नई दिल्ली: शिवसेना ने अपने मुख पत्र सामना के जरिए से राज्य के नए सीएम एकनाथ शिंदे और बागी विधायकों के साथ बीजेपी पर निशाना साधा है. साथ ही राज्यपाल और न्यायालय के प्रति नाराजगी जताई.


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राज्यपाल और न्यायपालिका पर उठाए सवाल


सामना में लिखा गया है कि राज्यपाल और न्यायालय ने सत्य को खूंटी पर टांग दिया और फैसला सुनाया. महाभारत से द्रौपदी का उल्लेख करते हुए संपादिकिया में कहा गया की जनता जनार्दन श्रीकृष्ण की तरह अवतार लेगी और महाराष्ट्र की इज्जत लूटनेवालों पर सुदर्शन चलाएगी.


सामना में लिखा गया कि कल महाराष्ट्र की राजनीति में सुनहरा पन्ना लिखा गया. उद्धव ठाकरे की तारीफ करते हुए कहा गया कि उद्धव चाहते तो वह भी अकड़ों का खेल खेल सकते थे, लेकिन उन्होंने अपने शालीन स्वभाव के अनुरूप भूमिका अपनाई. लेख में कहा गया कि दगाबाजी करने वाले कल तक उद्धव की जय जय कार किया करते थे. 


अटल बिहारी वाजपेई का जिक्र करते हुए संपादकीय में बताया गया कि अब भाजपा में उनकी विचारधारा खत्म हो चुकी है. महाभारत से द्रौपदी का उल्लेख करते हुए संपादिकिया में कहा गया की जनता जनार्दन श्रीकृष्ण की तरह अवतार लेगी और महाराष्ट्र की इज्जत लूटनेवालों पर सुदर्शन चलाएगी.


1 जुलाई के सामना में क्या लिखा गया? पूरा पढ़िए..


'सत्ता पा ली, आगे क्या?'


'महाराष्ट्र की राजनीति में एक सुनहरा पन्ना लिखा गया. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद एक पल में मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. वे भी कुछ समय रुक कर लोकतंत्र की जीत के लिए आंकड़ों का खेल खेल सकते थे. विश्वासमत प्रस्ताव के समय भी हंगामा खड़ा करके कुछ विधायकों को निलंबित करवाकर वे सरकार बचा सकते थे, परंतु उन्होंने वह मार्ग नहीं चुना और अपने शालीन स्वभाव के अनुरूप भूमिका अपनाई. ‘वर्षा’ बंगला तो उन्होंने पहले ही छोड़ दिया था. बंगला अपने पास ही रहे इसके लिए उन्होंने मिर्ची का हवन आदि वगैरह झमेला नहीं किया. उन्होंने सामान समेटा व ‘मातोश्री’ पहुंच गए. अब मुख्यमंत्री पद व विधान परिषद के विधायक का पद भी त्याग दिया. पूरे समय शिवसेना का कार्य करने के लिए वे मुक्त हो गए, ऐसा उन्होंने घोषित किया है. उद्धव ठाकरे ने जाते-जाते कहा, ‘मैं सभी का आभारी हूं, परंतु मेरे करीबी लोगों ने मुझे धोखा दिया.’ यह सही ही है. जिन्होंने दगाबाजी की वे करीब २४ लोग कल तक उद्धव ठाकरे की ‘जय-जयकार’ किया करते थे.'


'इसके आगे भी कुछ समय तक दूसरों के भजन में व्यस्त रहेंगे. पार्टी से बाहर निकलकर दगाबाजी करनेवाले विधायकों के खिलाफ दल-बदल कानून के तहत कार्रवाई शुरू करते ही सर्वोच्च न्यायालय ने उसे रोक दिया तथा दल-बदल कार्रवाई किए बगैर बहुमत परीक्षण करें, ऐसा कहा. राज्यपाल और न्यायालय ने सत्य को खूंटी में टांग दिया और निर्णय सुनाया. इसलिए विधि मंडल की दीवारों पर सिर फोड़ने में कोई अर्थ नहीं था. दल बदलनेवाले, पार्टी के आदेशों का उल्लंघन करनेवाले विधायकों की अपात्रता से संबंधित फैसला आने तक सरकार को बहुमत सिद्ध करने के लिए कहना संविधान से परे है. परंतु संविधान के रक्षक ही ऐसे गैर कानूनी कृत्य करने लगते हैं और ‘रामशास्त्री’ कहलानेवाले न्याय के तराजू को झुकाने लगते हैं, तब किसके पास अपेक्षा से देखना चाहिए? इस तमाम पार्श्वभूमि में अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा कही गई दो बातें याद आती हैं.'


