भोपालः सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा पीड़िता को राखी बांधने की शर्त के साथ यौन उत्पीड़न के आरोपी को जमानत देने के फैसले को रद्द कर दिया. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने जजों से इस तरह के आदेश पारित करने से बचने को कहा है. 


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9 महिला वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी याचिका
ऐसे संवेदनशील मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं. दरअसल, 30 जुलाई 2020 को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया था जिसके खिलाफ 9 महिला वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट को अपनी राय देते हुए इस हाई कोर्ट के आदेश को गलत बताया. नौ महिला वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.



महिला वकीलों ने कहा कि ऐसे आदेश महिलाओं को एक वस्तु की तरह दिखाते हैं. दरअसल, अप्रैल 2020 में पड़ोस में रहने वाली महिला के घर में घुसकर छेड़छाड़ करने के आरोप में जेल में बंद विक्रम बागरी ने इंदौर में जमानत याचिका दायर की थी.


यह है पूरा मामला
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने छेड़छाड़ के आरोपित को बड़ी ही अलग और अनूठी शर्तों पर जमानत दी थी. कोर्ट ने कहा था कि आरोपी विक्रम बागरी रक्षाबंधन के दिन पीड़िता के घर मिठाई लेकर जाए और उसे रक्षा का वचन देते हुए उससे राखी बंधवाए. मामला उज्जैन जिले की खाचरौद तहसील के ग्राम सांदला का था. यहीं के निवासी विक्रम पुत्र भेरूलाल बागरी पर आरोप था कि वह 20 अप्रैल 2020 की रात करीब ढाई बजे एक महिला के घर में घुसा और उससे छेड़छाड़ की थी. 



भाटपचलाना थाना पुलिस ने विक्रम के खिलाफ अलग-अलग धाराओं में प्रकरण दर्ज कर दो जून को उसे गिरफ्तार कर लिया था. दो महीने से विक्रम जेल में था. उसने हाई कोर्ट में यह कहते हुए जमानत याचिका लगाई थी कि आरोप लगाने वाली महिला के पति को उसने लॉकडाउन में कुछ रुपये उधार दिए थे. जब उसने रुपये वापस मांगे तो उसे छेड़छाड़ के आरोप में फंसा दिया गया था.


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अटार्नी जनरल ने की निंदा
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश की सोमवार को आलोचना करते हुए अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि लगता है न्यायाधीश अपने दायरे से आगे निकल गए, यह महज ड्रामा है. इसकी निंदा होनी चाहिए. वेणुगोपाल ने कहा था कि जजों को जेंडर सेंस्टाइजेशन (महिलाओं के प्रति संवेदनशील) का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए.



उन्होंने यह भी कहा कि जमानत की शर्तों के बारे में सुप्रीम कोर्ट का आदेश सभी वेबसाइट्स पर अपलोड किया जाना चाहिए ताकि उन्हे पता रहे कि क्या किया जा सकता है और क्या नहीं. अटार्नी जनरल ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ज्युडिशियल एकेडेमी में पढ़ाया जाना चाहिए और उसे ट्रायल कोर्ट व हाईकोर्ट के समक्ष भी रखा जाना चाहिए ताकि जजों को पता रहे कि उन्हें क्या करना चाहिए.


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