नई दिल्ली: यह बात है 1971 की, जब भारतीय नौसेना ने पकिस्तान पर आज तक का सबसे बड़ा ऑपरेशन किया था.


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देश पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध लड़ रहा था. थल सेना और वायु सेना दोनों ने ही बड़े ही साहस से मोर्चा संभाल रखा था.


भारतीय नौसेना ने उस दौरान कुछ समय पहले ही रूस से कुछ लड़ाकू पोत खरीदे थे. लेकिन इन पोतों का इस्तेमाल भारतीय बंदरगाहों की रक्षा के लिए ही किया जाना था.


पर एडमिरल एसएम नंदा के जेहन में कुछ और ही चल रहा था. यह ऑपरेशन शुरू होने से दो महीने पहले वे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पास पहुंचे.


उस मुलाकात के दौरान इंदिरा ने एडमिरल से पूछा कि हमारी नौसेना भारतीय बंदरगाहों की रक्षा के लिए कितनी तैयार है. लेकिन इसके जवाब में एडमिरल ने इंदिरा से कहा कि क्या हम कराची पर हमला कर सकते हैं.


इंदिरा यह सुनकर सकते में चली गईं और उन्होंने हां या न में जवाब नहीं देते हुए यह कहा कि आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं.


नंदा ने जवाब में कहा कि 1965 में उनसे खासतौर पर यह कहा गया था कि वह भारतीय समुद्री सीमा के बाहर किसी भी तरह की कार्रवाई न करें.


इस पर कुछ देर सोचने के बाद इंदिरा ने एडमिरल के हमले के प्रस्ताव के लिए हामी भर दी.


प्रधानमंत्री से हरी झंडी मिलने के बाद भारतीय नौसेना ने 1 दिसंबर, 1971 को कराची पर हमले की योजना बनाई गई. प्रधानमंत्री से हमले का आदेश मिलने के तुरंत बाद नौसेना की वेस्टर्न फ्लीट 2 दिसंबर को कराची के लिए कूच कर गया.


जब समंदर में डूब गए थे पाकिस्तान के 3 लड़ाकू जहाज
इस ऑपरेशन को लेकर प्लान यह था कि भारतीय नौसैनिक बेड़ा सबसे पहले कराची के 250 किमी के वृत्त में पहुंचेगा. इसके बाद शाम के समय वह इसके लगभग 150 करीब तक पहुंच जाएगा.


नौसेना का प्लान था कि वह रात के समय कराची बंदरगाह पर हमला करेंगे और सुबह होने से पहले फिर बंदरगाह से 150 किमी दूर आ जाएंगे.


इस ऑपरेशन के तहत पहला हमला निपट, निर्घट और वीर मिसाइल बोट्स से किया गया. ये सभी बोट्स चार-चार मिसाइलों से लैस थीं.


स्क्वार्डन कमांडर बबरू यादव निपट बोट पर मौजूद थे और यह बोट सबसे आगे थी. निपट तीर की तरह आगे बढ़ रही थी और इसका बांया छोर निर्घट ने संभाल रखा था, जबकि दांया छोर वीर ने संभाल रखा था.


इनके ठीक पीछे आईएनएस किल्टन ने कमान संभाल रखी थी.


रात के 10 बजकर 40 मिनट हुए थे, तभी निपट पर मौजूद स्क्वार्डन कमांडर बबरू यादव को रडार पर कुछ हलचल महसूस हुई. उन्हें एक पाकिस्तानी युद्धपोत अपनी तरफ आता हुआ दिखाई दिया.


उन्होंने तुरंत निर्घट को आदेश दिया कि वह अपना रास्ता बदलकर पाकिस्तानी पोत पर हमला करे. निर्घट ने लगभग 20 किमी की दूरी पर मौजूद पाकिस्तानी विध्वंसक पीएनएस खैबर पर मिसाइल दाग दी.


खैबर के चालक कुछ समझ पाते तब तक निपट ने भी 17 किमी की दूरी से खैबर पर मिसाइल दाग दी. मिसाइल का निशाना बनते ही खैबर अपनी जगह पर रुक गया और धूं-धूं कर जलने लगा.


कुछ देर बाद पोत में पानी भर जाने से खैबर समंदर में समा गया.


इसके तुरंत बाद निपट ने पाकिस्तानी विध्वंसक पोतों वीनस चैलेंजर और शाहजहां पर भी मिसाइलें दाग दीं.


इस बीच वीर ने भी पाकिस्तानी माइन स्वीपर पीएन एस मुहाफिज पर भी मिसाइल दाग दी और वह कुछ पलों में ही दरिया में डूब गया.


जब पाकिस्तान ने उड़ा दिया अपना ही जहाज
भारतीय नौसेना के लगातार हमले से पाकिस्तान बौखला गया था. उसने 6 दिसंबर को भारतीय नौसेना के मिसाइल पोतों को निशाना बनाने की कोशिश की.


लेकिन उन्होंने गलती से अपने ही पोत पीएनएस ज़ुल्फिकार को मिसाइल से उड़ा दिया.


जब भारत के हमले से 7 दिनों तक जलता रहा कराची


इसके बाद भारतीय नौसेना के वेस्टर्न फ्लीट के फ्लैग ऑफिसर एडमिरल कुरुविला ने कराची पर दूसरा हमला करने की योजना बनाई और इसे ऑपरेशन पाइथन नाम दिया गया.


इस बार मिसाइल बोट विनाश हमले के लिए तैयार थी. उनके साथ फ्रिगेट्स त्रिशूल और तलवार भी बेड़े में शामिल थे. 8 दिसंबर की रात थी और आईएनएस विनाश 30 नौसैनिकों के साथ कराची पर हमले के लिए तैयार था.


इस बीच आईएनएस विनाश की बिजली फेल हो गई और बोट कंट्रोल ऑटोपाइलट पर चली गई. अब नौसेना के पास सिर्फ बैटरी से मिसाइल दागने का विकल्प बचा था. लेकिन तभी रात 11 बजे के आसपास बिजली वापस आ गई.


आईएनएस विनाश पर मौजूद कमांडिंग ऑफिसर विजय जेरथ की नजर कराची बंदरगाह से निकल रहे एक पाकिस्तानी पोत पर पड़ गई. वे उसे मिसाइल से दागने ही जा रहे थे कि उनकी नजर बंदरगाह पर मौजूद कीमारी तेल डिपो पर पड़ गई.


उन्होंने तुरंत अपनी मिसाइलों को मैक्सिमम पर सेट किया और उन्हें दाग दिया. इसके बाद तेल के टैंकरों में आग लगने से पूरा तेल डिपो धूं-धूं कर जल उठा. तेल डिपो की आग इतनी तेज थी कि उसे 60 किमी दूर से भी देखा जा सकता था.


तेल डिपो में लगी आग 7 दिनों तक जलती रही और कहते हैं कि वहां धुंए के कारण लगभग तीन दिनों तक सूरज की रोशनी भी नहीं पहुंची.  


एक रिपोर्ट में इस आग को 'एशिया का सबसे बड़ा बोनफायर' करार दिया गया था.


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