EU सदस्यों को कश्मीर दौरे पर निमंत्रण दे कर मोदी सरकार ने साधे ये बड़े निशाने
जम्मू कश्मीर में लंबे समय के बाद किसी संगठन को जाने की अनुमति मिली है. यूरोपीयन सदस्यों का कश्मीर दौरा भारत के कूटनीतिक और वैश्विक लिहाज से काफी उपयोगी साबित हो सकता है.
श्रीनगर: जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद से घाटी में मीडिया और अन्य किसी संगठनों की किसी भी कारवाई पर रोक लगाई गई थी. घाटी के सामान्य हालातों की सुगबुगाहट हालांकि अब भी नहीं मिली है. आए दिन हो रही हिंसक घटनाओं के बावजूद यूरोपीयन संघ(EU) के 28 सांसद कश्मीर की हालिया स्थिति का जायजा लेने सोमवार देर रात भारत पहुंचे. यहां सबसे पहले सभी 27 सदस्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले. मंगलवार को EU के सभी 27 सदस्य घाटी में हालातों की अपने-अपने स्तर पर पड़ताल कर एक रिपोर्ट तैयार करेंगे.
कूटनीतिक प्रयास से एक तीर से दो निशाने
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर में यूरोपीयन सांसदों के दौरे को मंजूरी दे कर दो निशाने को एक साथ साधा है. पहला तो कश्मीर में हालातों की जानकारी को लेकर उठ रही लगातार अंतरराष्ट्रीय मांगों को इससे शांत कराया जा सकता है. दूसरा कि यूरोप के 25 से भी ज्यादा देशों की प्रतिनिधियों वाली यूरोपीय संघ का साथ भारत को एक बार में प्राप्त हो सकता है. संयुक्त राष्ट्र में भी भारत को किसी भी प्रस्ताव को पारित कराने के लिए न सिर्फ जेनेरल असेंबली में बल्कि सुरक्षा परिषद में भी इपने पक्ष में जनाधार की जरूरत को मोड़ने के लिहाज से सीधा फायदा मिलेगा.
अमेरिकी सांसद की अर्जी को किया खारिज
5 अगस्त को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से ही किसी भी मीडिया और अंतरराष्ट्रीय संगठन को भारत सरकार की ओर से कश्मीर में किसी भी तरह के ऑपरेशन की इजाजत नहीं दी गई थी जब तक की स्थिति सामान्य न नजर आने लगी हो. अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य क्रिस हॉलेन की श्रीनगर आने की अर्जी को भी खारिज कर दिया गया था. लेकिन अब मोदी सरकार ने इसे मंजूरी दे दी.
विपक्ष में मची खलबली
मोदी सरकार के इस फैसले की जानकारी मिलते ही विपक्षी दल इस मुद्दे पर टूट पड़े. कांग्रेस नेता शशि थरूर और जयराम रमेश ने जहां इसे संसद और लोकतंत्र की तौहीन करना बताया वहीं कांग्रेस के ही आनंद शर्मा ने इस मामले को सदन में उठाए जाने की बात कही. उधर यूरोपीय संघ के सांसदों के आगमन की जानकारी मिलते ही पीडीपी प्रमुख व पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ति ने ट्वीट कर सरकार की आलोचना का मौका नहीं गंवाया. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि "अगर अनुच्छेद 370 को हटाकर भारत में मिलाया गया तो राहुल गांधी को कश्मीर आने से क्यों रोका गया और उन फासीवादी यूरोपीयन सांसद के सदस्यों को सरकार ने पड़ताल की इजाजत क्यों दे दी. इसका यहीं मतलब है कि अगर आप फासीवादी और मुस्लिमों से नफरत करने वाले हैं तभी आपको कश्मीर आने की इजाजत दी जाएगी."
अलगाववाद की राजनीति करने वालों को खतरा
महबूबा यहीं नहीं रूकीं उन्होंने एक और ट्वीट कर कहा कि "यह कोई संयोग नहीं कि EU के सदस्य उसी दिन कश्मीर का दौरा करेंगे जिसदिन तकरीबन 60,000 कश्मीरी छात्र बोर्ड परीक्षा देने जाएंगे. उनके पास परीक्षा में शामिल होने के अलावा कोई और विकल्प है भी नहीं और यूरोपीयन संघ को सबकुछ सामान्य मानने के लिए इतना काफी है." अपने राजनीतिक कैरियर को खतरे में देख पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ति कश्मीर मामले पर एक अलग ही राग अलपते आ रही हैं. शायद यहीं कारण है कि यूरोपीयन सांसदों का भारत आने पर भी उन्हें संदेह ही हो रहा है.
इसके अलावा कूटनीतिक स्तर पर भी यूरोपीयन संघ के साथ सामरिक रिश्ते और प्रगाढ़ रूप लेंगे. भारत-यूरोपीयन संघ के बीच संबंधों को एक नया आयाम देने से पहले इसे भरोसा कायम करने वाली कूटनीतिक प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यूरोपीयन सांसद कश्मीर दौरे पर अपनी पड़ताल के बाद किस तरह का रिपोर्ट कार्ड बनाते हैं.