नई दिल्लीः महामारी के दौर का यह दूसरा साल है. जब से Corona ने हमारी जिंदगी में दखल दी है, कई नए शब्दों ने भी रोजमर्रा की हमारी जीवन शैली में घुसपैठ कर ली है. सोशल डिस्टेंसिंग-यह ऐसा शब्द है जो Corona से बचाव वाले उपाय की सबसे जरूरी और पहली सीढ़ी है. यानी कि कोई रोगी हो या न हो इस कठिन दौर में आपको हर किसी से दो गज की दूरी रखनी है. 


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इस तबके के लिए यह संभव नहीं
लेकिन, क्या यह सबके लिए संभव है? बहुत बड़ी आबादी के लिए इस सवाल का जवाब हां होने के बावजूद भी सोशल डिस्टेंसिंग सभी के लिए संभव नहीं है. खासकर उनके लिए, जिन्हें हमारी दवाइयों का ख्याल रखना है, वे जो अस्पतालों में हमारी सांसों की गिनती लिख रही हैं.



उनके लिए भी नहीं, जिन्हें हमारी बांह पकड़ कर इंजेक्शन देने हैं, डिप चढ़ानी है और भी तमाम काम जिनके जिम्मे हैं. 


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नेकी कर दरिया में डाल को जी रहीं नर्स
PPE किट और मास्क के पीछे जिनका चेहरा छिप गया है. जो सिर्फ हाड़-मांस की आकृति जैसे नजर आ रहे हैं. नेकी कर दरिया में डाल वाली कहावत को असल में जीने वाले यह लोग हैं अस्पतालों में भागदौड़ करने वाले नर्स. डॉक्टर भले ही धरती का भगवान हो, नर्स भी किसी देवदूत से कम नहीं. अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के मौके पर जानिए- कैसा है इनका संघर्ष


करियर शुरू होते ही आ धमका Corona 
सामान्य तौर पर किसी की नौकरी लगती है तो वह खुश होता है और भविष्य के सपने संजोता है. लेकिन राजधानी दिल्ली के बीएल कपूर अस्पताल में बतौर नर्स ड्यूटी निभाने वाली महिमा और अंजलि कहती हैं कि हमें इसका मौका ही नहीं मिला. हमारा अभी करियर शुरू ही हुआ था कि कुछ ही दिनों में Corona महामारी आ धमकी. 


4 माह से घर नहीं गईं अंजलि
इसके बाद से 23 साल की इन दोनों नर्सों के शरीर PPE किट में समा गए. 8 घंटे लगातार इसी हाल में दोनों अपनी ड्यूटी निभा रही हैं. बीते साल तो मुश्किलें कुछ कम भी रहीं, लेकिन इस साल तो हर पल डर का साया भी है. 



अंजलि बताती हैं कि पहली ही ड्यूटी Covid-ward में लगी. तब से लेकर अब तक ड्यूटी जारी है. इस महामारी के दौर में सुरक्षा का ख्याल रखते हुए वह 4 माह से घर भी नहीं गईं हैं. 


महिमा को सुकून कि गर्व करते हैं लोग
वहीं महिमा का कहना है कि वह पिताजी के साथ रहती हैं, लेकिन पिछले कई महीनों से पिता नीचे के फ्लोर पर और महिमा ऊपर के फ्लोर पर अलग-अलग रहते हैं. इनकी भी नई-नई ड्यूटी है. तमाम मुश्किलों के बीच सुकून है कि घर-परिवार के लोग गर्व करते हैं कि आपदा के इस समय में वह लोगों के काम आ रही हैं. खासकर Covid-19 मरीजों के. 


पीपीई किट में 6 घंटे कैद
सिर्फ सिस्टर ही नहीं ब्रदर (मेल नर्स) भी इसी जोखिम के साथ सेवा कर रहे हैं. बीएलके हॉस्पिटल के flu corner में काम कर रहे अजहरुद्दीन का कहना है कि काम सबका बराबर है और इस वक्त हमारे लिए मरीज को बचाने से बड़ा कुछ नहीं. जब मरीज बीमार हों तो रिश्तेदारों का गुस्सा समझ में आता है. उन्होंने कहा कि लोगों से केवल इतनी मिन्नत है कि वह एक बार हमारी हालत भी समझें.



पीपीई किट पहनते ही 10 मिनट में पसीने आ जाते हैं. 6 घंटे में पूरा शरीर तर हो जाता है. शरीर का सारा पानी निचुड़ जाता है, लेकिन इमरजेंसी वार्ड में काम जारी है. मरीज को बचा लेने से बड़ा कुछ भी नहीं.  


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