नई दिल्ली: पिथौरागढ़ और बागेश्वर के कुछ क्षेत्रों में गायों में लंपी वायरस बहुत तेजी से फैला हुआ है. बागेश्वर में अभी तक दो दर्जन पशुओं में लंपी के लक्षण दिखे हैं. बागेश्वर में तीन मवेशियों की मौत हो चुकी है. इसके साथ ही पशु चिकित्सा विभाग में अधिकारियों के पद रिक्त होने के कारण पशुओं को समय से उपचार भी नहीं मिल पा रहा है. जिसके कारण उनकी मौत हो रही है. इसके साथ कई अस्पतालों में फार्मासिस्ट व पशुधन प्रसार अधिकारियों के पदों पर भी कई सालों से भर्ती नहीं हुई है. एक पशु चिकित्सा अधिकारी दो से अधिक पशु अस्पतालों का कार्य देख रहे हैं. इस हालत में इन अधिकारियों का ग्रामीण स्तर पर जाना मुश्किल हो गया है. सरकार व जिम्मेदार विभाग की लापरवाही से अब लंपी स्किन डिजीज वायरस, ग्रामीण क्षेत्रों में अपना कहर बरपा रहा है.


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सबसे पहले आपको ये बताते हैं कि आखिर ये रोग क्यों और कैसे फैल रहा है और इसकी कितनी प्रजातियां हैं. दरअसल, अब तक मिली जानकारी के अनुसार ये रोग एक वायरस के चलते मवेशियों में फैल रहा है. जिसे 'गांठदार त्वचा रोग वायरस' (LSDV) कहते हैं. इस वायरस की मुख्यतः तीन प्रजातियां होती..


1). 'कैप्रिपॉक्स वायरस' (Capripoxvirus)
2). गोटपॉक्स वायरस (Goatpox Virus) 
3). शीपपॉक्स वायरस (Sheeppox Virus)


लंपी त्वचा रोग के लक्षण को जानिए
मवेशियों में इस रोग के कई सारे लक्षण पाए जाते हैं. जैसे बुखार, वजन का कम होना, लार निकलना, आंख और नाक का बहना, दूध का कम होना, शरीर पर अलग-अलग तरह के नोड्यूल दिखाई देते हैं, जिन्हें त्वचा का घाव कहा जाता है. अक्सर ये महीनों तक शरीर पर बने रहते हैं. इस रोग में शरीर पर गांठें बन जाती हैं. गर्दन और सिर के पास इस तरह के नोड्यूल ज्यादा दिखाई देते हैं. कई दफा तो ये भी देखा जाता है कि इस रोग के चलते मादा मवेशियों में बांझपन, गर्भपात, निमोनिया और लंगड़ापन झेलना पड़ जाता है.


जानवरों में बुखार आना, आंखों एवं नाक से स्राव, मुंह से लार निकलना, पूरे शरीर में गांठों जैसे नरम छाले पड़ना, दूध उत्पादन में कमी आना और भोजन करने में कठिनाई इस बीमारी के लक्षण हैं.


लंपी रोग के क्या हैं उपाय?
मवेशियों का विशेष ध्यान रखना होगा, इसके तहत पशुओं को प्रभावित क्षेत्रों में जाने से रोकें. चूकि ये एक प्रकार का वायरस है, तो इसका कोई विशेष उपाय नहीं है. ये बात अलग है कि इससे बचने के लिए एंटीबायोटिक्स, एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटीहिस्टामिनिक दवाएं दी जाती हैं. घाव के इलाज के लिए भी कई सारे तरीके अपनाए जा सकते हैं. इसके लिए कोई भी उपाय अपनाने के लिए पशु चिकित्सकों से जरूर संपर्क करें. इसके लक्षण देखते ही उपाय के साथ-साथ उपचार कराने पर ध्यान देना चाहिए. लापरवाही से इसे बढ़ावा मिलेगा.


इन कारणों से फैलती है बीमारी
लंपी त्वचा रोग एक ऐसी बीमारी है जो मच्छरों, मक्खियों, जूं एवं ततैयों के कारण फैलती है. यह मवेशियों के सीधे संपर्क में आने और दूषित भोजन एवं पानी के माध्यम से फैलती है.


पशुपालकों को किया जा रहा जागरुक
जिलाधिकारी रीना जोशी ने जिले में एक माह तक गौवंशीय पशुओं के आवागमन सहित विभिन्न गतिविधियों पर रोक लगा दी है. पशुपालन विभाग को लगातार गांव में शिविर लगाकर पशुपालकों को जागरूक करने और वायरस से बचाव की जानकारी देने के आदेश दिए गये हैं. डॉ. प्रणव अग्रवाल पशु चिकित्साधिकारी के द्वारा बेरीनाग के कांडे किरौली क्षेत्र में लंपी स्किन के रोग को लेकर पशुपालकों को जागरूक किया जा रहा है. गौशाला की साफ सफाई और अन्य दवाओं की भी जानकारी दी जा रही है.


आपको बता दें कि डुंगरगांव और मजबे गांव में पशुओं की बीमारी को लेकर जानकारी सामने आई थी. जिसको देखते हुए पशुपालन विभाग के चिकित्सक सक्रिय हुए और गांवों का भ्रमण कर बीमार मवेशियों का स्वास्थ्य जांचा. बीमार पशुओं में हल्के से तेज बुखार, शरीर पर दाने, नाक और मुंह से लार आने के लक्षण दिखाई देने पर पशु चिकित्साधिकारी डॉ.आर.चंद्रा ने बताया कि बीमारी के लक्षण लंपी स्किन डिजीज के हैं. इस बीमारी में घबराने की जरूरत नहीं है दो से तीन दिन तक इलाज कराने पर पशु ठीक हो जाते हैं.


लंपी वायरस के लक्षण: इस वायरस के प्रकोप से पशुओं के पूरे शरीर में बड़े-बड़े दाने निकल रहे हैं. फिर पशुओं को तेज बुखार आ रहा है. पशु खाना पीना छोड़ रहे हैं. करीब एक सप्ताह के बाद पशु अपनी जगह पर से उठ नहीं पा रहे हैं. समय से उपचार नहीं मिलने के कारण पशुओं की मौत भी हो रही है.


पशु स्वास्थ्य विभाग में कर्मचारियों की कमी के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में पशुओं को समय से उपचार नहीं मिल पा रहा है. पहले 8-10 गावों के बीच में एक पशु सेवा केंद्र खोला गया था. उनमें एक पशुधन प्रसार अधिकारी की नियुक्ति होती थी. लेकिन पिछले 7-8 वर्षों से इन पशु सेवा केंद्रों में ताला लटका हुआ है. अगर इन पशु सेवा केंद्रों में खाली पड़े पदों को समय से भरा जाता तो आज ग्रामीण स्तर पर इस बिमारी को में फैलने में काफी हद तक काबू पाया जा सकता था.
(इनपुट- आईएएनएस)


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