नई दिल्लीः Lateral Entry in UPSC: केंद्र सरकार ने पिछले दिनों लेटरल एंट्री को लेकर एक विज्ञापन निकाला था जिसमें शीर्ष पदों पर सीधी भर्तियां होनी थीं लेकिन विपक्ष के विरोध के बाद सरकार ने इसे वापस ले लिया. इसे विपक्ष ने मुद्दा बनाया. लेकिन यह पहली बार नहीं है जब लेटरल एंट्री के माध्यम से शीर्ष पदों पर भर्ती की जाने वाली थी. इससे पहले भी इस तरह से भर्ती की कोशिश हुई थी. यह प्रयास हुआ था कांग्रेस नीत यूपीए के समय. 


मनमोहन सरकार लाई थी प्रस्ताव


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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी 2011 में मनमोहन सिंह सरकार ने ज्वाइंट सेक्रेटरी लेवल पर लेटरल एंट्री के माध्यम से 10 फीसदी भर्ती करने का प्रस्ताव दिया था. इस प्रस्ताव में प्राइवेट सेक्टर और शिक्षाविदों की भर्ती करने की योजना थी. तब डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ट्रेनिंग (DoPT) ने अपने नोट में लिखा था कि यूपीएससी सीवी और इंटरव्यू के जरिए लेटरल एंट्री के उम्मीदवारों का चयन करेगी. 


यूपीएससी ने दे दी थी सहमति


तब छठे वेतन आयोग ने तकनीकी या विशेष ज्ञान की जरूरत वाले पदों की पहचान करने की सिफारिश की थी. दो साल से ज्यादा समय के बाद जून 2013 में डीओपीटी, व्यय विभाग और यूपीएससी ने इसकी जांच की थी. यूपीएससी ने इसे लेकर अपनी सहमति भी दे दी थी.  


बहुत कम रिस्पॉन्स मिला था


वहीं डीओपीटी के रिकॉर्ड से पता चलता है कि चयन पर "पूरा प्रस्ताव मिलने के बाद काम किया जाएगा." इसके बाद लेटरल एंट्री प्रपोजल के लिए एक नोट प्रसारित किया गया था और अलग-अलग मंत्रालयों और विभागों से लेटरल एंट्री से आने वाले उम्मीदवारों की जरूरत वाले पदों की पहचान करने को कहा गया था जिसमें विशेष ज्ञान की जरूरत हो. 


2013 के बाद जून 2014 में भी ये नोट फिर से प्रसारित किया गया लेकिन रिकॉर्ड्स के अनुसार, इसे लेकर बहुत कम प्रतिक्रियाएं मिलीं और यह प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ सका. इसके बाद जून 2017 में पीएमओ की एक बैठक में लेटरल एंट्री पर फिर से चर्चा हुई. 


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