नई दिल्ली: दिल्ली के प्रशासनिक अधिकार को लेकर केंद्र सरकार और केजरीवाल सरकार के बीच लंबे समय से खींचतान चल रही थी और दोनों पक्षों ने कई मौकों पर अदालतों का दरवाजा खटखटाया था. अंतत: सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को सर्वसम्मति से व्यवस्था दी कि कानून व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोड़कर राष्ट्रीय राधानी के प्रशासनिक सेवा संबंधी विधायी और कार्यकारी शक्तियां दिल्ली सरकार के न्यायाधिकार क्षेत्र में आती हैं. आठ साल में विवाद के बिंदु और घटनाक्रम इस प्रकार रहा...


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21 मई 2015
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गजट अधिसूचना जारी कर कहा कि उप राज्यपाल का न्यायाधिकार क्षेत्र सेवा, लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि पर है और वह अपने ‘विवेकाधिकार’ का इस्तेमाल कर जब भी जरूरी समझे सेवा के मुद्दे पर मुख्यमंत्री से विचार-विमर्श कर सकते हैं.


26 मई 2015
दिल्ली के नौकरशाहों को नियुक्त करने का अधिकार उप राज्यपाल को देने वाली केंद्र की 21 मई की अधिसूचना के खिलाफ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई.


28 मई 2015
दिल्ली सरकार ने उप राज्यपाल की शक्तियों संबंधी केंद्र की अधिसूचना के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया. केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश में अधिसूचना को ‘संदेहास्पद’करार दिए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.


29 मई 2015
उच्च न्यायालय ने उप राज्यपाल से कहा कि वह नौ नौकरशाहों का तबादला करने के दिल्ली सरकार के प्रस्ताव पर विचार करें.


10 जून 2015
उच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो (एसीबी) को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना पर रोक लगाने से इनकार किया.


27 जून 2015
दिल्ली सरकार ने उप राज्यपाल द्वारा नियुक्त एसीबी प्रमुख एम के मीणा को भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो के कार्यालय में दाखिल होने से रोकने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.


27 जनवरी 2016
केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय से कहा कि दिल्ली केंद्र के अधीन आती है और उसे पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है.


5 अप्रैल 2016
आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने उच्च न्यायालय से अनुरोध किया कि दिल्ली के शासन में उप राज्यपाल के अधिकारों को लेकर दायर याचिका वृहद पीठ को भेजी जाए.


6 अप्रैल 2016
दिल्ली सरकार ने उच्च न्यायालय में कहा कि सीएनजी फिटनेट टेस्ट के लिए लाइसेंस देने में हुए कथित भ्रष्टाचार की जांच करने के लिए उसके पास आयोग गठित करने का अधिकार है.


19 अप्रैल 2016
आप सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से वह याचिका वापस ली जिसमें उच्च न्यायालय में वृहद पीठ गठित करने का अनुरोध किया गया था.


24 मई 2016
दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में नौकरशाहों की नियुक्ति पर राज्यपाल के अधिकारों को लेकर उत्पन्न गतिरोध के संबंध में दायर याचिका पर रोक लगाने संबंधी आप सरकार की अर्जी पर फैसला सुरक्षित रखा.


30 मई 2016
उच्च न्यायालय ने आप सरकार के उस अनुरोध को ठुकराया जिसमें सुनवाई रोकने के लिए दायर अर्जी पर फैसला करने को कहा गया था.


1 जुलाई 2016
सुप्रीम कोर्ट ‘आप’ सरकार की उस अर्जी पर सुनवाई को तैयार हुआ जिसमें उच्च न्यायालय को सार्वजनिक कार्य करने के लिए दिल्ली सरकार के अधिकारों के इस्तेमाल संबंधी संभावनाओं एवं अन्य विषशें पर फैसला देने से रोक लगाने का अनुरोध किया गया था.


4 जुलाई 2016
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जे एस खेहर ने दिल्ली सरकार के राज्य के तौर पर अधिकारों की घोषणा संबंधी ‘आप’ सरकार की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग किया.


5 जुलाई 2016
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव ने भी दिल्ली सरकार की अर्जी पर सुनवाई से खुद को अलग किया.


8 जुलाई 2016
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की उस अर्जी पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें अनुरोध किया गया था कि पहले प्राथमिक मुद्दा यह तय किया जाए कि क्या उसके पास केंद्र और राज्य के बीच विवाद की सुनवाई का न्यायाधिकार है या यह ‘विशेष तौर पर ’ शीर्ष न्यायालय में विचारणीय है.


4 अगस्त 2016
उच्च न्यायालय ने कहा कि उप राज्यपाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के प्रशासनिक प्रमुख हैं और ‘आप’सरकार का यह दावा कि वह मंत्रिमंडल की सलाह पर कार्य करने को बाध्य हैं ‘बिना किसी तथ्य’ के है.


15 फरवरी 2017
सुप्रीम कोर्ट ने शासन को लेकर दिल्ली-केंद्र विवाद को संविधान पीठ को भेजा.


2 नवंबर 2017
उच्च्तम न्यायालय की संविधान पीठ ने मामले में सुनवाई शुरू की.


8 नवंबर 2017
सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि उप राज्यापाल को दी गई जिम्मेदारियां असीमित नहीं हैं.


14 नवंबर 2017
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या केंद्र और राज्यों के बीच कार्यकारी शक्तियों के बंटवारे की संवैधानिक व्यवस्था दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश पर भी लागू की जा सकती है.


21 नवंबर 2017
केंद्र सरकार ने आप सरकार के तर्क का सुप्रीम कोर्ट में विरोध करते हुए कहा कि अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली का दर्जा ‘विशेष’ है लेकिन इससे यह राज्य नहीं बनती.


6 दिसंबर 2017
दिल्ली-केंद्र के बीच शक्तियों को लेकर दायर याचिकाओं पर 15 दिनों तक सुनवाई करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा.


4 जुलाई 2018
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उप राज्यपाल के पास निर्णय लेने का स्वतंत्र अधिकार नहीं है और वह मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करने को बाध्य हैं. संविधान के अनुच्छेद 239एए की व्याख्या को लेकर दायर अर्जी नियमित पीठ को भेजी गई.


14 फरवरी 2019
दो न्यायाधीशों की पीठ ने अलग-अलग फैसला दिया और प्रधान न्यायाधीश से तीन न्यायाधीशों की पीठ गठित करने की सिफारिश की जो अंतत: राष्ट्रीय राजधानी की सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर फैसला सुनाए.


6 मई 2022
तीन न्यायाधीशों की पीठ ने दिल्ली की सेवाओं के मुद्दे को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को भेजा.


9 नवंबर 2022
पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई शुरू की.


18 जनवरी 2023
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में फैसला सुरक्षित रखा.


11 मई 2023
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि के मामले को छोड़कर दिल्ली सरकार का सेवाओं पर विधायी और कार्यकारी अधिकार है.
(इनपुट- भाषा)


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