Sedition: अंग्रेजों का वो कानून, जिसने महात्मा गांधी-भगत सिंह को जेल पहुंचाया, जानें राजद्रोह कानून के बारे में
Sedition: सुप्रीम कोर्ट आज यानी 1 मई को राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून और इसके तहत दर्ज की जाने वाली प्राथमिकी पर रोक लगाने संबंधी अपने निर्देश की अवधि पिछले साल अक्टूबर तक बढ़ाई थी. साथ ही सरकार को इसकी समीक्षा के लिए समय दिया था. सोमवार को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ के सामने इस कानून की वैधता को चुनौती देने वाली 16 याचिकाएं सूचीबद्ध हैं.
नई दिल्लीः Sedition: सुप्रीम कोर्ट आज यानी 1 मई को राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून और इसके तहत दर्ज की जाने वाली प्राथमिकी पर रोक लगाने संबंधी अपने निर्देश की अवधि पिछले साल अक्टूबर तक बढ़ाई थी. साथ ही सरकार को इसकी समीक्षा के लिए समय दिया था. सोमवार को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ के सामने इस कानून की वैधता को चुनौती देने वाली 16 याचिकाएं सूचीबद्ध हैं.
राजद्रोह कानून क्या है?
आईपीसी की धारा 124ए में राजद्रोह कानून का उल्लेख है. इसके तहत 'जो कोई भी मौखिक या लिखित शब्दों द्वारा, या संकेतों द्वारा, या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा, या अन्यथा, घृणा या अवमानना करता है या लाने का प्रयास करता है, या कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष को उत्तेजित करता है या उत्तेजित करने का प्रयास करता है, उसे दंडित किया जाएगा. आजीवन कारावास के साथ, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकता है ...'
विद्रोह में वैमनस्य और शत्रुता की भावना शामिल होती है. हालांकि, इस धारा के तहत घृणा या अवमानने फैलाने की कोशिश किए बगैर टिप्पणियों को अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता है.
राजद्रोह के तहत क्या सजा होती है?
राजद्रोह के तहत आरोपी को सरकारी नौकरी पाने से रोका जा सकता है. जब भी कोर्ट से बुलावा आएगा, आरोपी को पेश होना होगा. पासपोर्ट जब्त कर लिया जाता है. राजद्रोह गैर जमानती अपराध है. इसमें तीन साल से उम्रकैद की सजा हो सकती है. साथ ही जुर्माना लगाया जा सकता है.
राजद्रोह कानून का इतिहास क्या है?
राजद्रोह कानून इंग्लैंड में 17वीं सदी में आया था. उस समय विधि निर्माताओं का मानना था कि सरकार के प्रति अच्छी राय रखने वालों को ही सिर्फ अस्तित्व में या सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होना चाहिए. इसे 1837 में ब्रिटिश राजनीतिज्ञ और इतिहासकार थॉमस मैकाले ने तैयार किया था.
इसे आईपीसी में 1870 में शामिल नहीं किया गया था. इसे 1870 में जेम्स स्टीफन की ओर सिए पेश किए गए संशोधन के जरिए आईपीसी में जोड़ा गया था. बता दें कि ब्रिटिश शासन की नीतियों की आलोचना करने पर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और भगत सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को जेल जाना पड़ा था. उन्हें 'राजद्रोही' भाषण, लेखन और गतिविधियों के लिए दोषी ठहराया गया था.
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