यमन में भारतीय महिला को मिली थी मौत की सजा, अब दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश देने से किया इंकार
यमन में भारतीय महिला की मौत की सजा मामले में केन्द्र सरकार को आदेश देने से दिल्ली हाईकोर्ट का इंकार कर दिया है.
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने यमन की एक अदालत द्वारा भारतीय महिला को दी गयी मौत की सजा के मामले में भारत सरकार को किसी तरह का आदेश देने से इंकार कर दिया है. हाईकोर्ट ने कहा कि हम सरकार को मृतक के परिवार से बातचीत करने का निर्देश नहीं दे सकते.
हत्या के मामले में यमन की कोर्ट ने सुनाई मौत की सजा
केरल निवासी निमिषा प्रिया को यमन की अदालत ने एक स्थानीय नागरिक की हत्या के मामले में मौत की सजा सुनाई हैं. निमिषा प्रिया को बचाने के लिए कई संगठन और लोग सोशल मीडिया पर लगातार अभियान चला रहे है. ऐसे ही एक संस्था से निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन कांउसिल ने चैयरमेन के जरिए दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर इस मामले में केन्द्र सरकार से हस्तक्षेप करने के लिए निर्देश देने की मांग की है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार को किसी तरह के आदेश देने से इंकार करते हुए कहा है कि मामले में अपीलकर्ता का प्रस्तुतीकरण भ्रमित करने वाला है और वे चाहते है कि भारत सरकार को मृतक के परिवार के साथ बातचीत करने और मौत के बदले में धन देने की पेशकश करने के लिए आदेश दिया जाये. जबकि इस मामले में भारत सरकार का रुख स्पष्ट है.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस विपिल सांघी और जस्टिस नवीन चावला की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार को ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया जा सकता है. अदालत ने कहा कि सुविधा के बजाय, याचिका ने प्रभावी ढंग से प्रार्थना की कि सरकार को मृतक के परिवार के साथ बातचीत करनी चाहिए और इस पहलू पर केंद्र ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह इस तरह की किसी भी बातचीत में प्रवेश नहीं कर सकता है.
अदालत ने विदेश मंत्रालय से किया था अनुरोध
गौरतलब है कि दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) की सिंगल बेंच ने 7 मार्च को इस मामले में विदेश मंत्रालय से अनुरोध किया था कि वो भारतीय महिला के परिजनों को यमन में यात्रा सुविधा प्रदान करे. लेकिन एकलपीठ ने मामले में मृतक के परिवार के साथ बातचीत शुरू करने के लिए केंद्र को कोई निर्देश देने से इनकार कर दिया था. जिसके खिलाफ सेवा निमिषा प्रिया संस्थान ने खण्डपीठ के समक्ष अपील दायर की.
एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा था कि कोई भी दूतावास खून के पैसे (Blood Money) देने के लिए बातचीत का हिस्सा नहीं हो सकता है.
भारतीय महिला का परिवार चाहता है कि हत्या के बदले दी जाने वाली ब्लड मनी भारत सरकार द्वारा दी जाए. यमन के कानून के अनुसार हत्या के मामले में पीड़ित परिवार को ब्लड मनी दी जाये और वो परिवार अगर हत्या आरोपी को माफ कर देता है तो उसकी सजा माफ की जा सकती है.
यमन में एक नर्स के रूप में काम करने वाली निमिषा प्रिया को 2017 में हत्या के लिए गिरफ्तार किया गया था. उन पर आरोप लगाया गया कि उसने यमनी नागरिक तलाल अब्दो मेहदी को शामक के साथ इंजेक्शन देकर हत्या की है.
वहीं निमिषा प्रिया के अधिवक्ता की ओर से बचाव में कहा गया कि मृतक मेहदी ने यह दिखाने के लिए जाली दस्तावेज बनाए थे कि उसकी शादी निमिषा प्रिया से हुई है. उसने अपना क्लिनिक शुरू करने के लिए उसकी मदद मांगी थी, लेकिन उसने उसे आर्थिक रूप से धोखा दिया और बाद में उसे प्रताड़ित करना शुरू कर दिया.
दोषी को 2020 में सुनाई गई थी मौत की सजा
निमिषा प्रिया का पासपोर्ट भी मेहदी के पास था. उसके कब्जे से पासपोर्ट हासिल करने के लिए निमिषा प्रिया ने उसे शामक के साथ इंजेक्शन दिया, लेकिन ओवरडोज के चलते उसकी मौत हो गयी. बाद में इस मामले की ट्रायल के बाद यमनी अदालत ने उसे हत्या के लिए दोषी ठहराते हुए 2020 में मौत की सजा सुनाई. सजा के खिलाफ सना अदालत में अपील की गई, जिसने इस महीने की शुरुआत में मामले को खारिज कर दिया.
दिल्ली हाईकोर्ट में दायर कि गयी याचिका में कहा गया है कि भले ही यमनी सुप्रीम कोर्ट / सर्वोच्च न्यायिक परिषद में अपील करने का एक और मौका प्रिया के पास मौजूद है, लेकिन यह संभावना नहीं है कि उसे निचली अदालत द्वारा दी गई सजा से बख्शा जाएगा और इसलिए उसके बाहर आने की एकमात्र उम्मीद है कि मौत की सजा के बदले पीड़ित परिवार को ब्लड मनी दी जाये.
याचिका में कहा गया कि निमिषा प्रिया की मां केरल में घरेलू सहायिका है और उसका पति एक ऑटो रिक्शा चालक है. उसकी 9 साल की बेटी को अनाथालय में रहना पड़ रहा हैं. याचिका में कहा गया है कि पूरे परिवार को वहां चल रही कानूनी प्रक्रियाओं से निपटने के लिए आर्थिक रूप से गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
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याचिका में कहा गया अगर मृतक का परिवार ब्ल्ड मनी प्राप्त करके उसे क्षमा करने के लिए सहमत हो जाता है, तो याचिकाकर्ता उसे भुगतान करने में असमर्थ है क्योंकि यमन में वित्तीय लेनदेन भी भारतीय अधिकारियों द्वारा प्रतिबंधित है. इसलिए इस मामले में भारत सरकार को मध्यस्थता करने के लिए निर्देश दिया जाना चाहिए. दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में केन्द्र को कोई भी निर्देश देने से इंकार कर दिया.
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