ISRO के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को फंसाने वालों के खिलाफ CBI जांच
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ CBI जांच होगी. देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश दिया है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को फंसाने वाले केरल पुलिस के तीन अधिकारियों के खिलाफ CBI जांच का आदेश दिया है. जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूर्व जज जस्टिस डी के जैन की अध्यक्षता में बनी कमिटी की रिपोर्ट CBI को सौंप दी है.
3 महीने में पेश करनी होगी रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने CBI से 3 महीने में रिपोर्ट देने को कहा है. सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि अभी कमिटी की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाएगी. इन पुलिस अधिकारियों के कारण नंबी को मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ा था.
दरअसल, स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन बनाने में लगे नंबी नारायणन को 1994 में केरल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. उन पर तकनीक विदेशियों को बेचने का आरोप लगाया गया था. बाद में CBI जांच में पूरा मामला झूठा निकला था. सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में नारायणन को 50 लाख रुपए का मुआवजा भी दिया था.
1994 में लगा था जासूसी का आरोप
आपको बता दें कि साल 1994 में अखबारों की सुर्खियों में रहे जासूसी के मामले में आरोप था कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से जुड़े कुछ गोपनीय दस्तावेजों को दो वैज्ञानिकों और मालदीव की दो महिलाओं सहित चार अन्य ने दूसरे देशों को भेजा है. इस मामले में वैज्ञानिक नारायणन को गिरफ्तार किया गया था.
उस वक्त केरल में कांग्रेस की सरकार थी. वहीं, सीबीआई ने अपनी जांच में कहा था कि 1994 में केरल पुलिस के शीर्ष अधिकारी नारायणन की गैरकानूनी गिरफ्तारी के लिए जिम्मेदार थे.
SC ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला
नंबी नारायणन को गिरफ्तार किए जाने के की 24 साल बाद उन्हें इंसाफ मिला, इसे सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला कहा जा सकता है, जब SC ने 14 सितंबर, 2018 को ये माना था कि नारायणन के जीवन के अधिकार को गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया और यातनाएं दी गईं. उस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें आठ सप्ताह में मुआवजे का भुगतान करने का आदेश दिया था.
बिना किसी कारण रची गई साजिश
सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा था कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस साजिश के चलते राष्ट्रीय पहचान वाले वैज्ञानिक को अपमान का सामना करना पड़ा है. अदालत ने अपने फैसले में ये भी कहा है कि बिना किसी वजह उन्हें बदनाम किया गया है. नारायणन को फर्जी केस में फंसाया गया और पुलिस ने उन्हें हिरासत में रखा.
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