नई दिल्ली: महाराष्ट्र की सियासत में इन दिनों बड़ा उलटफेर होने के कयास लगाए जाने लगे हैं. दरअसल, मुंबई में एनसीपी प्रमुख शरद पवार से प्रशांत किशोर ने मुलाकात की है.


महाराष्ट्र की सियासत में उलटफेर!


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दरअसल, उद्धव की मुलाकात के बाद संजय राउत ने PM मोदी के कसीदे पढ़े. संजय राउत ने पीएम मोदी को देश का सबसे बड़ा नेता बताया. इसके कुछ ही घंटे बाद शरद पवार के घर पर प्रशांत किशोर से मुलाकात हुई. अब ये मुलाकात क्यों हुई ये तो वही दोनों जानते हैं. खैर,


शिवसेना और कांग्रेस के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है, इसके बारे में भी आपको जानना चाहिए, लेकिन उससे पहले आपको ये बताते हैं कि संजय राउत ने पीएम मोदी को लेकर ऐसा क्या बयान दे दिया कि ये सुर्खियां बन गई हैं.


शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि 'मेरा मानना है कि नरेंद्र मोदी देश और भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता हैं. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि पिछले 7 सालों में भारतीय जनता पार्टी को जो सफलता मिली है, वह सिर्फ नरेंद्र मोदी की वजह से है.'


शिवसेना की कांग्रेस को दो टूक


शुक्रवार की सुबह जब शिवसेना के मुखपत्र सामना का संपादकीय सामने आया तो कांग्रेस और शिवसेना के बीच गड़बड़ी की अटकलें तेज हो गईं. पीएम मोदी की तारीफ के बाद शिवसेना ने कांग्रेस को दो टूक सुना दिया. शिवसेना के सामना में लिखा 'मोदी-शाह-नड्डा से सीखो चुनाव जीतना.'


'मोदी-शाह-नड्डा से सीखो चुनाव जीतना'


कागंरेस को खरी खोटी सुनाते हुए सामना में लिखा गया कि 'उत्तर प्रदेश में योगी बनाम मोदी ऐसा गुप्त संघर्ष चल रहा है, ऐसी ‘मीडिया’ रिपोर्ट है. ये सब होने के बाद भी मोदी, शाह और नड्डा का नेतृत्व मजबूत है और भाजपा जमीन पर है. पुराने लोग चले जाएं तो भी नए लोगों को तैयार करने की क्षमता उनमें है. चुनाव जीतने की तकनीक उन्होंने सीख ली है.'


नीचे पढ़िए शिवसेना ने सामना में कैसे कांग्रेस को लताड़ लगाई. सामना के संपादकीय को पढ़ने के बाद खुद ब खुद समझ आ जाएगा कि महाराष्ट्र में शिवसेना और कांग्रेस के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा है.


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संपादकीय– कांग्रेस के समक्ष प्रश्नचिह्न!


("उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारनेवाले जितिन प्रसाद आखिरकार भाजपाई बन गए हैं. प्रसाद कांग्रेस के युवा नेता थे। उनका घराना पारंपरिक कांग्रेसी है। वह मनमोहन सिंह कैबिनेट में मंत्री थे। बाद में विधानसभा और लोकसभा हारते रहे। अब वह भाजपा में शामिल हो गए हैं। जितिन प्रसाद के आगमन का भाजपा में जश्न मनाया जा रहा है। इसकी वजह उत्तर प्रदेश में चुनाव का जातीय गणित है। जितिन प्रसाद को भाजपा में शामिल करने की वजह उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोटों का गणित बताया जा रहा है। यदि उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण वोटों पर प्रसाद का इतना प्रभाव था तो इन मतों को वे कांग्रेस की ओर क्यों नहीं मोड़ सके? इसका दूसरा अर्थ ये भी लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा समर्थक उच्च जाति के मतदाता अब उनसे दूर जा रहे हैं। अब तक उत्तर प्रदेश में भाजपा को किसी और गणित व चेहरे की जरूरत नहीं पड़ी थी। सिर्फ नरेंद्र मोदी ही सब कुछ यही नीति थी। राम मंदिर या हिंदुत्व के नाम पर वोट मिल रहे थे। अब उत्तर प्रदेश में अवस्था इतनी खराब हो गई है कि जितिन प्रसाद के मार्पâत ब्राह्मण वोटों का सहारा लेना पड़ रहा है। जितिन प्रसाद कांग्रेस में थे, तब कांग्रेस को कोई फायदा नहीं हुआ और भाजपा में गए इसलिए भाजपा के लिए भी उपयोगी नहीं हैं। सवाल ये न होकर सिर्फ इतना ही है कांग्रेस पार्टी के बचे-खुचे दिग्गज भी अब नाव से धड़ाधड़ कूद रहे हैं। फिर यह सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही हो रहा है, ऐसा नहीं है। राजस्थान में अब सचिन पायलट ने पार्टी नेतृत्व को विदाई की चेतावनी दे दी है। सचिन पायलट और उनके समर्थक पहले से ही अप्रसन्न हैं और उनका एक पैर बाहर है ही। सचिन पायलट ने साल भर पहले बगावत ही की थी। उसे किसी तरह शांत किया गया, फिर भी असंतोष आज भी जारी ही है। पंजाब कांग्रेस में बड़ी फूट पड़ गई है और मुख्यमंत्री कै. अमरिंदर के खिलाफ विरोधी गुट ने आरपार की लड़ाई छेड़ दी है। उस पर चिंता तब और बढ़ जाती है जब प्रसाद जैसे नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो जाते हैं। कांग्रेस के बागियों के समूह ‘जी २३’ के सदस्य रहे जितिन प्रसाद और उनका परिवार कांग्रेस के निष्ठावान थे। उनके पिता ने सोनिया गांधी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा था। सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट भी उसी तरह के बागी थे, लेकिन उन्होंने पार्टी छोड़ने की बात कभी भी नहीं की थी। एक अन्य महत्वपूर्ण नेता, मध्य प्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी मध्य प्रदेश के २२ कांग्रेसी विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दी व इससे कमलनाथ की सरकार गिर गई। इस पतझड़ से बची-खुची कांग्रेस को नुकसान हो रहा है। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की करारी हार हुई। केरल में कांग्रेस की स्थिति अच्छी होने के बाद भी सत्ता स्थापित नहीं कर सकी। असम में अवसर होने के बावजूद कांग्रेस पिछड़ गई। पुडुचेरी मे सत्ता गंवा दी। इस तमाम पतझड़ में कांग्रेस को क्या करना चाहिए और कैसे खड़ा होना चाहिए? इस पर चर्चा नहीं की जाती है। कांग्रेस पार्टी का कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है, ऐसी मांग ‘जी २३’ के बागी नेता बार-बार कर रहे हैं। कांग्रेस अभी भी देश की मुख्य राष्ट्रीय और विपक्षी पार्टी है। कांग्रेस ने आजादी से पहले के दौर में और आजादी के बाद भी बहुत बेहतरीन काम किया है। आज जो देश खड़ा है, उसके निर्माण में कांग्रेसी शासन का योगदान रहा है। आज भी विश्व पटल पर ‘नेहरू-गांधी’ के रूप में देश की पहचान मिटाई नहीं जा सकी है। मनमोहन सिंह, नरसिम्हा राव, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की ‘छाप’ को कोई मिटा नहीं पाया है। लेकिन महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल को छोड़ दें तो कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। देश का राजनीतिक संतुलन बिगाड़ने वाली यह तस्वीर है। यह लोकतंत्र के लिए घातक स्थिति है। पार्टी में अंदरूनी विद्रोह होता ही रहता है। इससे भाजपा जैसी पार्टी भी मुक्त नहीं हैं। पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी आज परेशान हो गई है तथा चुनाव जीतने के लिए तृणमूल कांग्रेस से उधार लिए गए सभी लोग वापस अपने घर लौटने लगे हैं। सुवेंद्र अधिकारी के खिलाफ मुकुल रॉय ने खुलेआम विद्रोह कर दिया। भाजपा नेता इस विद्रोह को शांत नहीं कर पाए। उत्तर प्रदेश में योगी बनाम मोदी ऐसा गुप्त संघर्ष चल रहा है, ऐसी ‘मीडिया’ रिपोर्ट है। ये सब होने के बाद भी मोदी, शाह और नड्डा का नेतृत्व मजबूत है और भाजपा जमीन पर है। पुराने लोग चले जाएं तो भी नए लोगों को तैयार करने की क्षमता उनमें है। चुनाव जीतने की तकनीक उन्होंने सीख ली है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश चुनावों को ध्यान में रखते हुए, अनूपचंद्र पांडे को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था। श्री पांडे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव हैं। अब उनकी देखरेख में उत्तर प्रदेश का चुनाव होगा। उस पर साल भर में जितिन प्रसाद जैसे दूसरी पार्टी के युवा नेताओं को पार्टी में शामिल किया जाएगा। उत्तर प्रदेश के एक युवा कांग्रेसी नेता जितिन प्रसाद का भाजपा में प्रवेश, यह कोई मुद्दा नहीं हो सकता है, लेकिन प्रसाद के रूप में कांग्रेस को तोड़ने का उत्सव भाजपा ने मनाना शुरू कर दिया है, यह दिलचस्प बात है। जितिन प्रसाद, सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया हाल के दिनों में कांग्रेस के युवा चेहरे थे और उनसे उम्मीदें थीं। अहमद पटेल और राजीव सातव के निधन से पहले ही कांग्रेस में एक शून्य निर्माण हो गया है। उस पर पार्टी के कुछ युवा नेताओं ने भाजपा का मार्ग अपना लिया, यह अच्छा नहीं है। कांग्रेस आज भी ऐसी पार्टी है, जिसकी जड़ें देश भर के लोगों के मन में जमी हुई है। सोनिया गांधी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं। अब तक उन्होंने पार्टी की कमान सफलतापूर्वक संभाली है। अब राहुल गांधी को पार्टी में उनकी एक मजबूत टीम तैयार करनी ही होगी। यही कांग्रेस के सामने लगे प्रश्नचिह्न का ठोस जवाब हो सकता है।")


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