नई दिल्ली: बदहाली के चलते शहीद हवलदार शिवकुमार को वह सम्मान भी नहीं मिल सका जिसके वह हकदार थे. चिता की लकड़ियों पर टिन की छत से पानी टपक रहा था. मुखाग्नि दिये जाने के बाद भी जब लकड़ियों ने आग नहीं पकड़ी तो अंतत: चिता पर डीजल डालकर अंतिम संस्कार किया गया. दिल्ली और गुड़गांव के बीच की सीमा पर, दौराला गांव एक ऐसी जगह पर है जहां पाइप से पानी, उचित जल निकासी या यहां तक कि सीवर कनेक्शन भी नहीं है. इन अव्यवस्थाओं के चलते शहीद कुमार को वह सम्मान नहीं मिल सका जिसके वह हकदार थे. 


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शहीद जवान की मां ने की ये शिकायत


सितंबर की उस शाम को लेकर गांव के लोगों और परिवार के सदस्यों में निराशा देखने को मिली. कुमार की मां रामवती ने कहा, ‘‘यह मेरे बेटे का 40वां जन्मदिन था, जब झंडे में लिपटे ताबूत में उसका पार्थिव शरीर घर लाया गया था. मेरी पीड़ा तब और बढ़ गई थी जब उसके पार्थिव शरीर के अवशेषों को ट्रैक्टर से डीजल का उपयोग करके आग की लपटों में डाल दिया गया.’’ 


ग्रामीणों ने मीडियाको बताया कि कुमार को डेंगू हो गया था जो 24 ग्रेनेडियर्स के साथ जयपुर में तैनात था. उन्हें 22 सितंबर को यहां सेना के अनुसंधान एवं रेफरल अस्पताल में स्थानांतरित किया गया था और 23 सितंबर को भारी बारिश के बीच शव गांव लाया गया था. दौराला के लगभग हर घर से एक न एक जवान सशस्त्र बलों में सेवारत है और कई दशकों में यह पहली बार हुआ है कि गांव का एक सैनिक ड्यूटी के दौरान शहीद हो गया.


चिता जलाने के लिए किया गया डीजल का इस्तेमाल


सेवानिवृत्त हवलदार दीवान सिंह ने मीडिया को बताया, ‘‘हमारी लगभग 800 लोगों की आबादी है, जिनमें से केवल 300 वोट हैं जिससे सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता. गांव में बुनियादी ढांचा नाम की कोई चीज नहीं है.’’ दौराला के निवासियों का कहना है कि सरकारों ने लगातार उनके गांव की उपेक्षा की है क्योंकि इसकी छोटी आबादी को चुनाव के लिए महत्वपूर्ण नहीं माना जाता है. 


सिंह ने कहा, ‘‘पहले से ही अंधेरा हो रहा था और बारिश नहीं रुक रही थी. क्षतिग्रस्त टिन शेड की वजह से चिता भीग गई. हमने छत को तिरपाल की चादर से ढकने की कोशिश की, लेकिन तेज हवाओं के कारण ऐसा नहीं हो सका. कोई विकल्प नहीं बचा था, हमने एक ट्रैक्टर से 10 लीटर डीजल निकाला और उसका इस्तेमाल चिता को जलाने के लिए किया.’’ 


सेवानिवृत्त हवलदार एवं कुमार के भाई संजय सिंह ने कहा कि प्रशासनिक उदासीनता की वजह से उन्हें चिता जलाने के लिए डीजल का इस्तेमाल करना पड़ा. घी और नम लकड़ी ही चिता को जलाने के लिए पर्याप्त नहीं थी. संजय सिंह ने कहा, ‘‘इतने सालों में स्थानीय प्रशासन श्मशान घाट को ढकने के लिए टिन की पांच चादरों की व्यवस्था नहीं कर सका. हमने अब इसे अपने दम पर करने का फैसला किया है.’’ 


गांव में नहीं प्रवेश कर सका सेना का वाहन


ग्रामीणों ने बताया कि सेना का वाहन गांव में प्रवेश नहीं कर सका क्योंकि इसकी संकरी सड़कें वर्षों से मरम्मत नहीं होने के कारण क्षतिग्रस्त हो गई हैं. उन्होंने बताया कि गांव मुख्य सड़क से निचले स्तर पर है और सीवर नेटवर्क नहीं है इसलिए इसकी सड़कों पर गंदा पानी फैल जाता है. संजय सिंह ने कहा, ‘‘अंतिम संस्कार के समय सरकार या प्रशासन की ओर से कोई भी मौजूद नहीं था. अगर वे वहां होते, तो उन्हें अपनी विफलता का एहसास होता. वे मृतकों का अंतिम संस्कार करने के लिए उचित सुविधाएं भी नहीं दे पाते.’’ 


यह गांव मटियाला निर्वाचन क्षेत्र में पड़ता है जिसका गठन 2008 में हुआ था. तब से, इसने तीन अलग-अलग दलों के तीन विधायक देखे हैं - 2008 में कांग्रेस से सुमेश शौकीन, 2013 में भारतीय जनता पार्टी से राजेश गहलोत और 2015 तथा 2020 में आम आदमी से गुलाब सिंह यादव विधायक बने. दिल्ली में पंचायत व्यवस्था 1990 में समाप्त हो गई थी इसलिए गांव में कोई स्थानीय नेतृत्व नहीं है. 


यादव ने मीडिया को बताया कि जब जवान का निधन हुआ तब वह गुजरात में थे और वह ‘तेहरवी’ रस्म के दो दिन बाद उनके परिवार से मिलने गए थे. इसके दो दिन बाद समाजवादी पार्टी के स्थानीय पार्षद दीपक मेहरा ने शोक संतप्त परिवार से मुलाकात की थी. विधायक यादव के अनुसार, ‘‘ग्रामीणों के बीच आम सहमति की कमी’’ के कारण गांव में एक ‘फिरनी’ सड़क (एक गांव के चारों ओर एक सड़क) और एक सामुदायिक केंद्र का निर्माण लंबित है. उन्होंने कहा कि सरकार ने वहां सामुदायिक केंद्र के निर्माण के लिए 1.5 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं और जल्द ही काम शुरू होने जा रहा है. 


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