नई दिल्ली: Priyanka Gandhi Speech: 'यह संविधान केवल दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह न्याय, अभिव्यक्ति और आकांक्षाओं का दीपक है...'- ये प्रियंका गांधी के उस भाषण का अंश है, जो उन्होंने पहली बार लोकसभा में दिया है. प्रियंका के भाषण की ढ़ेरों क्लिप्स अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं. अपने पहले ही संसदीय भाषण में प्रियंका गांधी ने खूब तारीफें बटोरी हैं. हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब प्रियंका ने ऐसा भाषण दिया. उनकी वाकपटुता पहले से ही तेज रही है. आइए, 1999 का एक किस्सा जानते हैं.


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रायबरेली का लोकसभा चुनाव
यह बात 1999 की है, तब प्रियंका गांधी महज 27 साल की थीं. केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की अलायंस वाली सरकार हुआ करती थी. हल्की-हल्की ठंड दस्तक दे चुकी थी. देश में लोकसभा चुनाव हो रहे थे. कांग्रेस पार्टी ने रायबरेली से गांधी परिवार के करीबी कैप्टन सतीश शर्मा को टिकट दिया. जबकि भाजपा ने गांधी परिवार के ही एक अन्य सदस्य अरुण नेहरू को टिकट दिया. अरुण रिश्ते में राजीव गांधी के चचेरे भाई लगते थे. लेकिन बोफोर्स विवाद के बाद वे वीपी सिंह के साथ जन मोर्चा में चले गए थे. 


अरुण नेहरू की जीत मान रहे थे लोग 
रायबरेली की सीट गांधी परिवार के नाक का सवाल बन गई थी. यदि इस सीट से अरुण नेहरू जीत जाते तो कांग्रेस पार्टी को बड़ा झटका लगता. इसलिए पूरी पार्टी ने ये सीट जीतने के लिए जोर लगा दिया. हालांकि, अरुण नेहरू यहां से 1980 और 1984 के चुनाव में जीत चुके थे. सतीश शर्मा के मुकाबले उन्हें मजबूत माना जा रहा था. पॉलिटिकल पंडितों ने अरुण की जीत पर करीब-करीब मुहर लगा दी थी.


प्रियंका के इस भाषण ने पलट दिया चुनाव
लेकिन रायबरेली में चुनाव की हवा तब पूरी तरह बदल गई, जब प्रियंका गांधी की यहां पर चुनावी सभा हुई. प्रियंका गांधी के भाषण में एक वाक्य ऐसा आया, जिससे अरुण नेहरू के खिलाफ बयार बहने लगी. ये लाइन थी- 'क्या आप उस व्यक्ति के लिए वोट करेंगे, जिसने मेरे पिता की पीठ में छुरा भोंका था?' बस फिर क्या था, रायबरेली की जनता को ये इमोशनल बात छू गई और पासा पलट गया. प्रियंका ने आगे कहा-  वह (अरुण नेहरू) कभी आपके (पब्लिक) के साथ वफादारी नहीं निभा सकता. उसे पहचानना होगा. उसके खिलाफ खामोश नहीं रहना, बल्कि अपने वोट से उसे करारा जवाब देना होगा.


ये रहे चुनाव के नतीजे
प्रियंका गांधी का चलाया हुआ तीर ठीक निशाने पर लगा. अरुण नेहरू बुरी तरह चुनाव हारे. वे रायबरेली में चौथे नंबर पर रहे. उनसे ऊपर बसपा और समाजवादी पार्टी  के प्रत्याशी थे. कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा चुनाव जीत गए, उन्हें 2.24 लाख वोट मिले. जबकि अरुण नेहरू 1.36 लाख वोटों में ही सिमट गए. अरुण नेहरू की हार का अंतर 87 हजार से अधिक वोटों का रहा. 


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