New Criminal Laws: कहीं से भी FIR, जल्दी सजा... एक्सपर्ट से जानें तीन नए कानूनों से देश में क्या बदल जाएगा
आज से भारत में आईपीसी, सीआरपीसी और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह तीन नए कानून लागू हो गए हैं. ये कानून हैं- भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA). इन्हें लाने की जरूरत क्यों पड़ी, इनके लागू होने से क्या बदल जाएगा, लोगों पर इनका क्या असर पड़ेगा, जानिए सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील सेः
नई दिल्ली: New Criminal Laws: आज से देश में तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) लागू हो गए हैं. इन्होंने भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह ली है. तीन नए कानूनों का उद्देश्य क्या है, जब पहले से तीन कानून थे तो उन्हें बदलकर इन्हें लाने की जरूरत क्यों पड़ी, इनके आने से क्या बदल जाएगा, इन सबके बारे में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत अपनी राय रखी.
तीन कानूनों को लागू करने के संबंध में उन्होंने कहा, 'आज बहुत ही ऐतिहासिक दिन है. 'इंडियन एविडेंस एक्ट' की जगह 'भारतीय साक्ष्य संहिता' को लागू किया गया है. पुराने कानून में व्हाट्सएप चैटिंग, ईमेल, फोन पर बातचीत और कॉल रिकॉर्ड कोई एविडेंस नहीं थे लेकिन नए कानून में इन्हें सबूत माना जाएगा.
एफआईआर कहीं से भी दर्ज करा सकेंगे
उन्होंने बताया, अब कहीं से भी एफआईआर कराई जा सकेगी. जैसेः आप दिल्ली में बैठे-बैठे कोलकाता में एफआईआर कर सकते हैं. इसके लिए आपको बंगाल जाने की जरूरत नहीं है, आप घर बैठे-बैठे ऑनलाइन कर सकते हैं. जांच, चार्जशीट फाइल करने और मुकदमे की सुनवाई का समय तय हो गया है. मुकदमे की सुनवाई पूरी होने के बाद जजमेंट देने की टाइमिंग भी फिक्स हो गई है.
'नए कानूनों से लोगों को जल्द न्याय मिलेगा'
अश्विनी उपाध्याय ने कहा, 'मुझे लगता है कि आने वाले समय में बदलाव हो जाएंगे, सभी मुकदमों का फैसला 1 साल में होना शुरू हो जाएगा. बहुत लोगों को लाभ मिलेगा. 5 करोड़ मुकदमों के कारण 5 करोड़ परिवार टेंशन में हैं. मेरा ये मानना है कि 1860 का पेनल कोड, 1872 का एविडेंस एक्ट बहुत खराब था. उसकी वजह से लोगों को न्याय नहीं मिल पा रहा था. इन तीन नए कानूनों से लोगों को जल्दी न्याय मिलेगा.'
नए कानूनों से सजा की दर बढ़ने के सवाल पर वरिष्ठ वकील ने कहा कि अभी कई राज्यों में सजा की दर 10 प्रतिशत है, यानी 90 फीसदी लोग सबूत के अभाव में बरी हो जाते हैं. क्योंकि 1872 के एविडेंस एक्ट में लेटेस्ट टेक्नोलॉजी को एविडेंस नहीं माना जाता था.
'सजा की दर जल्द हो जाएगी दोगुनी'
उन्होंने आगे बताया कि 1872 में बने कानून के वक्त मोबाइल, सोशल मीडिया नहीं था लेकिन वर्तमान में हाई टेक क्राइम हो रहा है. खासतौर पर साइबर धोखाधड़ी, एक्सटॉर्शन, अवैध हथियारों या ड्रग्स की स्मगलिंग बहुत हाईटेक तरीके से होने लगी है. पुराने कानून में ऐसे मामलों के अपराधी सबूत के अभाव में बरी हो जाते थे. कई बार आतंकवादी, अलगाववादी, नक्सली भी सबूत के अभाव में बरी हो जाते थे. वर्तमान कानून में इन पहलुओं को ध्यान में रखा गया है. हमें लगता है कि सजा की दर जल्द ही दोगुनी हो जाएगी.
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