नई दिल्लीः भारत के इसरो ने अपने चंद्रयान मिशन की सफल लैंडिंग करा ली है. दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला भारत दुनिया का पहला देश है. भारत की इस सफलता से कुछ ही दिन पहले रूस को तब असफलता मिली, जब उसके लूना 25 मिशन ने पास ही के क्षेत्र पर उतरने की कोशिश की, लेकिन वह चंद्रमा की सतह से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया. ये दोनों मिशन हमें याद दिलाते हैं कि चंद्रमा पर ‘‘सॉफ्ट लैंडिंग’’ की पहली सफलता के करीब 60 साल बाद अंतरिक्षयान मिशन अब भी मुश्किल एवं खतरनाक हैं. 


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चंद्रमा क्यों है सबसे खास
चंद्रमा एकमात्र खगोलीय स्थान है जहां (अब तक) मनुष्य गए हैं. दरअसल, यह धरती से करीब किलोमीटर की दूरी पर स्थित हमारा सबसे निकटतम ग्रहीय पिंड है. इसके बावजूद अभी तक मात्र चार देश ही चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कर पाए हैं. सबसे पहले पूर्व सोवियत संघ ने यह सफलता हासिल की थी. लूना 9 मिशन लगभग 60 साल पहले फरवरी 1966 में चंद्रमा पर सुरक्षित रूप से उतरा था. अमेरिका ने कुछ महीनों बाद जून 1996 में ‘सर्वेयर 1’ मिशन के जरिए सफलता हासिल की. इसके बाद चीन 2013 में ‘चांग’ई 3’ मिशन की सफलता के साथ इस समूह में शामिल हो गया और अब भारत भी चंद्रयान-3 के साथ चांद पर पहुंच गया है. 


इन देशों को मिली असफलता
जापान, संयुक्त अरब अमीरात, इजराइल, रूस, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, लक्जमबर्ग, दक्षिण कोरिया और इटली के मिशन असफल रहे. दुर्घटनाग्रस्त होना असामान्य बात नहीं है रूस की अंतरिक्ष एजेंसी ‘रॉसकॉसमॉस’ ने 19 अगस्त, 2023 को घोषण की कि ‘‘लूना 25 अंतरिक्ष यान के साथ संपर्क बाधित’’ हुआ है. इसके बाद 20 अगस्त को यान से संपर्क करने के प्रयास असफल रहे. रॉसकॉसमॉस को बाद में पता चला कि लूना 25 दुर्घटनाग्रस्त हो गया है. 


इजराइल का बेरेशीट लैंडर भी अप्रैल, 2019 में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और इसी साल सितंबर में भारत ने चंद्रमा की सतह पर अपना लैंडर ‘विक्रम’ भेजा था, लेकिन वह उतरते समय दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. नासा ने बाद में अपने ‘लूनर रीकानसन्स ऑर्बिटर’ द्वारा ली गई एक तस्वीर जारी की जिसमें विक्रम लैंडर का मलबा कई किलोमीटर तक फैले लगभग दो दर्जन स्थानों पर बिखरा हुआ नजर आ रहा था. 


क्यों जोखिम भरा है अंतरिक्ष
अंतरिक्ष मिशन एक जोखिम भरा काम है. केवल 50 प्रतिशत से अधिक चंद्र मिशन सफल होते हैं. यहां तक कि पृथ्वी की कक्षा में छोटे उपग्रह मिशन भी शत-प्रतिशत सफल नहीं होते. उनकी सफलता दर 40 प्रतिशत से 70 प्रतिशत के बीच है. हम मानव रहित मिशन की तुलना मानव युक्त मिशन से कर सकते हैं: लगभग 98 प्रतिशत मानव युक्त मिशन सफल होते हैं, क्योंकि अंतरिक्ष यात्रियों से युक्त मिशन की मदद के लिए पृथ्वी पर काम करने वाले वैज्ञानिक अधिक ध्यान केंद्रित करके काम करेंगे, उनके लिए प्रबंधन अधिक संसाधनों का निवेश करेगा और उनकी सुरक्षा की प्राथमिकता के मद्देनजर देरी को स्वीकार किया जाएगा.


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