नई दिल्लीः भारत के जंगलों में चीतों को फिर से बसाने के लिए 17 सितंबर को मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से आठ चीतों को छोड़ा गया. इन चीतों को दक्षिणी अफ्रीका के नामीबिया से विमान से लाया गया था. यह पहली बार नहीं है जब भारत में चीते लाए गए हों, इससे पहले भी दूसरे देश से चीतों को लाया गया. ऐसे में जानिए उन चीतों का क्या हुआ?


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2009 से सिंगापुर से लाए गए थे चीते
गुजरात सरकार द्वारा 2009 में किए गए प्रयासों को याद करते हुए, राज्य के वन विभाग के अधिकारियों ने कहा कि दो जोड़ी चीते सिंगापुर प्राणी उद्यान से एक एशियाई शेर और दो शेरनी के बदले लाए गए थे. उन्होंने कहा कि 24 मार्च 2009 को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एक सार्वजनिक समारोह के बाद जूनागढ़ में देश के सबसे पुराने सक्करबाग प्राणी उद्यान में इन चीतों को लाया गया था. 


चीतों के जोड़ों का नहीं हुआ मिलन
सक्करबाग प्राणी उद्यान के सहायक निदेशक नीरव मकवाना के एक नोट के अनुसार, जोड़े 2012 तक मिलन करने में नाकाम रहे और स्कॉटलैंड के एक विशेषज्ञ भ्रूणविज्ञानी की देखरेख में प्रजनन के सहायक प्रयास के प्रस्ताव को लागू नहीं किया जा सका. नोट में कहा गया, ‘चीतों के दो जोड़े मार्च 2009 में अदला-बदली कार्यक्रम के तहत सिंगापुर प्राणी उद्यान से लाए गए थे. दरअसल, (सक्करबाग प्राणी उद्यान में) कुशल प्रबंधन और पशु चिकित्सा देखभाल के कारण, जोड़े 12 साल की उम्र तक जिंदा रहे.’


सिंगापुर प्राणी उद्यान ने 2006 में अफ्रीकी चीतों के बदले सक्करबाग प्राणी उद्यान से एशियाई शेरों को लाने का प्रस्ताव रखा था, और उस वर्ष अगस्त में केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण द्वारा इसे मंजूरी दी गई थी. 


2017 में हुई थी आखिरी चीते की मौत
जूनागढ़ की मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) आराधना साहू ने कहा, ‘63 साल के अंतराल के बाद, मार्च 2009 में दोनों जोड़े एक शेर और दो शेरनी के बदले देश में पहुंचे. बारह साल की उम्र के बाद प्राकृतिक कारणों से दो जोड़े की मृत्यु हो गई. आखिरी चीते की मृत्यु 2017 में हुई.’


1952 में की गई थी विलुप्ति की घोषणा
24 मई, 2009 को जूनागढ़ के चिड़ियाघर में दो जोड़े को लाने के लिए आयोजित कार्यक्रम में मोदी ने संवाददाताओं से कहा था कि यह देश में चीतों के सफलतापूर्वक प्रजनन कराने के राज्य सरकार के प्रयासों का हिस्सा है. नोट में कहा गया कि भारत से विलुप्त होने वाले एशियाई चीतों की आधिकारिक घोषणा 1952 में की गई थी. 


अफ्रीकी चीते लाने का प्लान भी रहा नाकामयाब
साथ ही इसमें कहा गया कि इस प्रजाति के चीते अब केवल ईरान में हैं. नोट में कहा गया कि 1980 के दशक में भारत के कई प्राणी उद्यानों में विदेश के प्राणी उद्यानों से अफ्रीकी चीते लाए गए, लेकिन उनके आहार, पर्यावरण और प्रजनन संबंधी अन्य बाधाओं के कारण उनकी संख्या बढ़ाने में कामयाबी नहीं मिली.


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