नई दिल्ली. सर्वोच्च न्यायालय में इस्लाम में महिलाओं के लिए हिजाब की गैर-अनिवार्यता का दावा करने वाली एक याचिका दायर की गई है. याचिका में कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को सही इंगित करने का प्रयास किया गया है, जिसने राज्य में कॉलेजों में सिर ढकने पर प्रतिबंध लगाने के लिए शैक्षणिक संस्थानों के अधिकार को बरकरार रखा था. हस्तक्षेप याचिका भारतीय सशस्त्र बलों के एक पूर्व अधिकारी सैयद हबीब-उर-रहमान द्वारा दायर की गई है जो 37 साल तक आईटीसी की सेवा कर रहे हैं और इसके निदेशक मंडल में भी नियुक्त किए जा रहे हैं.


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रहमान ने याचिका में कहा कि उन्होंने हमेशा पवित्र पुस्तक की 'गलत व्याख्याओं' की निंदा की है और इस संदर्भ में वह अपने वर्षों के अनुभव, ज्ञान और इस्लाम के व्यावहारिक और व्यापक समझ को सामने रखना चाहते हैं.


परिवार का किया जिक्र
मामले में हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए, उन्होंने कहा: 'आवेदक एक धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील मुस्लिम है जो इस्लाम की भावना को देख रहा है, जो इस अदालत के ध्यान में लाना चाहता है कि अपने 80 वर्षों में, उसने कभी भी अपनी दादाजी ,चाची, मां या बहनें, जो सभी इस्लाम की भावना का पालन करती हैं, को सिर के चारों ओर एक स्कार्फ पहनते नहीं देखा.'


हिजाब अनिवार्य नियम नहीं
रहमान ने कहा कि वह इस झूठी धारणा को दूर करने के लिए पवित्र पुस्तक की सही धार्मिक व्याख्या के साथ शीर्ष अदालत की सहायता करना चाहते हैं कि इसमें हिजाब पहनने का अनिवार्य निर्देश है. याचिका के अनुसार, 'बल्कि, यह विचार कि मुस्लिम महिलाओं को हिजाब पहनने के लिए मजबूर किया जाता है, अज्ञानी और कट्टरपंथी संस्थाओं का परिणाम है, जो महिलाओं द्वारा हिजाब पहनने का एक आवश्यक धार्मिक अभ्यास होने का दावा करके पवित्र पुस्तक की एक अत्यंत पिछड़ी और प्रतिगामी गलत व्याख्या को गलत तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं.'


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