International women`s day: 77 साल की पूरनमासी देवी जिन्होंने भक्ति गीतों में बनाई पहचान
हम आपका परिचय 77 साल की एक ऐसी महिला भजन गायिका से कराने जा रहे हैं वो पूरे जीवन स्कूल नहीं गईं, ओड़िया भाषा की वर्णमाला का उन्हें ज्ञान नहीं है, वो अक्षर भी नहीं पहचानती हैं, बावजूद इसके उन्होंने अपने जीवनकाल में एक लाख से ज्यादा ओड़िया भक्ति गीतों की रचना की.
नई दिल्ली: भारत में जब कभी भजन गायकों के नाम लिए जाते हैं तो अनायास ही अनूप जलोटा, नरेंद्र चंचल और अनुराधा पौड़वाल जैसे गायक-गायिकाओं का नाम उभरकर सामने आ जाता है. लेकिन हमारा देश अपने आप में बहुत अनोखा है यहां अनगिनत प्रतिभाएं कोने-कोने में छिपी हैं.
जब वो किसी भी कारण से अचानक लोगों के सामने आते हैं तो हर किसी को उनके संघर्ष और सफलता के बारे में जानकर आश्चर्य होता है लेकिन उन्हें देखकर वो उनसे प्रेरणा भी लेते हैं.
हम आपका परिचय 77 साल की एक ऐसी महिला भजन गायिका से कराने जा रहे हैं वो पूरे जीवन स्कूल नहीं गईं, ओड़िया भाषा की वर्णमाला का उन्हें ज्ञान नहीं है, वो अक्षर भी नहीं पहचानती हैं, बावजूद इसके उन्होंने अपने जीवनकाल में एक लाख से ज्यादा ओड़िया भक्ति गीतों की रचना की. आलम ये है कि उनकी रचनाओं पर शोध करके ओड़िया साहित्य में लोग पीएचडी कर रहे हैं.
ये महिला हैं ओडिशा के कंधमाल जिले की लोकप्रिय भजन गायिका और समाज सेविका पूरनमासी देवी. कुछ दिन पहले तक केवल ओडिशा के लोग ही उन्हें जानते थे लेकिन गणतंत्र दिवस पर उन्हें पद्मश्री से नवाजे जाने की घोषणा के बाद सारा देश उन्हें पहचानने लगा है. लोग उनके बारे में और अधिक जानकारी हासिल करना चाहते हैं.
ये भी पढ़ें-छोटी-छोटी बिंदियों से भूरी बाई ने भरे जीवन में सफलता के रंग.
पूरनमासी जानी ने अपने जीवन में सामाजिक संदेश देने वाले हजारों गीत गाए. उनकी सबसे ज्यादा रोचक बात यह है वो पढ़ी लिखी नहीं हैं लेकिन छह दशक से ओड़िया, कुई और संस्कृत भाषा में गीत गाती हैं जो उनके अपने हैं. सबसे रोचक बात यह है कि वो अपने गीतों में कविताओं को दोहराती नहीं हैं.
ब्रिटिश राज में कंधमाल जिले के एक गरीब परिवार में उनका साल 1944 में जन्म हुआ था. माता पिता ने उनका नाम पूरनमासी रखा. लेकिन उनके जीवन में जल्दी ही अंधेरा हो गया. बेहद कम उम्र में उनकी मां का निधन हो गया और पारिवारिक जिम्मेदारियां पूरनमासी के कंधों पर आ गई. इसके बाद जल्दी ही उनका विवाह भी हो गया.
वैवाहिक जीवन के शुरुआती 10 साल में उन्होंने 6 बच्चों को जन्म दिया लेकिन उनमें से कोई भी जीवित नहीं रहा. बच्चों के निधन की वजह से वो डिप्रेशन में चली गईं. लेकिन उसी दौरान सदानंद नाम के एक व्यक्ति ने उन्हें संतों की संगत और भगवान की आराधना करने की सलाह दी.
ये भी पढ़ें-मधुबनी की दुलारी, ऐसे बनी देश की प्यारी.
ऐसा करने के बाद उन्होंने दो बेटियों को जन्म दिया. बेटियों के जन्म के बाद उनकी भगवान के प्रति आस्था बढ़ती चली गई, उनका विश्वास और प्रबल होता गया. ऐसे में वो तपस्या करने के पूरनमासी पहाड़ पर चली गईं और वहां से साल 1969 में वापस गांव लौटीं. एक महिला होने के बावजूद उन्हें ताड़ीसारू बाई बाबा के नाम से पुकारा जाने लगा.
तपस्या से लौटने के बाद उन्होंने भक्तिगीत गाने की शुरुआत की. 52 साल पहले शुरू हुआ ये सिलसिला आज भी अनवरत जारी है. अपने जीवन में वो अबतक एक लाख से ज्यादा भक्ति गीत गाए हैं लेकिन उनकी महज 5000 कविताओं को एक किताब के रूप में प्रकाशित किया जा सका है.
जिसे ओड़िया साहित्य में विशिष्ट स्थान हासिल है लेकिन इस लीविंग लिजेंड की विरासत को सजोने के लिए की गई कोशिशें नाकाफी हैं. उन्हें संजोना बेहद जरूरी है जिससे भविष्य में लोग उनके किए कार्य से प्रेरित हो सकें.
Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.