50 % कोटे को लांघे बिना OBC लिस्ट बढ़ाना मुमकिन? BJP ने ढूंढ निकाला जीत का मंत्र?
जातियों की सूची तो राज्य भी बनाते रहे हैं तो फिर इस बिल की जरूरत क्यों पड़ी. दरअसल मई महीने में मराठा आरक्षण पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार की ओर से इस तरह किसी भी समुदाय को OBC सूची में शामिल नहीं किया जा सकता.
नई दिल्लीः राज्यों को ओबीसी आरक्षण की सूची बनाने का अधिकार देश की संसद ने बिल के ज़रिए पास कर दिया. अब राज्य सरकारें ओबीसी वर्ग में नई जातियों को शामिल कर सकती हैं. लेकिन इसके साथ ही 50 फीसदी रिजर्वेशन के कोटे को बढ़ाने की मांग भी फिर से उठ खड़ी हुई है. सवाल है कि इस बिल की जरूरत क्यों पड़ी? क्या आरक्षण का कोटा 50 फीसदी से अधिक हो सकता है? संविधान के अंदर इसे लेकर क्या प्रावधान हैं? चार अक्षर का ये शब्द 'आरक्षण' जितना आसान और सरल लगता है इसका सियासी अध्याय उतना ही पेचीदा है.
आरक्षण संशोधन बिल के बाद राज्य बना सकेंगे OBC लिस्ट
संसद के हंगामेदार सत्र के बीच एक बिल आम सहमति से पास हो गया वो बिल था ओबीसी आरक्षण संशोधन बिल. इस बिल के कानून बनने से देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपने स्तर पर ओबीसी आरक्षण के लिए जातियों की सूची तय करने और उन्हें कोटा देने का अधिकार होगा. केंद्र सरकार ने कहा कि यदि राज्य की सूची को समाप्त कर दिया जाता तो लगभग 631 जातियों को शैक्षणिक संस्थान और नियुक्तियों में आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता .
क्यों जरूरी था आरक्षण पर बिल?
जातियों की सूची तो राज्य भी बनाते रहे हैं तो फिर इस बिल की जरूरत क्यों पड़ी. दरअसल मई महीने में मराठा आरक्षण पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार की ओर से इस तरह किसी भी समुदाय को OBC सूची में शामिल नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ओबीसी की लिस्ट तैयार करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास ही है.
अदालत के इस फैसले से महाराष्ट्र में मिला मराठा आरक्षण खारिज हो गया था और राज्य में आंदोलन शुरू हो गए थे. इस बिल के कानून बनने से महाराष्ट्र में मराठा समुदाय और हरियाणा में जाट समुदाय, गुजरात में पटेल समुदाय और कर्नाटक में लिंगायत समुदाय को OBC में शामिल होने का मौका मिल सकता है जिसकी मांग लंबे समय से होती रही है.
OBC के 27 फीसदी कोटे को बढ़ाए बिना क्या ये मुमकिन है ?
राज्यों को OBC की लिस्ट तैयार करने का अधिकार तो मिल गया लेकिन इसे लागू होने में सबसे बड़ा रोड़ा वर्तमान में आरक्षण कोटे की 50 फीसदी की कैपिंग है, जिसमें OBC के लिए 27 फीसदी आरक्षण कोटा निर्धारित है. पेच यही है अगर इस कानून के बाद गुजरात में पटेलों को आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार उन्हें ओबीसी में शामिल करती हैं तो पहले से उस सूची में शामिल ओबीसी जातियां नाराज हो सकती है.
ऐसे ही हरियाणा में जाट आरक्षण को लेकर है, उन्हें अगर ओबीसी की लिस्ट में शामिल किया जाता है तो दूसरी सैनी, गुर्जर जैसी जातियों की नाराजगी बढ़ सकती है. इसी तरह से महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को लेकर है. दरअसल OBC कोटा 27 फीसदी ही है सूची में शामिल जातियों को डर है कि बाकी जातियां भी शामिल हुई तो उनके कोटे में कैंची ना चल जाए , राज्यों की दिक्कत ये है कि 27 % की इस सीमा को लांघे बिना सबको एडजस्ट करना मुश्किल है इसीलिए इस बिल के पास होने के साथ ही 50 फीसदी आरक्षण के दायरे को बढ़ाने की मांग भी हो रही है
इंदिरा साहनी केस में SC तय कर चुका 50 % की अधिकतम सीमा
1992 में इंदिरा साहनी केस में 'मंडल जजमेंट' के नाम से मशहूर फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि रिजर्वेशन की लिमिट 50 फीसदी की सीमा क्रॉस नहीं कर सकती. अगर कोई सरकार 50 फीसदी की सीमा को पार करती है तो वह जूडिशल स्क्रूटनी के दायरे में होगा. मई महीने में मराठा आरक्षण के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर रिजर्वेशन के लिए 50 फीसदी की लिमिट नहीं रही तो फिर समानता के अधिकार का क्या होगा ?
