नई दिल्ली: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले में वाराणसी के जिला जज का आदेश शुक्रवार को दरकिनार करते हुए आधुनिक पद्धति के आधार पर कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग (काल निर्धारित) करने की प्रक्रिया आगे बढ़ाने का आदेश दिया.


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शिवलिंग की कार्बन डेटिंग करने का आदेश
पिछले वर्ष 14 अक्टूबर को वाराणसी की जिला अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद से मिले कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग को खारिज कर दिया था और कहा था कि  ज्ञानवापी में कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग नहीं होगी. हिंदू पक्ष की सभी मांगों को कोर्ट ने खारिज कर दिया था.


न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्रा ने वाराणसी के जिला जज द्वारा 14 अक्टूबर, 2022 को पारित आदेश को चुनौती देने वाली एक पुनरीक्षण याचिका पर यह आदेश पारित किया. आदेश में कहा गया कि शिवलिंग को क्षति पहुंचाए बगैर आधुनिक पद्धति के आधार पर काल निर्धारण की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाए.


हाईकोर्ट ने एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) को कैंपस में पाए गए 'शिवलिंग' की कार्बन डेटिंग करने की अनुमति दी है. हालांकि, स्ट्रक्चर में किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाने का भी निर्देश दिया है.


क्या  है कार्बन डेटिंग
 रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीक का आविष्कार 1949 में शिकागो यूनिवर्सिटी के विलियर्ड लिबी और उनके साथियों ने किया था. कार्बन डेटिंग एक विधि है, जिसकी वस्तु की उम्र का अंदाजा लगाया जाता है. इसका इस्तेमाल  बेहद पुरानी वस्तुओं की उम्र जानने में किया जाता है. इस तकनीक के जरिये लकड़ी, चारकोल, बीज,हड्डी, चमड़े, बाल, सींग और रक्त अवशेष, पत्थर व मिट्टी की उम्र पता कर सकते हैं.ये वे चीजें हैं जिसमें कार्बनिक अवशेष होते हैं.


कार्बन डेटिंग का तरीका
विशेषज्ञों के मुताबिक  वायुमंडल में कार्बन के 3 आइसोटोप होते हैं, कार्बन 12, कार्बन 13 और कार्बन 14. कार्बन डेटिंग के लिए कार्बन 14 चाहिए होता है और फिर इसमें कार्बन 12 और कार्बन 14 के बीच अनुपात निकाला जाता है. इस बदलाव को मापने के बाद किसी जीव  या वस्तु की अनुमानित उम्र का पता लगाया जाता है. 


बता दें कि वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद पुराना है. अदालत के आदेश पर मस्जिद में सर्वे और वीडियोग्राफी हो चुकी है. भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण आंदोलन के दौरान ही मथुरा में कृष्णजन्म भूमि-शाही ईदगाह मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद मुद्दे को भी उठाया था. उनका दावा है कि यह तीनों मस्जिदें, हिंदू मंदिरों को गिराकर बनाई गई थीं.


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