नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा में निजी क्षेत्र की नौकरियों में वहां के निवासियों को 75 प्रतिशत का आरक्षण दिये जाने के मामले में हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले को गुरुवार को दरकिनार कर दिया. हरियाणा में निजी क्षेत्र की नौकरियों में वहां के मूल निवासियों को 75 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने के राज्य सरकार के फैसले पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी, जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. 


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हरियाणा हाई कोर्ट का कहना था कि प्रथम दृष्टतया यह कानून असंवैधानिक है.


'हाई कोर्ट ने नहीं दिया पर्याप्त कारण'
जस्टिस एल नागेश्वर राव की अगुवाई वाली पीठ ने हाई कोर्ट के फैसले के दरकिनार करते हुए कहा कि हाई कोर्ट ने अपने आदेश के लिए पर्याप्त कारण नहीं दिए हैं. पीठ ने हाई कोर्ट की एक पंक्ति के आदेश पर भी सवाल उठाये और कहा कि क्या एक पंक्ति में सभी पहलू आ सकते हैं.


सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि इस मामले में हरियाणा सरकार की ओर से कर्मचारियों के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही कहा कि हाई कोर्ट को इस मामले को जल्द ही निपटाना चाहिए और इसमें चार सप्ताह से अधिक समय नहीं लगना चाहिए.


हाई कोर्ट ने सुनवाई के लिए मात्र 90 सेकंड दिएः हरियाणा सरकार 
हरियाणा सरकार की ओर से मामले की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि हाई कोर्ट ने सुनवाई के लिए मात्र 90 सेकंड दिये जो प्राकृतिक कानून के सिद्धांतों के खिलाफ है.


याचिकाकर्ता के वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि हरियाणा में 49,000 से अधिक कंपनियां पंजीकृत हैं. उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र में कोई आरक्षण नहीं होता है और ऐसे कानून को पारित करने का अधिकार सिर्फ संसद को है. उन्होंने दलील दी कि ऐसे आरक्षण को दिये जाने का कोई अध्ययन या आंकड़ा मौजूद नहीं है.


मनेसर इंडस्ट्रियल वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से मामले की पैरवी कर रहे वकील श्याम दीवान ने हाई कोर्ट के फैसले को खारिज न करने का आग्रह किया.


हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी स्पेशल लीव याचिका में कहा था कि हाईकोर्ट द्वारा पारित अंतरिम आदेश भावेश डी पारिश और भारत सरकार (2000), के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये आदेश और प्राकृतिक कानून के सिद्धांत के खिलाफ है.


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