पेरिस. फ्रांस के संसदीय चुनाव में दूसरे दौर का मतदान समाप्त होने में केवल तीन घंटे बचे हैं. अब तक 59.71 प्रतिशत मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग कर चुके हैं. 1981 के बाद देश में सर्वाधिक मतदान होने की संभावना है. मतदान चार दशकों में सबसे अधिक होने की राह पर है. फ्रांस में हो रहे मध्यावधि चुनाव में मरीन ले पेन की धुर दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली के ऐतिहासिक जीत हासिल करने या त्रिशंकु संसद की संभावना जताई जा रही है. इस चुनाव में करीब चार करोड़ 90 लाख मतदाता मतदान के लिए पंजीकृत हैं और यह चुनाव तय करेगा कि नेशनल असेंबली पर किसका नियंत्रण होगा तथा प्रधानमंत्री कौन बनेगा.


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मैक्रों ने किया वोट
इससे पहले फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने रविवार को संसदीय चुनाव में मतदान किया. देश की संसद का कार्यकाल 2027 में खत्म होना था लेकिन यूरोपीय संघ चुनाव में 9 जून को बड़ी हार मिलने के बाद राष्ट्रपति मैक्रों ने समय से पहले संसद भंग कर बड़ा दांव खेला है. यह चुनाव फ्रांस के लिए इसलिए भी अहम है कि नाजी युग के बाद सत्ता की बागडोर पहली बार राष्ट्रवादी एवं धुर-दक्षिणपंथी ताकतों के हाथों में जाने या त्रिशंकु संसद की संभावना जताई जा रही है.


पहले चरण की वोटिंग में क्या हुआ
30 जून को पहले चरण का चुनाव हुआ था, जिसमें मरीन ले पेन नीत नेशनल रैली ने बढ़त बनाई थी. पेन ने रविवार को हो रहे दूसरे दौर के मतदान में अपनी पार्टी को वोट देने की अपील की है. फ्रांस में यह चुनाव ही तय करेगा कि नेशनल असेंबली पर किसका नियंत्रण होगा तथा प्रधानमंत्री कौन बनेगा. अगर मैक्रों की पार्टी को बहुमत नहीं मिलता है तो उन्हें यूरोपीय संघ-समर्थक नीतियों का विरोध करने वाले दलों के साथ सत्ता साझा करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.


मध्यावधि चुनाव से क्या होगा असर
इस मध्यावधि चुनाव के परिणाम से यूरोपीय वित्तीय बाजारों, यूक्रेन के लिए पश्चिमी देशों के समर्थन और वैश्विक सैन्य बल एवं परमाणु शस्त्रागार के प्रबंधन के फ्रांस के तौर-तरीके पर काफी प्रभाव पड़ने की संभावना है.  


सर्वे से पता चला है कि ‘नेशनल रैली’ 577 सीट वाली नेशनल असेंबली में सबसे अधिक सीट जीत सकती है, लेकिन वह बहुमत के लिए आवश्यक 289 सीट संभवत: नहीं जीत पाएगी. ‘नेशनल रैली’ का नस्लवाद और यहूदी-विरोधी भावना से पुराना संबंध है तथा यह फ्रांस के मुस्लिम समुदाय की विरोधी मानी जाती है. अनेक फ्रांसीसी मतदाता महंगाई और आर्थिक चिंताओं से परेशान हैं. वे राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के नेतृत्व से भी निराश हैं. मरीन ले पेन की आव्रजन विरोधी ‘नेशनल रैली’ पार्टी ने इस असंतोष को चुनाव में भुनाया है और उसे विशेष रूप से ‘टिकटॉक’ जैसे ऑनलाइन मंचों के जरिए हवा दी है.


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