नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को एक सेना में स्थायी कमीशन (Permanent Commission in Army) को लेकर ऐतिहासिक टिप्पणी की. कोर्ट ने कमीशन को लेकर महिलाओं के लिए मेडिकल फिटनेस की आवश्यकता को 'मनमाना' और 'तर्कहीन' माना, साथ ही कहा कि 'हमारे समाज की संरचना पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए बनाई गई है.'


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कोर्ट की इस टिप्पणी को बदलाव के बड़े रुख की तरह देखा जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने सेना को दो महीने के भीतर महिला अधिकारियों के लिए स्थायी आयोग के अनुदान पर विचार करने का निर्देश दिया है. 


कोर्ट ने मेडिकल फिटनेस को बताया भेदभाव वाला
जानकारी के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सेना की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) मूल्यांकन और देर से लागू होने पर चिकित्सा फिटनेस मानदंड महिला अधिकारियों के खिलाफ भेदभाव करता है.



अदालत ने कहा, 'मूल्यांकन के पैटर्न से एसएससी (शॉर्ट सर्विस कमीशन) महिला अधिकारियों को आर्थिक और मनोवैज्ञानिक नुकसान होता है.' महिला अधिकारी चाहती थीं कि उन लोगों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की जाए जिन्होंने कथित रूप से अदालत के पहले के फैसले का पालन नहीं किया था.


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80 महिला अधिकारियों ने दायर की थी याचिका
सेना में स्थायी कमीशन (Permanent Commission in Army) के लिए लगभग 80 महिला अधिकारियों की ओर से याचिकाएं दायर की गईं थीं, जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की ओर से फैसला सुनाया गया.


कोर्ट ने कहा कि महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए एसीआर मूल्यांकन मापदंड में उनके द्वारा भारतीय सेना के लिए अर्जित गौरव को नजरअंदाज किया गया है.


137 पन्ने का है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
137 पन्ने के फैसले में कोर्ट ने कहा कि कई ऐसी महिला अधिकारियों को भी परमानेंट कमीशन नहीं दिया जा रहा है, जिन्होंने अतीत में अपनी सेवा से सेना और देश के लिए सम्मान अर्जित किया है. महिलाओं के साथ हर जगह होने वाले भेदभाव पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा, "हमारी सामाजिक व्यवस्था पुरुषों ने पुरुषों के लिए बनाई है.



इसमें समानता की बात झूठी है. हमें बदलाव करना होगा. महिलाओं को बराबर अवसर दिए बिना रास्ता नहीं निकल सकता." 


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