने मांग की है कि आधिकारिक रिकॉर्ड्स में धर्म और रिलीजन के बीच अंतर किया जाए. उपाध्याय ने  दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की है, इसमें अदालत से 'धर्म' और 'रिलीजन' शब्दों के बीच स्पष्ट अंतर करने का आग्रह किया गया है.


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पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग
उपाध्याय की इस पीआईएल में प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में इस विषय पर एक अध्याय शामिल करने के लिए केंद्र और दिल्ली सरकारों को निर्देश देने की भी मांग की गई है.इस पहल का उद्देश्य जनता को शिक्षित करना और धर्म-आधारित घृणा और नफरत भरे भाषणों का मुकाबला करना है.


'धर्म' और 'रिलीजन' के अलग-अलग अर्थ हैं
याचिका इस बात पर जोर देती है कि 'धर्म' और 'रिलीजन' के अलग-अलग अर्थ हैं, और इस अंतर को पहचानना जरूरी है. जनहित याचिका केंद्र और दिल्ली सरकारों को उपाध्याय की व्याख्या के अनुसार धर्म की उचित परिभाषा का उपयोग करने के लिए निर्देश देने की मांग करती है, जो 'रिलीजन' को 'पंथ या संप्रदाय' के बराबर मानती है, न कि धर्म के.


क्या कहती है याचिका
याचिका में कहा गया है-याचिकाकर्ता सम्मानपूर्वक प्रस्तुत करता है कि 'धर्म' और 'रिलीजन' का पूरी तरह से अलग अर्थ है, लेकिन केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारी और कर्मचारी न केवल जन्म प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, स्कूल प्रमाणपत्र, राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों में धर्म शब्द का उपयोग धर्म के पर्याय के रूप में करते हैं.धर्म रिलीजन से अलग है, इसे एक 'आदेश देने वाला सिद्धांत' के रूप में वर्णित किया गया है जो किसी के विश्वास या पूजा के तरीकों से स्वतंत्र रूप से संचालित होता है.


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