नई दिल्लीः तमिलनाडु सरकार ने सोमवार को कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान राज्य में नहीं किया जाएगा, क्योंकि यह सामाजिक न्याय के आदर्शों के खिलाफ है. सरकार ने कहा कि राज्य मौजूदा आरक्षण नीति (69 प्रतिशत) को जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध है. 


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मौजूदा आरक्षण नीति को जारी रखेगी राज्य सरकार
विधानसभा पटल पर पेश राज्यपाल आर.एन.रवि के भाषण की प्रति के मुताबिक, ‘तमिलनाडु ने राज्य में सामाजिक न्याय और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के उन्नयन के लिए विशेष आरक्षण प्रणाली लागू की है. यह सरकार राज्य में मौजूदा आरक्षण नीति को जारी रखेगी, क्योंकि ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण सामाजिक न्याय के आदर्शों के खिलाफ है.’


सामाजिक रूप से पिछड़ों के विकास के लिए जारी होंगे 210 करोड़
बयान में कहा गया कि तमिलनाडु पिछड़ा वर्ग आर्थिक विकास निगम और तमिलनाडु अल्पसंख्यक आर्थिक विकास निगम के जरिये 210 करोड़ रुपये का ऋण मुहैया कराने के लिए कदम उठाए गए हैं, ताकि सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों का आर्थिक विकास हो सके.


सदन से वॉक आउट कर गए राज्यपाल
वहीं, तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) और राजभवन के बीच टकराव सोमवार को निचले स्तर पर पहुंच गया. सरकार ने राज्यपाल आर. एन. रवि पर विधानसभा में दिए अभिभाषण में कुछ अंशों को छोड़ने का आरोप लगाया. इसके कारण मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने इस बदलाव को खारिज करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया, जबकि रवि सदन से वॉकआउट कर गए, जो विधानसभा के इतिहास में संभवत: पहली बार हुआ है. 


सोशल मीडिया पर भी हुई तीखी बहस
सदन में यह पूरा नाटकीय घटनाक्रम जल्द सोशल मीडिया पर सत्तारूढ़ द्रमुक के समर्थकों और आलोचकों के बीच गर्मागर्म बहस में तब्दील हो गया. यहां तक कि ट्विटर पर ‘हैशटैग गेटआउट रवि’ ट्रेंड करने लगा और कई लोग रवि को राज्यपाल के पद से हटाने की मांग करने लगे. हालांकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तमिलनाडु इकाई ने रवि का समर्थन किया और इसे ‘अपमानजनक एवं अविवेकपूर्ण’ करार दिया. 


वहीं, स्टालिन ने राज्यपाल की मौजूदगी में उनके खिलाफ एक प्रस्ताव पेश किया. 


(इनपुटः भाषा)


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