नई दिल्ली: देश में एक बार फिर नवोदय विद्यालय सुर्खियों में हैं. नये प्रवेश के साथ बच्चों की आत्महत्या की खबरें सामने आ रही हैं. पिछले दिनों एक सप्ताह के अंतराल में ही देश के 3 अलग-अलग नवोदय विद्यालयों में 3 बच्चों ने आत्महत्या की हैं. नवोदय विद्यालयों में पिछले कुछ सालों में ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं. इससे छात्रों के परिवार वाले चिंता में हैं. 


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एक सप्ताह में 3 आत्महत्या
11 सितबंर को झारखंड के जवाहर नवोदय विद्यालय हंसडीहा में 8वीं में पढ़ने वाले 15 वर्षीय छात्र चंदन कुमार सिंह ने आत्महत्या की. उससे एक दिन पूर्व ही 10 सितंबर को राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के बुढ़वा जवाहर नवोदय विद्यालय में सातवीं की छात्रा ने कमरे में फंदा लगाकर आत्महत्या की थी. वहीं 6 सितंबर को झारखंड के ही गुमला जिला के घाघरा थाना क्षेत्र के जवाहर नवोदय विद्यालय मसरिया में 10वीं की छात्रा ने अपनी जान ले ली. 


हाल में शुरु हुआ शैक्षणिक सत्र
देश की कई नवोदय में इस वर्ष का शैक्षणिक सत्र जुलाई के अंतिम सप्ताह से लेकर सितंबर के प्रथम सप्ताह से शुरू हुआ है. घर से दूर नहीं रह पाने की आदत के चलते हर वर्ष जुलाई-सितंबर में ऐसे मामले में सामने आते रहे हैं लेकिन इनकी संख्या बेहद कम रही है. लेकिन इस शैक्षणिक सत्र के प्रारंभ में ही आत्महत्या की खबरें आने लगी हैं जिससे परिजनों का चिंतित होना स्वाभाविक है. 


खड़े हो रहे ये सवाल
पिछले सप्ताह आत्महत्या करने वाले 3 छात्र-छात्राओं में से एक आठवीं और दूसरा दसवीं कक्षा के स्टूडेंट था. वे इन नवोदय विद्यालयों में पिछले 3-4 साल से रह रहे थे. हंसडीहा के मृतक छात्र चन्दन सिंह के मामले से जुड़ा एक तथ्य ये भी हैं कि उसका छोटा भाई कुंदन सिंह उसी विद्यालय में छठीं कक्षा का छात्र है. ऐसे में सवाल खड़े होते हैं कि एक ही स्कूल में 2 भाई रहते हुए भी किन परिस्थितयों में छात्र ने आत्महत्या की होगी.


2013 से 2017 तक 49 ने की आत्महत्या
केंद्र सरकार द्वारा प्रतिभाशाली ग्रामीण बच्चों के लिए स्थापित इन स्कूलों में आत्महत्या का मामला पहली बार 2018 में चर्चा में आया था जब एक आरटीआई के तहत जानकारी में सामने आया कि 2013 से 2017 के बीच 5 सालों में 49 बच्चों ने आत्महत्या की थी. इनमें आधे से ज्यादा दलित और आदिवासी बच्चे थे. इसमें भी अधिकांश संख्या लड़कों की रही हैं.


नवोदय विद्यालयों की स्थापना 
देश में नवोदय विद्यालयों की स्थापना 1985-86 के बीच हुई थी. देश में परीक्षा परिणाम के मामले में नवोदय हमेशा ही टॉप पर रहे हैं. 2012 से लगातार स्कूल का 10वीं का परिणाम 99 और 12वीं का 95 प्रतिशत रहा है. यह परिणाम निजी स्कूलों और सीबीएसई के राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा बेहतर हैं. लेकिन आत्महत्या के मामलों ने अब देश में इन नवोदय विद्यालयों को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं.  


नवोदय विद्यालय समिति मानव संसाधन विकास मंत्रालय का एक स्वायत्त संगठन है जो देशभर में 638 जिलों में 661 स्कूल संचालित करता है. नियमों के अनुसार स्कूल की 75 प्रतिशत सीटें ग्रामीण छात्रों के लिए आरक्षित होती हैं. इसी वजह से 100 प्रतिशत शरही आबादी वाले जिलों में कभी जेएनवी को मंजूरी नहीं दी जाती हैं. वर्तमान में 661 जेएनवी में करीब 3 लाख बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं.


साल दर साल बढ़ता आंकड़ा
नवोदय विद्यालयों में 2010 से पहले आत्महत्या के मामले यदा कदा ही सामने आते रहे हैं. लेकिन 2010 के बाद इन आकड़ों में लगातार बढ़ोतरी होती रही है. वर्ष 2013 में 8, 2014 में 7, 2015 में 8, 2016 में 12 और 2017 में 14 बच्चों ने आत्महत्या की. जेएनवी में आत्महत्या करने वाले 16 बच्चे अनुसूचित जाति के थे. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बच्चों की संख्या को मिलाकर यह आंकड़ा 25 हो जाता है. ऐसा नहीं है कि नवोदय में सिर्फ बच्चों की खुदकुशी के मामले ही सामने आ रहे है बल्कि स्टाफ के सुसाइड के मामले में भी सामने आए हैं 19 मई 2022 को मध्य प्रदेश के शहडोल नवोदय विद्यालय के प्राचार्य ने अपने दफ्तर में फांसी लगा ली थी.


बढ़ती आत्महत्या के कारण
विशेषज्ञों के मुताबिक नवोदय छात्रों के बीच बढ़ती आत्महत्या के कई कारण हैं. घर से दूर होना, घर की समस्याएं, शारीरिक दंड, टीचरों द्वारा अपमान, पढ़ाई का दबाव,  हॉस्टल में बढ़ती जातीय घटनाएं, दोस्तों के बीच लड़ाई से लेकर अकेलेपन के चलते बढ़ता डिप्रेशन भी मुख्य कारण हैं. नवोदय में ज्यादातर आत्महत्या या तो गर्मी की छुट्टियों के बाद जुलाई-अगस्त-सितंबर या फिर परीक्षा के महीनों यानी कि जनवरी-फरवरी और मार्च के दौरान सामने आती हैं.


मानव संसाधन मंत्रालय ने नवोदय छात्रों की आत्महत्या के मामले में जनवरी 2019 में  प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ जितेन्‍द्र नागपाल की अध्यक्षता में एक कार्यबल का गठन किया था. मानव संसाधन विकास मंत्री ने 31 दिसंबर 2018 को इसकी मंजूरी दी थी.  इस बल को छात्रों की आत्महत्या को बढ़ावा देने वाली परिस्थितियों का पता लगाने, आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोकने के तरीकों और उपायों के बारे में सुझाव देना था.

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