नई दिल्ली: RSS and BJP: देश में लोकसभा चुनाव-2024 के नतीजों ने सत्ताधारी दल भाजपा के साथ-साथ विपक्षी दलों को भी चौंका दिया है. बीते दो चुनाव के मुकाबले इस बार भाजपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा. कई विश्लेषकों ने इसके लिए RSS को जिम्मेदार बताया है. ऐसे में सवाल उठता है कि भविष्य में RSS भाजपा का साथ छोड़ सकती है? ये सवाल इसलिए लाजमी है क्योंकि दो किताबें ऐसी हैं, जिनमें दावा है कि RSS ने दो बार आम चुनाव में कांग्रेस का समर्थन किया है. 


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दावा 1- RSS ने इंदिरा गांधी का समर्थन किया
इमरजेंसी के दौरान देश के अधिकतर विपक्षी नेता जेल में डाल दिए गए थे. उस दौरान RSS के नेताओं को बंदी बना लिया गया था. लेकिन कहा जाता है कि उन पर सख्ती नहीं बरती गई. पत्रकार नीरजा चौधरी की किताब 'How Prime Minister Decides’ में दावा किया गया है कि RSS ने इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी से मित्रवत संबंध रखा. तत्कालीन RSS प्रमुख बालासाहेब देवरस ने इंदिरा को कई बार उन्हें पत्र लिखे.  इंदिरा ने अपने हित के लिए संघ का इस्तेमाल किया. लेकिन संगठन से दूरी कायम रखी. दावा है कि 1980 के लोकसभा चुनाव में संघ ने इंदिरा को चुनाव में भी मदद की थी. इस चुनाव में इंदिरा गांधी और कांग्रेस को हिंदूवादी कहा जा रहा था. उन्हें मुस्लिम वोटर्स से कुछ खास समर्थन भी नहीं मिला. हालांकि, हिंदू वोटर्स ने उन्हें वोट दिए, इसमें RSS के कार्यकर्ताओं की भी भूमिका थी. 353 सीटों के साथ इंदिरा गांधी सत्ता में काबिज हुईं. उन्होंने कई व्यक्तिगत मौकों पर माना कि चुनाव में उन्हें RSS का समर्थन मिला. लेकिन ये बात इंदिरा ने सार्वजनिक तौर पर कभी नहीं कही.


दावा 2 - RSS ने राजीव गांधी को दिया था आश्वासन
कहते हैं कि RSS ने 1984 के लोकसभा चुनाव कांग्रेस का समर्थन किया था. राशिद किदवई की किताब 'Ballot: Ten Episodes that Shaped India's Democracy' में दावा किया गया है कि 1984 के चुनाव में कांग्रेस के PM कैंडिडेट राजीव गांधी ने RSS से मदद मांगी थी. राजीव गांधी ने उस वक्त खालिस्तानी और सिख कट्टरपंथियों के खिलाफ चुनाव में बड़ा मुद्दा बनाया था. इससे ये प्रचारित किया गया कि हिंदू खतरे में हैं और उन्हें राजीव गांधी ही बचाने में सक्षम हैं. किताब की मानें तो राजीव गांधी ने तब के सरसंघचालक बाला साहेब देवरस के साथ एक सीक्रेट मीटिंग भी की थी. इसमें संघ ने कांग्रेस की मदद करने का आश्वासन दिया था. हालांकि, भाजपा इस बात को नकारती आई है. 1984 में नागपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस की टिकट पर सांसद बने बनवारी लाल पुरोहित भी ऐसा ही दावा किया था. उन्होंने साल 2007 में कहा कि राजीव गांधी ने मुझसे पूछा था कि क्या देवरस को जानते हैं. इस पर मैंने कहा- हां. फिर राजीव ने पूछा- यदि हम राम जन्मभूमि का शिलान्यास कराने का वादा करें, तो RSS हमारी मदद करेगा?


क्या BJP से नाराज है संघ?
चुनाव के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का बयान आया- शुरू में हम अक्षम होंगे. तब RSS की जरूरत पड़ती थी. आज हम बढ़ गए हैं और सक्षम हैं.BJP अपने आप को चलाती है. यही अंतर है. इस बयान के बाद से ही संघ और भाजपा में फासलों की खबरें आने लगीं. 10 जून को RSS चीफ मोहन भागवत ने नागपुर में संघ के 'कार्यकर्ता विकास वर्ग समारोह' के समापन के पर भाषण दिया. उन्होंने कहा विपक्ष को विरोधी पक्ष की जगह प्रतिपक्ष कहना चाहिए. जो मर्यादा की पालना करते हुए काम करता है, गर्व करता है, लेकिन अहंकार नहीं करता, वही सही मायनों में सेवक कहलाने का अधिकार रखता है. मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है. मणिपुर अभी तक जल रहा है. त्राहि-त्राहि कर रहा है. उस पर कौन ध्यान देगा? इस समस्या को प्राथमिकता से सुलझाया जाए. 


संघ लेगा कोई बड़ा फैसला?
सवाल ये उठता है कि संघ आने वाले समय में कोई बड़ा फैसला करेगा या नहीं. यह स्पष्ट नहीं है कि संघ भाजपा को छोड़कर किसी अन्य दल के लिए समर्थन खड़ा करेगा या अपना कोई अलग दल बनाएगा. लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भाजपा में अब भी RSS का दखल है और संभव है कि आने वाले समय में एक बार फिर रिश्ते सामान्य हो जाएं.


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