ब्लॉग: सीडब्ल्यूसी की बैठक और कांग्रेस का असमंजस
कांग्रेस ने संगठनात्मक चुनाव और मौजूदा राजनीतिक हालात पर चर्चा के लिए आगामी 16 अक्टूबर को कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक बुलाई है.
नई दिल्ली: कांग्रेस में लंबे समय से चल रही उठापटक और मंथन का परिणाम अब आना शुरू हो गया है. दरअसल कांग्रेस ने संगठनात्मक चुनाव और मौजूदा राजनीतिक हालात पर चर्चा के लिए आगामी 16 अक्टूबर को कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक बुलाई है. पार्टी के संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल ने शनिवार को ट्वीट कर यह जानकारी दी.
उन्होंने बताया कि सीडब्ल्यूसी की बैठक 16 अक्टूबर को सुबह 10 बजे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय में होगी. वेणुगोपाल ने ट्वीट कर कहा कि इस बैठक के एजेंडे में देश की "वर्तमान राजनीतिक स्थिति", "आगामी विधानसभा चुनाव" और पार्टी के संगठनात्मक चुनाव शामिल होंगे.
नहीं थम रही उठापटक
फिलहाल 16 अक्टूबर को कांग्रेस कार्य समिति की बैठक का फैसला स्वागतयोग्य है, लेकिन अब भी इस पूरे मामले में कांग्रेस असमंजस की स्थिति में दिख रही है.
चुनावों से पहले सियासी दलों में उठापटक देखने को मिलती रहती है. नेता किसी राजनीतिक दल का दामन थामते हैं तो किसी का छोड़ते हैं, लेकिन विधानसभा चुनावों के पहले कांग्रेसी नेताओं के बीच जैसी उठापटक देखने को मिल रही है, वह अभूतपूर्व है.
पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में सरकार होने के बावजूद कांग्रेस में कलह की खबरें सबके सामने हैं तो उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे चुनावी राज्यों में उसकी स्थिति बेहतर नहीं है.
जी 23 के नेता उठा रहे सवाल
इन सबके अलावा जी 23 के नेता पार्टी नेतृत्व के सामने लगातार सवाल खड़ा कर रहे हैं.
गौरतलब है कि सशक्त विपक्ष का अभाव किसी भी लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं होता. अपने यहां भी जब देश को एक सशक्त विपक्ष की सख्त जरूरत है, तब मुख्य दल होने का दावा करने वाली और लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस असमंजस से बुरी तरह ग्रस्त है.
दोराहे पर कांग्रेस
गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस न केवल कमजोर हुई है, बल्कि उसमें अनेक विसंगितयां भी घर कर गई हैं. उसका लगातार संगठनात्मक, विचारधारात्मक और नेतृत्वमूलक क्षरण होता गया है.
ऐसे में पार्टी की दिक्कत यह है कि विचारधारा, संगठन और शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर बदलाव की ऐसी कोई कवायद फिलहाल नजर नहीं आ रही है, जो इन कमियों से निजात दिलाए.
बता दें कि लोकसभा चुनाव के बाद से ही अध्यक्ष पद, यूएपीए कानून, कश्मीर, तीन तलाक समेत तमाम मौकों पर पार्टी नेता से लेकर कार्यकर्ता स्पष्ट तौर पर अपना पक्ष रखने में नाकाम रहे हैं.
ऐसे में संकट दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है. जानकार तो यह भी दावा कर रहे हैं कि ‘नेतृत्वविहीन’ कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. ऐसे में इस बैठक से भी बहुत उम्मीद रखना बेमानी लग रहा है.
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