क्यों दक्षिण के हिंदू नेताओं के शव जलाए नहीं जाते, जानिए द्रविड़ बनाम सनातन की कहानी
दक्षिण की राजनीति धर्म से परे है, यहां के स्थानीय राजनीतिक दल पेरियार के द्रविड़ आंदोलन से प्रेरित हैं. यही कारण है कि डीएमके और एडीएमके के नेता हिंदू धर्म की मान्यताओं में विश्वास नहीं रखते.
नई दिल्ली: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन (MK Stalin) के बेटे और राज्य सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन (Udhayanidhi Stalin) के सनातन धर्म पर दिए गए बयान पर देशभर में विवाद छिड़ा है. लेकिन इस बयान के जरिए उदयनिधि ने जो विचार रखे हैं, वे आज से करीब 100 साल पुराने हैं. यही कारण है कि उदयनिधि अपने बयान पर कायम हैं. उदयनिधि ने अपने एक ट्वीट में कहा कि मैं किसी भी मंच पर पेरियार और अंबेडकर के वो लेख प्रस्तुत करने को तैयार हूं, जिनमें सनातन धर्म का समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने पर शोध किया है.
दरअसल, उदयनिधि की पार्टी डीएमके और राज्य का विपक्षी दल एडीएमके की विचारधारा पेरियार के इर्द-गिर्द घूमती है. ये विचारधारा द्रविड़ मूवमेंट के जरिए आई. पेरियार का मानना था कि हिंदू धर्म केवल ब्राह्मणों को फायदा पहुंचाता है. साल 1924 में केरल में एक मंदिर के रास्ते पर दलितों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद एक बड़ा आंदोलन हुआ, जिसकी कमान पेरियार ने संभाली. उन्होंने जाति-धर्म का खुला विरोध किया. इसे ही द्रविड़ आंदोलन कहा जाता है. इस आंदोलन की विचारधार से सहमत लोग ही द्रविड़ कहलाते हैं
जब पेरियार बोले- हिंदू धर्म नष्ट कर दो
रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब 'मेकर्स ऑफ मॉडर्न इंडिया' में लिखा है कि अंग्रेजी शासन के दौरान तमिलनाडु में पढ़े-लिखे ब्राह्मण बड़े पद पर पहुंच गए थे. इसी के विरोध में साल 1927 में पेरियार ने लिखा था कि यदि गैर-ब्राह्मण और गरीब लोग समानता चाहते हैं, तो सबसे पहले हिंदू धर्म नष्ट कर दें. पेरियार रामायण और गीता जैसे हिंदू महाकाव्यों की भी खूब आलोचना करते थे. वे कहते थे कि मैं मानव समाज का सुधारक हूं. मुझे देश, भगवान, धर्म, भाषा और राज्य की कोई प्रवाह नहीं है. मैं मानव कल्याण के बारे में चिंतित हूं.
आज भी डीएमके द्रविड़ विचारधारा के साथ
साल 1949 में पेरियार के करीबी रहे सीएन अन्नादुरई ने अपनी अलग पार्टी बनाई, जिसका नाम डीएमके रखा गया. अन्नादुरई धर्म के मामले में लिबरल किस्म के व्यक्ति थे, उनका कहना था कि मैं न गणेश की मूर्ति तोडूंगा और न नारियल तोडूंगा. यानी वे न किसी धर्म के पक्ष में थे और न ही धर्म के खिलाफ में. अन्नादुरई की मौत के बाद एम. करुणानिधि ने राज्य की कमान संभाली और वे भी नास्तिक ही थे.
जब जयललिता और करुणानिधि को दफनाया
2018 में करुणानिधि की मौत होने पर उनके शव को जलाया नहीं गया, बल्कि दफनाया गया था. इसी तरह तत्कालीन मुख्यमंत्री जे. जयललिता के शव को भी दफन किया गया था. जबकि हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार शवों का दाह संस्कार किया जाता है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि तमिलनाडु की राजनीति में पेरियार आज भी कितने प्रासंगिक हैं.
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