ये हैं देश के पहले निलंबित सांसद, जिन्होंने लोकसभा को `मुगलिया कोर्ट` कह दिया था!
देश के पहले निलंबित सांसद मनीराम बागड़ी थे, जिन्हें साल 1962 में लोकसभा से स्पीकर हुकुम देव ने सस्पेंड किया था. बागड़ी को लोकसभा से बाहर करने के लिए मार्शलों को बुलाना पडा था.
नई दिल्ली: संसद से करीब 143 सांसद निलंबित हो चुके हैं. इनमें से 97 लोकसभा, जबकि 46 राज्यसभा के सदस्य हैं. अब लोकसभा में इंडिया गठबंधन के केवल 43 और राज्यसभा में 50 सांसद बचे हैं. सरकार द्वारा लाए जारहे बिलों पर ये सांसद ही बहस और चर्चा कर रहे हैं. निलंबित सांसदों को तो चैंबर और गैलरी में आने की इजाजत भी नहीं है. निलंबन की यह परंपरा बहुत पुरानी है. देश की संसद में पहला सांसद 61 साल पहले निलंबित हुआ था. आज भले कांग्रेस सड़क से लेकर संसद तक निलंबन की मुखालफत कर रही है, लेकिन तब कांग्रेस की ही सरकार हुआ करती थी.
कौन थे पहले निलंबित सांसद?
साल 1952 में चुनाव हुए, जनता ने सांसद चुनकर संसद में भेजे. पहले सांसद की निलंब की कहानी इससे ठीक 10 साल बाद यानी साल 1962 में शुरू होती है. देश में चुनाव हुए ही थे. हरियाणा कि हिसार लोकसभा सीट से सोशलिस्ट पार्टी की टिकट पर मनीराम बागड़ी जीतकर आए. जेपी और लोहिया के रास्ते पर चलने वाले बागड़ी सरकार की खूब मुखालफत किया करते थे.
कैसे हुए सस्पेंड?
24 मई 1962 को लोकसभा चल रही थी. तत्कालीन स्पीकर हुकम सिंह ने लोकसभा की कार्यवाही के दौरान मनीराम बागड़ी का नाम पुकारा, ताकि एजेंडे पर वो अपनी बात रख सकें. लेकिन बागड़ी इससे इतर अपनी बात रखने लगाए. स्पीकर ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन बागड़ी ने एक न सुनी. स्पीकर उनकी इस हरकत से नाराज हुए और एक सप्ताह के लिए सस्पेंड कर दिया. बागड़ी फिर भी बोलते रहे, आखिरकार मार्शलों को बुलाना पड़ा और बागड़ी को सदन के बाहर ले जाया गया.
सदन को छोड़ निभाई दोस्ती
सांसद मनीराम बागड़ी को बाहर करने पर विपक्ष के तीन सांसद बिफर पड़े और सदन का बहिष्कार कर बाहर चले गए. इनमें बाराबंकी के सांसद राम सेवक यादव भी थे. दिलचस्प बात ये है कि करीब तीन महीने बाद साम सेवक यादव को लोकसभा से सस्पेंड कर दिया. तब मनीराम बागड़ी ने दोस्ती निभाई और सदन का बहिष्कार कर बाहर चले गए. लोकसभा से निलंबित होने वाले दूसरे सांसद राम सेवक यादव बने.
जब बागड़ी हो गए नाराज
मनीराम बागड़ी को लोकसभा के उन सांसदों में गिना जाने लगा जिन्हें देखते ही स्पीकर की आंखे लाल हो जाया करती थीं. 25 दिसंबर 1964 को एक ऐसा वाकया हुआ, जो इतिहास में दर्ज हो गया. मनीराम बागड़ी ने एक ऐसी बात कह दी, जो आज भी विपक्षी सांसद दोहराते हैं. उस दिन तत्कालीन गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा ने एजेंडे पर अपनी बात रखी. बागड़ी ने पॉइंट ऑफ इन्क्वायरी की. उन्हें सवाल पूछने के लिए कहा गया. लेकिन बागड़ी ने अपने चिर-परिचित अंदाज में लंबा भाषण शुरू कर दिया. स्पीकर उन्हें लगातार टोक रहे थे. कांग्रेसी सांसद भी बागड़ी पर बिफर पड़े. यह सब देखकर बागड़ी नाराज हुए. उन्होंने कहा ये लोकसभा है, मुगलिया कोर्ट नहीं. इस पर सदन में और हंगामा होने लहा. इस पर स्पीकर भी गुस्सा हुए और उन्होंने कहा, 'बागड़ी जी, ये कोई मछली बाजार भी नहीं है और ना मैं इसे बनने दूंगा. आपको अपने कहे शब्दों पर खेद जताना होगा, अन्यथा कार्रवाई होगी.' बागड़ी अपनी आदत के मुताबिक अड़े रहे और उन्हें फिर से निलंबित कर दिया
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