नई दिल्ली: कहते हैं दिल्ली का रास्ता लखनऊ होकर जाता है लेकिन जंग जब लखनऊ की हो तो यूपी सियासत अपना रास्ता खोज लेती है. इस बार लखनऊ का रास्ता पूर्वांचल से होकर गुजर रहा है. ये एक्सप्रेस वे 341 किमी का है और इसके जरिए टारगेट 350 सीटों का है. ऐसा हम क्यों कह रहे हैं आइए समझते हैं. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

पूर्वांचल एक्सप्रेस वे पर सियासी रेस शुरू
पूर्वांचल एक्सप्रेस वे पर क्रेडिट की लड़ाई इसके उद्घाटन के ठीक एक दिन बाद सड़क पर उतर आई . समाजवादी पार्टी ने अपना विजय संकल्प रथ पूर्वांचल एक्सप्रेस की तरफ मोड़ दिया, इतना ही नहीं अखिलेश यादव ने इस एक्सप्रेस का नामकरण भी कर दिया समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेस वे. इस दौरान नये पार्टनर ओ पी राजभर में अखिलेश के साथ नजर आए. 


164 सीटों का सियासी सफर
पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे 9 जिलों से गुजर रहा है लेकिन इसका असर पूरब के 28 जिलों पर पड़ेगा. जहां 164 के करीब विधानसभा सीटें हैं. पिछले 14 सालों के रिकॉर्ड को उठाकर देखें तो 2007 में पूर्ण बहुमत हासिल करने वाली BSP को इस इलाके से तकरीबन 100 सीटें मिली थीं. 


वहीं 2012 में स्पष्ट बहुमत पाने वाले SP की जीत मे भी पूर्वांचल का अहम रोल था. सपा को उस वक्त करीब 110 सीटें इस इलाके से मिली थीं. 


वहीं 2017 में BJP ने सियासी समीकरण पलटते हुए पूर्वांचल की लगभग 115 सीटें हासिल की थी जिसकी बदौलत वो सत्ता पर पहुंची थी. जबकि समाजवादी पार्टी को 17 सीटें हासिल हुई थी. बीएसपी के खाते पर भी 14 सीटे आई थी. 

ये भी पढ़ें- उत्तर प्रदेश के पुलिस लॉकअप में हटेंगे पानी के नल, जानें क्यों लेना पड़ा फैसला


एक्सप्रेस से हार जीत का टूटेगा मिथक ?
अब इसे संयोग कहें या सियासी मिथक कि यूपी में सरकारों को एक्सप्रेसवे बनाने का चुनावी फायदा नहीं मिला है एक्सप्रेस बना कर भी मायावती और अखिलेश यादव की सरकारें अगले चुनावों में ही सत्ता से हट गई थीं. नोएडा से आगरा तक यमुना एक्सप्रेस की शुरुआत मायावती के शासन काल में 2007 में शुरू हुई लेकिन उद्धाटन से पहले उनकी सत्ता चली गई.


फिर 2012 में उद्घाटन अखिलेश सरकार ने किया. अखिलेश सरकार ने आगरा से लखनऊ तक एक्सप्रेस वे का जाल बुना, इसे अपनी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश किया और चुनाव से पहले उसका उद्घाटन भी कर दिया लेकिन कुछ महीनों बाद चुनाव में सत्ता से बाहर हो गए . 


पूर्वांचल में विपक्ष के गढ़ को भेदने का प्लान
यूं तो 2014 से बीजेपी ने पूर्वांचल में खुद को काफी मजबूत कर लिया है लेकिन कुछ गढ़ ऐसे हैं जहां सपा और बसपा मजबूत रही है उनमें आजमगढ़, मऊ ,गाजीपुर , अंबेडकर नगर जैसे इलाके हैं. 2019 के आम चुनाव में इन संसदीय सीटों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. 


पूर्वांचल एक्सप्रेस वे विपक्ष के मजबूत गढ़ से होकर गुजर रहा है जहां बीजेपी इस एक्सप्रेस वे और अपने सियासी समीकरण से इसे भेदने की कोशिश में जुटी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह पूर्वांचल पर ही फोकस कर रहे हैं. कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट फिर सिद्धार्थनगर से पूर्वांचल में 9 मेडिकल कॉलेजों की सौगात को भी इसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है .  


बुंदेलखंड और गंगा एक्सप्रेस की भी मिलेगी सौगात
सिर्फ पूर्वांचल एक्सप्रेस वे ही नहीं बल्कि दो और एक्सप्रेस वे के जरिए बीजेपी 2022 को साधने की कोशिश कर रही है. उनमें हैं गंगा एक्सप्रेस-वे जो मेरठ को प्रयागराज से जोड़ती है. इसकी कुल लंबाई 594 किलोमीटर होगी. 


इसमें मेरठ, हापुड़, बुलंदशहर, अमरोहा, संभल, बदायूं, शाहजहांपुर, हरदोई, उन्नाव, रायबरेली, प्रतापगढ़ और प्रयागराज जिले कवर होंगे. 


दूसरा एक्सप्रेस वे है 296 किलोमीटर लंबी बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे जो चित्रकूट, बांदा, महोबा, हमीरपुर, जालौन, औरैया और इटावा को आपस में जोड़ेगी. इन एक्सप्रेस वे का जिक्र पीएम मोदी ने पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के उद्घाटन में भी किया. बीजेपी का दावा है कि 2022 से पहले इन एक्सप्रेस वे का काम भी पूरा हो जाएगा.

ये भी पढ़ें- सपा के चार विधायक भाजपा में शामिल, यूं चुनाव में होगा अखिलेश यादव को नुकसान

Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.