जयंती विशेष: सावरकर की वीरता पर अब भी कोई सवाल है तो यहां आइए, खुल जाएंगी आंखें
पूर्व पीएम अटल जी ने अपने एक भाषण में वीर विनायक दामोदर सावरकर को कुछ इस तरह परिभाषित किया था, `सावरकर एक व्यक्ति नहीं हैं, एक विचार हैं. वो एक चिंगारी नहीं हैं, एक अंगार हैं. वो सीमित नहीं हैं, एक विस्तार हैं.`
नई दिल्ली: भारतीय संसद का सेंट्रल हॉल. 2014 में जब नरेंद्र मोदी पीएम बनकर संसद भवन पहुंचे तो उन्होंने सावरकर के चित्र पर सम्मान प्रकट किया. ऐसा करते हुए वह अनायास ही महात्मा गांधी के चित्र की ओर पीठ कर गए.
यह हो जाना सिर्फ संयोग ही है, क्योंकि सावरकर और गांधी के चित्र संसद में आमने-सामने लगे हैं. यह इस देश की राजनीतिक सच्चाई है कि आप गांधी और सावरकर को एक साथ नहीं अपना सकते और यह भी सच है कि किसी एक को छोड़ा भी नहीं जा सकता.
सावरकर पर क्यों लगते हैं प्रश्नचिह्न
सावरकर की वीरता पर राजनीतिक रुख के कारण चंद लोग भले ही प्रश्नचिह्नन लगाते रहें, लेकिन आधुनिक भारत के नजरिए और उसकी बनावट में उनके उस योगदान को नहीं भुलाया जा सकता,
जिसका जिक्र कभी किया नहीं गया या फिर इतिहास के किताबों से वे पन्ने बड़े ही शातिराना अंदाज में गायब कर दिए गए. उनके बारे में कहा भी गया तो ऐसे कि बस जल्दी से कह लो कोई सुन न सके.
28 मई 1883 में जन्में सावरकर
28 मई 1883 में महाराष्ट्र (उस समय के 'बॉम्बे प्रेसीडेंसी') के नासिक जिले के एक गांव 'भागुर' में जन्में सावरकर राष्ट्रवाद के सबसे बड़े नायक के तौर पर जाने जाते हैं. वो भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की पहली पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे, जिन्हें स्वातंत्र्यवीर, वीर सावरकर के नाम से पुकारा जाता है.
पूर्व पीएम अटल जी ने अपने एक भाषण में वीर विनायक दामोदर सावरकर को कुछ इस तरह परिभाषित किया था, 'सावरकर एक व्यक्ति नहीं हैं, एक विचार हैं. वो एक चिंगारी नहीं हैं, एक अंगार हैं. वो सीमित नहीं हैं, एक विस्तार हैं.'
हिंद स्वराज पुस्तक की प्रेरणा बने सावरकर
जीवन को छोटे में कहते चलें तो सावरकर ने पुणे (Pune) के फर्ग्यूसन कॉलेज से कला स्नातक (बीए) किया था. 1906 में वे बैरिस्टर बनने के लिए लंदन (London) चले गए. इसके बाद ही 1909 में लंदन में गांधी और सावरकर के बीच हुई एक मुलाकात बाद में हिंद स्वराज पुस्तक के लिखने की वजह बनीं.
गांधी इस मुलाकात के बारे में बहुत बाद में खुद लिखते हैं कि लंदन में मैं कई क्रांतिकारियों से मिला, इसमें मुझे दो भाइयों के विचारों ने बहुत प्रभावित किया. गांधी की यह टिप्पणी बेशक सावरकर बंधुओं के लिए ही थी.
आधुनिक भारत के निर्माता सावरकर
प्रख्यात ब्रिटिश-भारतीय अर्थशास्त्री लॉर्ड मेघनाद देसाई लिखते हैं कि जब नेहरू आजाद भारत के प्रधानमंत्री बनें तो यह समय उनके लिए आसान नहीं था. विश्व के बराबर भारत को खड़ा करने की चुनौती, सबसे बड़ी थी. तो नेहरू ने इस चुनौती का सामना कैसे किया?
आश्चर्य जनक ढंग से इस सवाल का जवाब वीर सावरकर ही मिलेगा. आजादी के बाद वाले भारत में पं. नेहरू ने सावरकर का दिखाया रास्ता अपनाया और गांधी (महात्मा) को भी परे रखते हुए यूरोपीय तौर-तरीकों के साथ आधुनिक भारत का निर्माण किया.
महात्मा गांधी से अलग नेहरू
महात्मा गांधी जिस तरह के भारत का सपना देख रहे थे वह नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक आधार पर ही बन सकता था, जबकि नेहरू के तर्क इससे बिल्कुल अलग और विपरीत थे. नए भारत में वह वैज्ञानिक और राजनीतिक खासियतें भी शामिल करना चाहते थे, लेकिन गांधी हमेशा इसे लेकर घबराते रहे कि कहीं इस लिहाज में नया भारत सिर्फ पश्चिम का अंधा अनुसरण न करने लगे.
एक सवाल की साजिश
लेकिन, इन सबको परे रखकर वामपंथी टीम ने सावरकर के बारे में कालापानी की सजा से 'माफीनामा' मसले को कुछ अधिक ही भुनाया. बिना यह बताए कि आखिर क्या वजह रही होंगी कि वीर सावरकर को अंग्रेजों ने इस तरह की सजा के लिए चुना होगा.
इसी काला पानी के कई अन्य कैदी या तो शहीद घोषित हुए या फिर क्रांतिकारी. जब सावरकर यहां से निकलते हैं तो उनके साथ सवालिया निशान भी बाहर आता है. सवाल भी यह कि सावरकर वीर क्यों? जबकि इसका जवाब खुद महात्मा गांधी भी कई बार दे चुके हैं.
Giuseppe Mazzini, जिनसे प्रेरित थे सावरकर
एक सवाल यह भी कि, गांधी और नेहरू के लिए प्रेरणा बनने वाले, सावरकर किससे प्रेरित थे. वीर सावरकर की रचनाओं में शुमार है एक अनुवादित कृति. उन्होंने इटली के महान नेता माजिनी से प्रभावित होकर उनकी आत्मकथा का मराठी में अनुवाद किया था.
इस अनुवाद ने ही भारत में पहली बार और प्रारंभिक तौर पर लोगों में राष्ट्रवाद की भावना पनपने की प्रेरणा दी. इसे लिखते हुए सावरकर इटली की उन दशाओं का वर्णन करते हैं जो भारत से मिलती-जुलती हैं. दरअसल माजिनी को इटली के एकीकरण के लिए जाना जाता है. इसी एकीकरण के साथ राष्ट्रवाद शब्द का जन्म होता है. यही राष्ट्रवाद भारत की पहचान बना.
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