भारत में कैसे कंट्रोल होगी पॉपुलेशन? विशेषज्ञों ने दी चीन से सीखने की सलाह
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विशेषज्ञों ने भारत को जनसंख्या नियंत्रण से जुड़ी अहम सलाह दी है. उनका कहना है कि चीन की घटती आबादी भारत के लिए स्पष्ट संदेश होनी चाहिए.
नई दिल्ली: विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की घटती आबादी भारत के लिए एक स्पष्ट संदेश होनी चाहिए. उन्होंने यह भी माना कि आबादी नियंत्रण के लिए किसी तरह की जोर-जबरदस्ती के उपाय बेकार साबित हो सकते हैं. विश्व में सर्वाधिक आबादी वाले देश चीन में दशकों बाद पहली बार पिछले साल आबादी में कमी दर्ज की गई.
चीन में कैसे कम हो रही है जनसंख्या?
चीन की आबादी वर्ष 2022 के अंत में 1.4 अरब थी. चीन के राष्ट्रीय संख्यिकीय ब्यूरो ने वर्ष 2022 के अंत में आबादी में 8,50,000 की कमी दर्ज की और संभावना जताई जा रही है कि दीर्घ अवधि तक जनसंख्या में कमी आती रहेगी. इस रुख को पलटने की चीनी सरकार की सभी कोशिशों के बावजूद जनसंख्या में यह कमी आई है.
भारत अप्रैल मध्य तक दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने की कगार पर है. भारत के साथ चीन की तुलना करते हुए विशेषज्ञों ने कहा कि भारत और इसके राज्यों को चीन के अनुभवों से सीखना चाहिए.
जनसंख्या के लिए उठाए गए कड़े कदम
गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) 'पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया' (पीएफआई) ने अपने एक बयान में कहा, 'जनसंख्या संकट के बीच चीन में जनसंख्या नियंत्रण के कड़े कदम उठाए गए. आज सिक्किम, गोवा, जम्मू कश्मीर, केरल, पुडुचेरी, पंजाब, पश्चिम बंगाल और लक्षद्वीप में बुजुर्ग होती आबादी, श्रम 'पूल', लैंगिक चयन की घटनाओं में बढ़ोतरी की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है....'
इस एनजीओ के मुताबिक प्रजनन दर कुल प्रजनन दर (टीएफआर) के विस्थापन स्तर से बहुत कम है. टीएफआर को उस दर के रूप में परिभाषित किया गया है जिस पर जनसंख्या पूर्ण रूप से खुद को विस्थापित करती है.
'अफवाहों और अटकलों पर लगानी चाहिए लगाम'
बयान के मुताबिक टीएफआर में कमी का परिणाम उम्र और संरचना संबंधी रूपांतरण के रूप में दिखेगा जिसके तहत राज्यों को शुरुआती सालों में जनसंख्या संबंधी लाभ मिलेगा, लेकिन दीर्घ अवधि में बुजुर्ग होती आबादी का सामना करना पड़ेगा.
पीएफआई ने कहा, 'चीन की घटती आबादी भारत के लिए स्पष्ट संदेश होनी चाहिए, ना केवल 'क्या करना चाहिये बल्कि क्या नहीं करना चाहिए' के लिहाज से भी. भारत को दो बच्चों की संभावित नीति को लेकर जारी अफवाहों और अटकलों पर लगाम लगानी चाहिए.'
सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च के कार्यकारी निदेशक अखिला शिवदास ने कहा कि भारत के लिए इस मुद्दे पर कोई एक मानक प्रतिक्रिया नहीं हो सकती. शिवदास ने कहा, 'अहम सवाल यह है कि क्या वे लाभ उठा सकते हैं और एक देश के रूप में हम खराब शिशु लैंगिक अनुपात, बूढ़ी हो रही आबादी और बढ़ती युवा आबादी से जुड़ी चुनौतियों से निपट सकते हैं.'
जनसंख्या वृद्धि पर कैसे लगाया जा रहा अंकुश?
चीन में 15-59 वर्ष के उम्र वर्ग के लोगों के अनुपात में वर्ष 2000 में 22.9 प्रतिशत, 2010 में 16.6 प्रतिशत और वर्ष 2020 में 9.8 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई. जनसांख्यिकी विशेषज्ञ के अनुमान के अनुरूप चीनी आबादी बूढ़ी हो रही है और वर्ष 2020 में 60 वर्ष और इससे अधिक उम्र के लोगों का अनुपात कुल जनसंख्या का 18.7 प्रतिशत था, जबकि वर्ष 2010 में यह 13.3 प्रतिशत था.
हाल के दशकों में जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिए चीन ने कठोर कदम उठाये. चीन ने वर्ष 1970 के दशक के अंत में जनसंख्या नियंत्रण के लिए एक-बच्चे की नीति को लागू किया, लेकिन वर्ष 2016 में इस नीति को उलटने से पहले दो बच्चों की अनुमति दी गई.
हालांकि, वर्ष 2021 में चीन ने प्रत्येक दंपति को अधिकतम तीन बच्चों की अनुमति दे दी. विशेषज्ञों का कहना है कि जनसंख्या नियंत्रण के सख्त उपायों से लैंगिक अनुपात बिगड़ गया और कार्यकारी उम्र समूह में महिलाओं की संख्या में कमी हो गई, जिसे पलटना अब कठिन है.
(इनपुट: भाषा)
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