नई दिल्ली: भगवान राम और शिव के प्रति अपनी अटूट आस्था से बेशर्म छेड़छाड़ आप आंख बंदकर मंजूर कर लेंगे? उन्हें घटिया मनोरंजन का बिकाऊ माल बनाकर बाजार में बेहिचक बेचने की इजाजत दे देंगे? सनातन की सहिष्णुता और उदारता का मखौल उड़ाने और उसे देशविरोधी एजेंडे का हथियार बनाने की शातिर चालबाजी को चुपचाप नजरअंदाज करते रहेंगे?


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ये सवाल आपके सामने इसलिये तनकर खड़े हैं, क्योंकि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर सनातन विरोधी गैंग 'तांडव' (Tandav) जैसी वेब सीरीज बनाकर आपको ही परोसने में जुटा है. वो भी इस यकीन के साथ कि आप सबकुछ समझकर भी नासमझ बने रहेंगे. सदियों पुरानी अपनी सनातन संस्कृति में सेंधमारी की साजिश को बर्दाश्त करते रहेंगे.



जरा सा गौर करते ही आप समझ जाएंगे कि वेब सीरीज 'तांडव' दरअसल टुकड़े-टुकड़े गैंग की देशविरोधी साजिशों का वो एकजुट सिनेमाई वर्जन है, जिसे लोकतंत्र और संविधान का हवाला देकर अराजकता के अलग-अलग आंदोलनों में आजमाया गया.


इसमें शाहीनबाग (Shaheen Bagh) है, अराजकता की आजादी की मांग वाला होहल्ला भी है. सवर्ण बनाम दलित संघर्ष का खूनी उकसावा है. तो अन्नदाता आंदोलन में राष्ट्रविरोधी साजिश की घुसपैठ का कबूलनामा भी है.


और ये सबकुछ मजहबी मवाद के रिसाव को बुनियाद बना कर बेहद शातिराना अंदाज में रचा गया है, ताकि आस्था का चीरहरण करते हुए सनातन की सहिष्णु सोच पर ठठाकर हंसा जा सके.


'तांडव' पर बिना शर्त माफी भी ढोंग है!


अब हिन्दुस्तान ने 'तांडव' के खिलाफ तांडव की चेतावनी दे ही है और गुस्सा सड़कों पर दिखने लगा है, तो इस वेब सीरीज के मोहरे और प्यादों की नींद उड़ गई है. वो देश से बिना शर्त माफी मांगने का ढोंग कर रहे हैं कि 'तांडव में सबकुछ काल्पनिक है, इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है.'



और इस ढोंग में ताल ठोककर बोला गया सबसे बड़ा झूठ तो ये है कि 'तांडव बनाने के पीछे किसी की आस्था को चोट पहंचाने का इरादा तो कतई नहीं था.' अगर ऐसा है तो तांडव में भगवान शिव का माखौल उड़ाने वाले किरदार में मोहम्मद जीशान अय्यूब को ही क्यों फिट किया गया?


इस किरदार के लिये खासतौर से जीशान अय्यूब (Zeeshan Ayyub) को चुनने के पीछे क्या उनका अभिनय पैमाना था? या फिर टुकड़े-टुकड़े गैंग को समर्थन देने वाली जीशान अय्यूब की छवि थी, जो हर अराजक आंदोलन में अपनी मौजूदगी जताने के लिये पहली कतार में नजर आती थी.


क्या वेब सीरीज 'तांडव' को पेश करने वाले लोग इस बात को नकार सकते हैं कि जीशान अय्यूब की इसी छवि को भुनाने के लिये उन्हें जानबूझकर शिवशंकर का किरदार दिया गया?


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वेब सीरीज के कर्ताधर्ता क्या इस बात से इनकार कर सकते हैं कि तांडव में दिल्ली के जेएनयू हंगामे को एक खास सियासी सोच से परोसा गया? क्या उसी सियासी मकसद के तहत तांडव में 'वीएनयू' यानी विवेकानंद यूनिवर्सिटी का नाम नहीं रखा गया?


स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand)और हिन्दुस्तान को एकजुट रखने का उनका राष्ट्रवाद 'लाल लंगोटधारी गैंग' की साजिश में आड़े आता है. क्या ये चिढ़ तांडव के 'वीएनयू' वाली सोच में नहीं झलकती है?