दरअसल महाराष्ट्र सरकार की दलील थी कि इंदिरा साहनी जजमेंट को दोबारा देखने की जरूरत है . जिसे 29 साल बाद दोबारा देखने से सुप्रीम कोर्ट ने साफ इनकार करते हुए कहा कि इंदिरा साहनी में 50 % रिजर्वेशन का लिमिट तय करने का जो फैसला हुआ था उसे बाद के कई जजमेंट में मान्य करार दिया जा चुका है और ऐसे में इंदिरा साहनी जजमेंट को दोबारा देखने की जरूरत नहीं है.
कानून को 9 वीं अनुसूची में डाल कोर्ट में चुनौती से बच सकते हैं ?
आरक्षण संबंधी प्रावधानों को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की जाती रही है, ताकि उन्हें न्यायिक समीक्षा से संरक्षण प्रदान किया जा सके. 9 वीं अनुसूची में केंद्र और राज्य कानूनों की एक ऐसी सूची है, जिन्हें कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती. लेकिन 1973 को सुप्रीम कोर्ट के केशवानंद भारती मामले में आए निर्णय के बाद संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल किये गए किसी भी कानून की न्यायिक समीक्षा हो सकती है बशर्ते कोई कानून मौलिक अधिकारों का या फिर संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता हो.
2007 में भी सुप्रीम कोर्ट साफ कर चुका है कि 24 अप्रैल 1973 के बाद संविधान की 9 वीं अनुसूची में शामिल किए गए किसी भी कानून की न्यायिक समीक्षा हो सकती है. कोर्ट ने फैसले में कहा कि संसद द्वारा बनाए गए कानूनों की व्याख्या न्यायपालिका को करनी है और उनकी वैधानिकता की जांच संसद के बजाय न्यायालय ही करेगा. संविधान के जानकारों के मुताबिक अगर 50 फीसदी सीमा पार करते हुए रिजर्वेशन दिया जाता है और इसके लिए संविधान में संशोधन कर उसे 9वीं अनुसूची में रखा जाता है तो भी मामला जूडिशल स्क्रूटनी के दायरे में होगा .
BJP की चुनावी राज्यों में 'ओबीसी कार्ड' खेलने की तैयारी
यूपी सरकार चुनाव से पहले OBC जातियों को अपने पाले में लेने के लिए 39 और जातियों को ओबीसी में सम्मलित करने की तैयारी कर रही है . सर्वे का काम तेजी से चल रहा है यूपी में OBC सूची में इस समय 79 जातियां हैं कुछ महीनों बाद यूपी समेत उत्तराखंड, गुजरात, पंजाब, गोवा जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव है जहां आरक्षण कार्ड खेलने की पूरी तैयारी हो चुकी है मेडिकल एजुकेशन में अखिल भारतीय कोटे के तहत आरक्षण का फैसला हो या पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देना हो बीजेपी इसे सरकार की उपलब्धि के तौर पर रख रही है संसद में केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कहा कि जितनी तेजी से हमारी सरकार ने देश के पिछड़ों, दलितों के लिए कदम उठाएं हैं वो इतिहास में सबसे ज्यादा है .
केन्द्र सरकार ने आरक्षण का ऐसा कार्ड खेल दिया कि सभी दल उसमें उलझ कर रह गए . राजनीतिक दलों को पता है कि आरक्षण की सीमा बढ़ाए बिना OBC सूची में नई जातियों को शामिल करना मुश्किल होगा यही वजह है कि चुनाव के समय कोई भी राजनीतिक दल ऐसा जोखिम लेने को तैयार नहीं क्योंकि उन्हें डर है कि विरोध किया तो ओबीसी वोट बैंक नाराज न हो जाएं.
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