'अटल बिहारी की सरकार सिर्फ एक मत से गिरने के दौरान ही अटल बिहारी विचलित नहीं हुए. ‘तोड़-फोड़ करके हासिल किए गए बहुमत को मैं चिमटे से भी स्पर्श नहीं करूंगा’, ऐसा उन्होंने कहा ही. लेकिन उन्होंने आगे जो कहा उसे आज के भाजपाई नेताओं के लिए स्वीकार करना जरूरी है. उन्होंने लोकसभा के सभागृह में कहा, ‘मंडी सजी हुई थी, माल भी बिकने को तैयार था लेकिन हमने माल खरीदना पसंद नहीं किया!’ अटल जी की विरासत अब खत्म हो गई है. महाराष्ट्र के विधायकों को पहले सूरत ले गए. वहां से उन्हें असम पहुंचाया. अब वे गोवा आ गए हैं और उनका स्वागत भाजपावाले मुंबई में कर रहे हैं. देश की सीमा की रक्षा के लिए उपलब्ध हजारों जवान खास विमान से मुंबई हवाई अड्डे पर उतरे. इतना सख्त बंदोबस्त केंद्र सरकार कर रही है, तो किसके लिए? जिस पार्टी ने जन्म दिया उस पार्टी से, हिंदुत्व से, बालासाहेब ठाकरे से द्रोह करनेवाले विधायकों की रक्षा के लिए? हिंदुस्थान जैसे महान देश और इस महान देश का संविधान अब नैतिकता के पतन से ग्रसित हो गया है. ये परिस्थितियां निकट भविष्य में बदलेंगी ऐसे संकेत तो नजर नहीं आ रहे हैं क्योंकि बाजार में सभी रक्षक बिकने के लिए उपलब्ध हैं.'


'हमारी सद्-सद् विवेक बुद्धि बेहद ठंडी पड़ गई है. यह दर्द नहीं धोखा है. ज्यादातर लोगों को जिस तरह से आकाश में विहार करना नहीं जमता है, उसी तरह से विचार करना भी नहीं जमता है. लोगों को शॉर्टकट से सब कुछ हासिल करना है. असीमित सत्ता का और पाशवी बहुमत का प्रचंड दुरुपयोग हो रहा है. विरोधियों को हरसंभव मार्ग से परेशान नहीं, बल्कि प्रताड़ित करने का तंत्र तैयार हो गया है. योगी श्री अरविंद ने एक बार कहा था, ‘राजशाही के हाथ में अधिकाधिक अधिकार सौंपने की प्रवृत्ति फिलहाल इतनी प्रबल हो गई है कि इससे व्यक्ति की स्वतंत्रता और स्वयंस्फूर्त प्रयासों को स्थान ही नहीं मिलता है तथा यदि वह मिला तो भी इतना अपर्याप्त होता है कि अंतत: सत्तातंत्र के सामने व्यक्ति असहाय हो जाता है!’ आज विरोध में बोलनेवाले व्यक्तियों को इसी क्रूर तंत्र का इस्तेमाल करके दबाया जा रहा है. दुनियाभर में लोकतंत्र का डंका पीटते घूमना और अपने ही लोकतंत्र व व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दीये के नीचे अंधेरा ऐसी वर्तमान स्थिति है. विरोधी दलों का अस्तित्व खत्म करके इस देश में लोकतंत्र कैसे जीवित रहेगा? शिवसेना के विधायक टूटे इसके लिए कौन-सी महाशक्ति प्रयास कर रही थी यह मुंबई में तैनात की गई सेना से खुल गया है. परंतु पार्टी बदलने व विभाजन को बढ़ावा देने की प्रक्रिया राजभवन में चलनेवाली है क्या? महाराष्ट्र में अस्थिरता निर्माण करने के लिए संविधान के रक्षक राजभवन से ताकत वैसे दे सकते हैं? लोकनियुक्त विधानसभा का अधिकार हमारी अदालतें व राज्यपाल कैसे ध्वस्त कर सकते हैं? इन सवालों के जवाब इतने अस्पष्ट कभी नहीं हुए थे, परंतु आज उत्तर किसी को नहीं चाहिए.'


'सत्ता ही सभी सवालों का जवाब बन गई है. महाराष्ट्र में गुरुवार को जो हुआ उससे सत्ता ही सर्वस्व और बाकी सब झूठ इस पर मुहर लग गई. सत्ता के लिए हमने शिवसेना से दगाबाजी नहीं की, ऐसा कहनेवालों ने ही मुख्यमंत्री पद का मुकुट खुद पर चढ़ा लिया. वह भी किसके समर्थन से, तो इस पूरी बगावत से हमारा कोई संबंध नहीं है, ऐसा भाव जो सरलता से दिखा रहे थे उनकी शह पर. मतलब शिवसेना से संबंधित नाराजगी वगैरह यह सब बहाना था. हमें हैरानी होती है तो देवेंद्र फडणवीस को लेकर. उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में वापस आना था परंतु बन गए उपमुख्यमंत्री. दूसरी बात ये है कि यही ढाई-ढाई वर्ष मुख्यमंत्री बांटने का फॉर्मूला चुनाव से पहले दोनों ने तय किया था, तो फिर उस समय मुख्यमंत्री पद को लेकर युति क्यों तोड़ी? ठीक है, अनैतिक मार्ग से ही क्यों न हो तुमने सत्ता हासिल की, परंतु आगे क्या? यह सवाल बचता ही है. इसका जवाब जनता को देना ही होगा. कौरवों ने द्रौपदी को भरी सभा में खड़ा करके बेइज्जत किया व धर्मराज सहित सभी निर्जीव बने ये तमाशा देखते रहे. ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र में हुआ. परंतु आखिरकार भगवान श्रीकृष्ण अवतरित हुए. उन्होंने द्रौपदी की इज्जत और प्रतिष्ठा की रक्षा की. जनता जनार्दन भी श्रीकृष्ण की तरह अवतार लेगी और महाराष्ट्र की इज्जत लूटनेवालों पर सुदर्शन चलाएगी… निश्चित तौर पर!'


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