नई पीढ़ी के दिलोदिमाग में 'जहर' बोने का साजिश


तांडव के डायलॉग बताते हैं कि कैसे इसके जरिये सवर्ण और दलितों के बीच दुश्मनी की लकीर और लंबी करने का इरादा है. डॉयलॉग तो आपने सुना ही होगा कि 'जब एक छोटी जात का आदमी एक ऊंची जात की औरत से रेप करता है ना, तो वो बदला ले रहा होता है सदियों के अत्याचारों का.'



ऐसे डायलॉग के जरिये 'तांडव' के रचनाकार नई पीढ़ी के दिलोदिमाग में किस तरह का जहर बोना चाह रहे हैं, ये कोई भी संवेदनशील हिन्दुस्तानी समझ सकता है. तांडव के पहले एपिसोड को देखते हुए ऐसे कई सारे सवाल आपके मन में उठने लगेंगे. और उन सवालों का लब्बोलुआब यही निकलता है कि सनातन की सहिष्णुता को, सनातन की उदारता को, सनातन की सहृदयता, सनातन की विशालता को उसी के खिलाफ साजिशन इस्तेमाल करने का प्लॉट इस वेब सीरीज में बेहद शातिराना अंदाज में रचा गया है.


सनातन के खिलाफ साजिश पर 'तांडव'!


इसी खतरनाक इरादे को महसूस कर 'तांडव' पर तुरंत बैन की मांग हिन्दुस्तान में उठ रही है. इसे शातिर अंदाज में परोसने वालों की गिरफ्तारी की मांग तेज है.


उत्तर प्रदेश का लखनऊ (Lucknow) जैसा शहर हो या सीतापुर जैसा कस्बा, मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल हो या इंदौर, राजस्थान का शहर जयपुर हो या अजमेर...हर तरफ गुस्से की लहर दिख रही है. कहीं तांडव के पोस्टर पर कालिख मली जा रही है, तो कहीं उसे जूते से पीटा जा रहा है. कहीं उसे फाड़ा जा रहा है, तो कहीं उसे जलाकर अपना गुस्सा जताया जा रहा है.


और चेतावनी बेहद साफ है कि अगर तांडव पर बैन नहीं लगाया गया, तो सड़कों पर तांडव होगा.



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गुस्से में 'संत-समाज-सरकार'!


तांडव में सनातन आस्था से खिलवाड़ को लेकर संत समाज में रोष है. वो कह रहे हैं कि 'तांडव शब्द हमारे लिए पूजनीय है. सम्पूर्ण हिन्दू समाज को अपमानित करने के लिए ऐसा किया गया है. ऐसे लोगों को समझाने का वक्त अब जा चुका है, अब ये जहां भी मिलें, इन्हें चांटा लगाया जाए.'


तांडव को लेकर जनभावना में बढ़ते गुस्से को भांपकर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों ने इस पर बैन लगाने की हामी भर दी है.


मध्य प्रदेश के कैबिनेट मंत्री विश्वास सारंग ने केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर (Prakash Javadekar) को चिट्ठी लिखकर तांडव पर तुरंत बैन की मांग की है. कहा है कि सरकार बिना देर किये ओटीटी प्लेटफॉर्म को सेंसर कानून के दायरे में लाए.


बड़े एक्शन की तैयारी में सरकार!


तांडव वेब सीरीज पर मच रहे बवाल को देखते हुए केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय इसे दिखाने वाली कंपनी अमेजन प्राइम को पहले ही नोटिस भेज चुकी है. उसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने सोमवार को कंसल्टिंग कमेटी की बैठक बुलाई. माना जा रहा है कि सरकार वेबसीरीज और OTT प्लेटफॉर्म को कानून के दायरे में लाने का बड़ा फैसला कर चुकी है. और इस पर जल्द बड़ा एक्शन दिख सकता है.


और ये जरूरी भी है. आखिर अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में किसी की आस्था को चोट पहुंचाने का शातिर खेल खेलने की इजाजत कैसे दी जा सकती है? हिन्दुस्तानी समाज को जाति-धर्म के नाम पर उकसाने और देश को बांटने की साजिश की अनदेखी कैसे की जा सकती है?


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