कौन हैं आरसीपी सिंह? जिन्होंने थामा बीजेपी का दामन, कभी थे नीतीश कुमार के सबसे करीबी सिपहसालार
आरसीपी सिंह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए हैं. बीजेपी मुख्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, पार्टी महासचिव अरुण सिंह और राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी की मौजूदगी में उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की. आपको इस रिपोर्ट में आरसीपी सिंह के सियासी करियर और उनके बारे में कई अहम जानकारी देते हैं.
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंत्रिपरिषद के सदस्य रह चुके जनता दल-यूनाइटेड (जदयू) के पूर्व नेता रामचंद्र प्रसाद सिंह उर्फ आरसीपी सिंह बृहस्पतिवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए. भाजपा मुख्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, पार्टी महासचिव अरुण सिंह और राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी की मौजूदगी में आरसीपी सिंह ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की.
आरसीपी सिंह से जुड़ी 5 अहम बातें...
1). आरसीपी सिंह मूल रूप से नालंदा के रहने वाले हैं और बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी यहीं से हैं. आरसीपी सिंह और नीतीश कुमार दोनों ही कुर्मी समाज से ही आते हैं. सिंह को नीतीश का बेहद करीबी माना जाता था. उन्हें जेडीयू में नंबर 2 का दर्जा हासिल था. वर्ष 2020 में जेडीयू अध्यक्ष बनने से पहले वो पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव थे.
2). सियासत में कदम रखने से पहले आरसीपी सिंह यूपी कैडर के आईएएस ऑफिसर रह चुके हैं. वर्ष 1996 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में नीतीश कुमार केंद्रीय मंत्री थे तो उन दिनों आरसीपी सिंह केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के निजी सचिव हुआ करते थे, यही दौर था जब नीतीश की नजर आरसीपी पर पढ़ी थी और जब नीतीश को रेल मंत्रालय मिला तो उन्होंने आरसीपी सिंह को अपना विशेष सचिव बनाया.
3). नीतीश कुमार जब वर्ष 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने आरसीपी सिंह को दिल्ली से बिहार बुला लिया. उस वक्त नीतीश ने आरसीपी सिंह को अपना प्रधान सचिव नियुक्त किया और यही दौर था जब आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू में अपना प्रभाव जमा लिया और अपनी पकड़ लगातार मजबूत कर लिया.
4). वर्ष 2010 तक नीतीश कुमार के प्रधान सचिव के तौर पर आरसीपी सिंह कार्यरत रहे. इसके बाद समय से पहले ही उन्होंने 2010 में आईएएस की सेवा से रिटायरमेंट ले लिया. नीतीश कुमार ने इसके बाद उन्हें राज्यसभा भेज दिया. हालांकि वर्ष 2015 में जब नीतीश और लालू एक दूजे के हुए और प्रशांत किशोर (पीके) की अहमियत नीतीश के लिए बढ़ने लगी, उस दौरान आरसीपी सिंह हाशिये पर आ गए थे.
5). वर्ष 2016 में नीतीश कुमार ने दोबारा आरसीपी सिंह पर भरोसा जताया और उन्हें दोबारा राज्यसभा भेजा. 2019 में नीतीश और पीके के बीच दरार बढ़ी तो आरसीपी सिंह के लिए ये लड़ाई संजीवनी साबित हुई और प्रशांत किशोर को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया. एक बार फिर जेडीयू में आरसीपी सिंह का वर्चस्व बढ़ने लगा और उन्हें जेडीयू की कमान सौंप दी गई. ये फैसला करना नीतीश के लिए मुश्किल था कि ललन सिंह या आरसीपी सिंह?
पिछले साल अगस्त में जदयू से दिया था इस्तीफा
कभी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबियों में शुमार रहे आरसीपी सिंह ने पिछले साल अगस्त में जदयू से इस्तीफा दे दिया था. भाजपा से नजदीकियों के चलते जदयू ने उन्हें दोबारा राज्यसभा भी नहीं भेजा. इसके बाद उन्हें केंद्रीय मंत्री का पद भी गंवाना पड़ा था.
जदयू छोड़ने के बाद से ही आरसीपी सिंह के भाजपा में जाने के कयास लगाए जा रहे थे. वह कुर्मी समाज से आते हैं. कुर्मी मतदाता नीतीश कुमार के समर्थक माने जाते हैं क्योंकि वह खुद भी इसी समाज से ताल्लुक रखते हैं.
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