इस्लामाबाद. हैरानी की बात नहीं है ये. खुलासा तो ज़रूर है लेकिन जो लोग पकिस्तान को जानते हैं उसका मिजाज़ और हिन्दुस्तान के लिए उनकी नफरत से वाकिफ हैं उन्हें इस खबर में हैरानी जैसा कुछ नहीं लगेगा. कटटरपंथी कौन सा मुस्लिम देश नहीं है जो पकिस्तान भी नहीं है, हाँ ये ज़रूर कहा जा सकता है पकिस्तान बाकी देशों से ज़्यादा कट्टरपंथी है खासकर उन अल्पसंख्यकों के लिए जो दुर्भाग्य से पकिस्तान में रहने को मजबूर हैं.



क्या था खुलासा शोएब अख्तर का 


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शोएब अख्तर ने कहा है कि पकिस्तान क्रिकेट टीम में हिन्दू खिलाड़ियों का उत्पीड़न होता है. उन्होंने इसके लिए दानिश कनेरिया की मिसाल भी दी. सब जानते हैं कि कुछ दिनों के लिए पाकिस्तानी क्रिकेट टीम में आये हिन्दू स्पिनर दानिश कनेरिया कोई तीर तो नहीं मार पाए. पर शायद उसकी वजह उनका उत्पीड़न भी हो सकता है जिसने उन्हें न ढंग से खेलने दिया न टीम में रहने दिया और न ही कोई वजह दी राष्ट्रीय टीम में क्रिकेट खेलने की. 


क्या वजह है अचानक इस खुलासे की 


पकिस्तान के तेज़ गेंदबाज़ शोएब अख्तर के इस खुलासे की क्या वजह हो सकती है ये तो वही जानें क्योंकि अगर ऐसा हो रहा था तो वे अब  तक क्या सो रहे थे? अब से पहले क्यों न खुली ज़ुबान ?अब खुली है तो क्या ख़ास वजह है? जी हाँ, ये भी एक सच है कि आज अगर शोएब ने ये खुलासा किया है तो यूँ ही नहीं कर दिया या नशे की झोंक में नहीं बोल गए, इसके पीछे कोई करारी वजह जरूर होनी चाहिए.



हिन्दू होने का खामियाजा चुकाया दानिश ने 


एक चैट शो में ये बात बताई शोएब अख्तर ने. उनके मुताबिक़ दानिश कनेरिया हिन्दू था इसका कारण वह टीम में उत्पीड़न का शिकार था.अख्तर ने बताया कि उनकी टीम के दूसरे खिलाड़ी कनेरिया को लेकर उनसे यहां तक कहते थे कि वो दानिश कनेरिया के साथ खाना क्यों खाते हैं. दानिश ने इस विषय में पूछे जाने पर इस बात को स्वीकारते हुए कहा कि मैं हिन्दू था इसलिये टीम के खिलाड़ी मुझसे बात तक नहीं करते थे. हालांकि पहले भी पाकिस्तानी टीम के लिए अनिल दलपत सनवारिया खेल चुके हैं और एक वक्त के पकिस्तान के अच्छे विकेटकीपर के तौर पर उनका प्रदर्शन रहा. अभी फिलहाल महेन्दर सिंह वहां के गेंदबाज़ के रूप में राष्ट्रीय टीम में खेलने से बस ज़रा सा दूर हैं और देश के टॉप तीस खिलाड़ियों में अपनी जगह बना चुके हैं.  


पकिस्तान में अल्पसंख्यकों का मजबूर वजूद 


चाहे वो हिन्दू हों या ईसाई या सिख - अगर कोई अल्पसंख्यक समुदाय पाकिस्तान में रह रहा है तो ये समझ लीजिये कि बस मजबूरी ही है कि जिसकी वजह से वहां हैं वरना पकिस्तान में कोई अल्पसंख्यक रहना नहीं चाहेगा. यह कोई ख़याल नहीं ज़मीनी हकीकत है. इसके लिए दुनिया भर के सर्वेक्षणों के आंकड़े मौजूद हैं.. 


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