नई दिल्लीः बीते दो हफ्तों से Corona के कहर के बीच Black Fungus भी खौफ की वजह बना हुआ है. डर का स्तर यह है कि कोरोना से तेज मृत्युदर इसमें देखी गई है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बीते कुछ दिनों में कोरोना के मामलों में कमी आनी शुरू हुई है, लेकिन दूसरी तरफ संक्रमण को मात देने वाले कई लोग ब्लैक फंगस/म्यूकरमाइकोसिस के शिकार बन रहे हैं.


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इसे लेकर एक भ्रम की स्थिति भी बनी हुई है. हालांकि एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने ब्लैक फंगस को लेकर एक बड़ा भ्रम दूर किया है. 


संपर्क से नहीं होता ब्लैक फंगस
दरअसल, एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने सोमवार को कहा कि ब्लैक फंगस एक फंगल इन्फेक्शन है, जो कि संक्रामक रोग नहीं है, यानी यह किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वाले दूसरे लोगों को नहीं होता है. 


कमजोर इम्यूनिटी होने पर खतरा अधिक
उन्होंने बताया कि कमजोर इम्युनिटी वालों को ब्लैक फंगस का खतरा अधिक है. उन्होंने कहा कि यह फंगस मुख्य तौर पर साइनस, नाक, आंखों के आसपास की हड्डियों में पाया जाता है और मस्तिष्क में प्रवेश कर सकता है. कभी-कभी यह लंग्स और गैस्ट्रोइन्टेस्टनल ट्रैक्ट में भी मिलता है.



डॉ. गुलेरिया ने यह भी कहा कि अलग-अलग हिस्सों में होने वाले फंगस का रंग भी अलग होता है. 


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साप्ताहिक संक्रमण दर में गिरावट
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सोमवार को बताया कि भारत में पिछले 17 दिनों से कोविड-19 के मामलों में तेजी से कमी आ रही है. मंत्रालय ने बताया कि पिछले 15 हफ्तों में नमूनों की जांच में 2.6 गुना की वृद्धि की गई है जबकि पिछले दो हफ्ते से साप्ताहिक संक्रमण दर में तेजी से गिरावट आ रही है.


महामारी के, बच्चों और युवाओं पर होने वाले असर के बारे में बात करते हुए दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने बताया, ‘‘ बच्चों को महामारी के बीच मानसिक तनाव, स्मार्टफोन की लत और शैक्षणिक चुनौतियों से अतिरिक्त नुकसान हुआ है.’’


मंत्रालय ने कहा कि अभी तक कोई संकेत नहीं मिला है कि कोविड-19 की तीसरी लहर से बच्चे गंभीर रूप से प्रभावित होंगे.


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