नई दिल्लीः Pandit Jawaharlal Nehru: इस साल देश में 18वीं लोकसभा का चुनाव है. इसे देखते हुए सभी पार्टियां अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गई हैं. भारत में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर अभी तक 14 शख्सियतों को बैठने का मौका मिल चुका है. इनमें पहले प्रधानमंत्री के तौर पर पंडित जवाहर नेहरू को यह मौका मिला. पंडित नेहरू से जुड़ा एक किस्सा आपको हैरान कर सकता है और वह किस्सा है प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने का. आइए जानते हैं, क्या है ये किस्सा. 


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1957 में दूसरी बार PM बने थे नेहरू
साल 1957 में दूसरे लोकसभा चुनाव के बाद देश में फिर से कांग्रेस की सरकार बनी थी और पंडित नेहरू दूसरी बार अप्रैल में PM पद की शपथ लिए थे. इसके एक साल बाद 29 अप्रैल 1958 को कांग्रेस संसदीय दल की बैठक बुलाई गई थी. इसी बैठक में नेहरू ने पीएम पद से इस्तीफा देने की अपनी इच्छा जाहिर की थी. इस बात का जिक्र लाल बहादुर शास्त्री की बायोग्राफी लिखने वाले सीपी श्रीवास्तव अपनी किताब अ लाइफ ऑफ ट्रूथ इन पॉलिटिक्स में करते हैं. 


हिमालय जाने का किया था फैसला 
सीपी श्रीवास्तव लिखते हैं कि नेहरू जब दूसरी बार प्रधानमंत्री बनते हैं, तो उन्होंने सोचा कि अब किसी दूसरे को प्रधानमंत्री बनने का मौका दिया जाए. तब कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में उन्होंने कहा था कि मेरे राजनीतिक जीवन के 40 साल बेमिसाल रहे हैं. लेकिन अब मैं अपनी इस जिम्मेदारी से मुक्ति पाना चाहता हूं. मैं चाहता हूं कि अब कोई दूसरा व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री बने. मैंने अब हिमालय जाने का मन बना लिया है. 


राष्ट्रपति को सौंप दिया था इस्तीफा
सीपी श्रीवास्तव बताते हैं कि नेहरू ने बकायदा हिमालय जाने का पूरा प्लान बना लिया था. उन्होंने इसके लिए टिकट भी बुक करा लिया था. और तो और कांग्रेस संसदीय दल को बताने से पहले नेहरू ने अपना इस्तीफा तक राष्ट्रपति को सौंप दिया था. तब देश के राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद हुआ करते थे. इस बात की पुष्टि करते हुए कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा था कि उस दौरान नेहरू छह महीने के लिए अपनी प्रिय जगह हिमालय जाना चाहते थे. 


CWC ने इस्तीफा कर दिया था अस्वीकार 
हालांकि, कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने उनके इस्तीफे को अस्वीकार दिया था और कांग्रेस नेताओं ने लगातार उनपर दबाव बनाना शुरू कर दिया था कि देश आपको ही चलाना पड़ेगा. अंत में जब नेहरू की एक न चली तो उन्होंने अपना इस्तीफा वापस ले लिया. तब तक यह खबर आग के तरह पूरे विश्व में फैल गई थी. बाद में इस्तीफा वापस लेने की वजह से नेहरू को विदेशों से बधाईयां भी मिली थीं. 


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