नई दिल्ली.  डूब मरने को शर्म काफी है ..शर्म उनको मगर नहीं आती! बीस सितंबर को कृषि-बिल के विरोध में राज्यसभा की मर्यादा को भंग करने का दुष्कर्म करने वाले आठ सांसदों के विरुद्ध आज कार्रवाई हुई है. किन्तु पहले भी कई बार इस तरह की घटनाएं देश और दुनिया में देखी गई हैं ऐसे में क्या अब इस सेशन के शेष एक हफ्ते के लिए सदन में आने से रोक देना पर्याप्त कार्रवाई है? इन अराजक सांसदों से ये भी पूछा जाए कि इन लोगों को ये क्यों लगता है कि ये सरकारी दामाद हैं?


आठ सांसदों की आठ अराजक गतिविधियां 


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राज्यसभा में सभापति वेंकैया नायडू द्वारा अगले एक हफ्ते के लिए निलंबित किये गए विपक्षी सांसदों के नाम हैं - संजय सिंह, डेरेक ओब्रायन,रिपुन बोरा, डोला सेन, राजीव साटव, ए करीम, केके रागेश, नासिर हुसैन. इन आठ 'कानून-निर्माताओं' द्वारा संविधान के मंदिर की गरिमा को जिस तरह से धूलधूसरित किया गया, वे अराजक गतिविधियां इस प्रकार हैं:  


1. उपसभापति के सामने टेबल पर चढ़ जाना और नारे लगाना 
2. उपसभापति का माइक तोड़ डालना
3. रूल बुक उपसभापति के चेहरे पर लहराना 
4. रूल बुक उपसभापति के सामने फाड़ देना 
5. मार्शल के साथ धक्का-मुक्की करना
6. उपसभापति के आदेश का उल्लंघन करना 
7. बेशर्मी के साथ अपनी करतूत पर अफ़सोस जाहिर नहीं करना 
8. देश के टैक्सपेयर के पैसे और राज्यसभा के कीमती समय को बर्बाद करना 


केंद्र सरकार को गंभीर होना होगा 


कल संसद में हुई विपक्ष की इन असंसदीय गतिविधियों को देखते हुए आज की राज्यसभा की कार्रवाई को फिलहाल कुछ समय हेतु स्थगित करना पड़ा है. ऐसे में केंद्र सरकार और समस्त सांसदों द्वारा अब ये विचार किया जाना आवश्यक है कि ऐसी स्थितियां दुबारा पैदा न हों, उसके लिए क्या होमवर्क किया जाये. इतना ही नहीं ऐसी स्थिति के पैदा होने पर क्या नियम होने चाहिए और क्या दंड-विधान हो - इसका भी निर्धारण करना आवश्यक है. यदि ऐसा न किया गया तो देश की सीधी-सादी जनता को लगेगा कि देश की सरकार ऐसे अराजक हंगामा करने वालों पर कार्रवाई करने से डरती है.. 


स्कूली-प्रधानाचार्य पर ऐसा हमला हो तो  


एक छोटे स्कूल के प्रधानाचार्य के विरुद्ध यदि छात्र या शिक्षक ऐसा अभद्र हमला करें तो आप कल्पना कीजिये ऐसे लोगों के विरुद्ध क्या कार्रवाई होती है. फिर यहां तो एक सौ सैंतीस करोड़ भारतीयों की संसद के उपसभापति पर हुआ है ऐसा अराजक हमला. यदि इस घटना पर गंभीरता दिखाते हुए ऐसी घटनाओं पर तुरंत अंकुश न लगाया गया, तो यह एक सिलसिले की शुरुआत भी हो सकती है और भविष्य में ऐसी घटनाएं रोज़ की बात बन जाएंगी. 


किस अपराध की श्रेणी में रखा जाये?


राष्ट्र के संविधान के मंदिर में होने वाली इस तरह की गुंडई को किस अपराध की श्रेणी में रखा जाए- ये आईपीसी का फौजदारी मामला होगा या दीवानी मामला? ऐसे अराजक तत्व देश के लिये किस तरह का कानून बनायेंगे, ये शोचनीय विषय है. पर सवाल ये भी है कि क्या वास्तव में इस घटना को गंभीरता से लिया जा रहा है? यह सोशल  मीडिया का युग है. यदि केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर लापरवाही दिखाई तो उसे जनता की आलोचना का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि अब सोशल मीडिया इस घटना पर चर्चा ज़रूर करेगा.


मार्शलों को दिया जाये वर्क फ्रॉम होम


संसद में नियुक्त मार्शलों को अब आराम करने का स्पष्ट अवसर प्रदान किया जाना चाहिये. और इसके लिये उनको वर्क फ्राम होम पर भेज देना चाहिये, क्योंकि वे जो संसद में मौजूद रह कर कर रहे हैं, घर से भी कर सकते हैं. सिर्फ शोपीस बन कर संसद में तैनात होना किसी दिन उनकी जान के लिये भी खतरनाक साबित हो सकता है क्योंकि संसद में इस तरह के 'अराजक' तत्व कभी भी नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं. वैसे भी उपसभापति जी की तरह ये मार्शल भी कोई कार्रवाई करने में शुद्धरूप से अक्षम हैं अतः उन्हें अपनी जान की सुरक्षा का पूरा हक है.


संसद के भीतर जीवन बीमा किया जाये


केन्द्र सरकार को सोचना चाहिये कि संसद में मौजूद सांसदों का एक अलग से जीवन बीमा भी किया जाये जो संसद-जीवनबीमा कहलाये क्योंकि इसमें संसद में इस तरह की अराजक स्थितियों में कभी किसी सांसद की जान चली जाये, तो उसके परिवारजनों के लिये मदद का एक आर्थिक स्रोत यह जीवनबीमा भी बन सकता है. 


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