नई दिल्ली. ऐसे तो आपने कई मंडियों और बाजारों के बारे में सुना और देखा होगा, जहां आपको कई अलग अलग तरह के सामान मिलते हैं. लेकिन बिहार के बेगूसराय में एक ऐसी मंडी भी लगती है, जहां कई राज्यों के लोग तो पहुंचते ही हैं, पड़ोसी देश नेपाल के जरूरतंद लोग भी यहां आते हैं.


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बेगूसराय में लगती है नाव की मंडी


दरअसल, मानसून का मौसम शुरू होते ही बेगूसराय जिले के गढ़पुरा में नाव की मंडी सजती है. यह मंडी मानसून आते ही ग्राहकों से गुलजार हो जाती है. बताया जाता है कि उत्तर बिहार में ऐसे तो कई इलाकों में नाव की खरीद बिक्री होती है, लेकिन गढ़पुरा की नाव काफी मजबूत और टिकाऊ और गुणवत्तापूर्ण मानी जाती है.


अप्रैल से ही शुरू हो जाता है कारीगरी का काम


नाव बनाने वाले कारीगर बताते हैं कि अप्रैल, मई महीने से नाव बनाने का कार्य शुरू हो जाता है. वे कहते हैं कि नावों के भी कई प्रकार है, जिसमें पतामी, एक पटिया, तीन पटिया सहित छोटी और बड़ी नाव बनाई जाती है. नाव बनाने वाले काम में अधिकांश बढ़ई समाज के लोग अधिक जुड़े हुए हैं. यहां 24 घंटे नाव बनाने का काम चलता रहता है.


जामुन की लकड़ी से बनी नाव होती है टिकाऊ


वर्षों से नाव बनाने वाले रामउदय शर्मा कहते हैं कि यहां दशकों से नाव बनाने का काम चल रहा है और यह बेहद ही चर्चित मंडी है. उन्होंने कहा कि अधिकांश लोग जामुन की बनी लकड़ी की नाव पसंद करते हैं. जामुन की लकड़ी से बनाई गई नाव काफी टिकाऊ होती है, क्योंकि पानी में यह जल्दी खराब नहीं होती.


इतने हजार से शुरू होती है कीमत


नाव बनाने के धंधे में जुड़े हरेराम शर्मा बताते हैं कि छोटी नाव की कीमत नौ हजार रुपये से शुरू होती है, जबकि एक पटिया नाव की कीमत करीब 15 हजार रुपये है. पतामी नाव की कीमत 20 हजार रुपये है और 13 हाथ की पतामी नाव 24 से 25 हजार रुपये होती है. उन्होंने कहा कि नाव बनाने में तीन तरह की कांटी का प्रयोग किया जाता है.


महंगाई का दिख रहा धंधे पर असर


महंगाई बढ़ने का असर नाव के धंधे पर भी पड़ा है. नाव व्यवसाय से जुड़े लोगों का दावा है कि यहां नाव की कमोबेश सभी महीने में चलती है, लेकिन जून-जुलाई से नाव की बिक्री तेज हो जाती है. एक सीजन में दो से ढाई हजार नाव की बिक्री होती है. नाव बनाने के लिए मार्च के बाद से ऑर्डर मिलने लगता है.


बिहार के इन इलाकों में आती है भीषण बाढ़


बता दें कि, उत्तर बिहार और सीमांचल के इलाके में कोसी, बागमती, कमला, महानंदा आदि नदियों के जलस्तर में वृद्धि होते ही सहरसा, मधुबनी, सुपौल, कटिहार, पूर्णिया, बेगूसराय, खगड़िया, समस्तीपुर, दरभंगा, भागलपुर के कई इलाके जलमग्न हो जाते हैं. इसके बाद ऐसे लोगों के लिए नाव ही एक मात्र साधन होता है. बिहार के कई इलाके ऐसे हैं, जहां आवागमन के लिए नाव एकमात्र साधन है. 


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