नई दिल्ली: कोरोना वैक्सीन को हलाल और हराम के मकड़जाल में फंसाने की कोशिश हो रही है. कहा जा रहा है कि वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल किया गया है, लिहाजा वो किसी भी सूरत में हलाल नहीं हो सकती. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि युनाइटेड अरब अमीरात ने वैक्सीन को लेकर प्रोग्रेसिव नजरिया अख्तियार किया है. यूएई की सर्वोच्च इस्लामिक अथॉरिटी यूएई फतवा काउंसिल ने पोर्क जिलेटिन के बाद भी कोरोना वैक्सीन को हलाल करार दिया है.


मर्ज का इलाज मुमकिन, जहालत लाइलाज


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मर्ज का इलाज तो बहुतेरे हैं, लेकिन जहालत नाम की बीमारी पूरी दुनिया में लाइलाज है. मूर्खता के इलाज का नुस्खा ना किसी हकीम के पास है ना किसी वैद्य के पास और ना ही एडवांस्ड मेडिकल साइंस के पास. कोरोना (Corona) बीमारी ने पूरी दुनिया में कहर बरपा रखा है. पूरी धरती इस वायरस की चपेट में है. बीमारी की वजह से दुनिया भर की अर्थ-व्यवस्था चौपट हो गई है. लोगों की आजादी छिन गई है. आलम ये हो गया सारी दुनिया की ऊर्जा वैक्सीन (Vaccine) डेवलप करने में लग गई. हर आम-ओ-खास की जुबान पर यही सवाल चढ़ा रहा, वैक्सीन कब आएगी... वैक्सीन कब आएगी. अब जब वैक्सीन आई तो जहालत, बेवकूफी, अज्ञानता आड़े आ गई.


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कमाल देखिए इस्लाम की सरजमीं पर इसका विरोध नहीं है. यूएई की सर्वोच्च इस्लामिक अथॉरिटी यूएई फतवा (Fatwa) काउंसिल ने इसे जायज ठहराया है. यूएई फतवा काउंसिल ने साफ-साफ कहा है कि पोर्क जिलेटिन के बावजूद कोरोना वैक्सीन हलाल है,जायज है.


यूएई फतवा काउंसिल के चेयरमैन शेख अब्दुल्ला बिन बय्या ने दो टूक कहा है- "पोर्क जिलेटिन के बावजूद कोरोना वायरस की वैक्सीन इस्लाम में हराम नहीं है क्योंकि फिलहाल इंसानी जिंदगी बचाने की जरूरत ज्यादा बड़ी है. पोर्क जिलेटिन को दवा माना जाता है भोजन नहीं. बहुत सारी वैक्सीन खतरनाक और जानलेवा वायरस से लड़ने में कारगर साबित हुई हैं."



इस्लामिक स्कॉलर्स वैक्सीन के पक्ष में


ऐसा नहीं है कि यूएई फतवा काउंसिल ने कोरोना वैक्सीन को हलाल बताने से पहले इस्लामिक स्कॉलर्स से मशविरा नहीं किया होगा. शरीयत की रौशनी में चीजों को समझा नहीं होगा. लेकिन सब के बावजूद जिंदगी कीमती है इसलिए काउंसिल इस नतीजे पर पहुंची कि वैक्सीनेशन जायज है. पूरी दुनिया के पढ़े लिखे लोग यही मानते हैं कि पोर्क जिलेटिन की मौजूदगी के बावजूद वैक्सीनेशन हलाल है.


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यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के एसोसिएट प्रोफेसर हारूनॉर राशिद का कहना है कि- "वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन के इस्तेमाल पर इस्लामिक विद्वानों की आम राय यही है कि शरीयत के मुताबिक ये हलाल है क्योंकि अगर इन वैक्सीन्स का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा तो बहुत ज्यादा नुकसान होगा."



इस्लामिक विद्वान वैक्सीनेशन के मुद्दे पर एक राय हैं. उन्हें कोरोना वैक्सीन से इस्लाम पर कतई खतरा नजर नहीं आ रहा. पर कट्टरपंथी मौलाना मानने को तैयार नहीं हैं. उन्हें तो अपने ही मजहब की तरक्की से तकरार है. अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त इस्लामिक इदारे अलग मगरिब इंस्टीट्यूट के एकैडमिक अफेयर्स के डीन रह चुके शेख डॉ. यासिर काधी भी अपनी कॉम्युनिटी के लोगों को समझा रहे हैं. मान जाओ, शरीयत वैक्सीन की मुखालफत नहीं करता है.


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शेख डॉ. यासिर काधी का कहना है कि "अगर जान बचाने के लिए वैक्सीन या दवा की जरूरत पेश आती है और उसका दूसरा कोई विकल्प नहीं है, ये दो शर्ते पूरी होती हैं तब ये हलाल है."



यूएई फतवा काउंसिल से लेकर दुनिया भर के इस्लामिक स्कॉलर कोरोना वैक्सीन को लेकर बिल्कुल एक राय रखते हैं. जिंदगी कीमती है और उसे बचाने के लिए वैक्सीन के इस्तेमाल में कोई दिक्कत नहीं है. पर उन्हें कौन समझाए जिनकी दुकानदारी कट्टरपंथ, चरमपंथ, जहालत के सहारे चलती है. सच्चाई के उजाले से वे नावाकिफ नहीं है लेकिन उनकी तो बस एक ही ख्वाहिश है अंधेरा कायम रहे.


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