क्यों पोर्ट ब्लेयर का नाम बदला गया? जानें श्री विजयपुरम नाम रखने की वजह
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर `श्री विजयपुरम` कर दिया गया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसकी जानकारी दी. जानिए क्यों पोर्ट ब्लेयर का नाम बदला गया.
नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर 'श्री विजयपुरम' रखने का ऐलान किया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि 'श्री विजयपुरम' नाम हमारे स्वाधीनता के संघर्ष और इसमें अंडमान और निकोबार के योगदान को दर्शाता है. चोल साम्राज्य में नौसेना अड्डे की भूमिका निभाने वाला यह द्वीप आज देश की सुरक्षा और विकास को गति देने के लिए तैयार है.
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह द्वीप नेताजी सुभाष चंद्र बोस, वीर सावरकर और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा मां भारती की स्वाधीनता के लिए संघर्ष का स्थान भी रहा है.
गुलामी के सभी प्रतीकों से मुक्ति दिलाने की कोशिश
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "देश को गुलामी के सभी प्रतीकों से मुक्ति दिलाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्प से प्रेरित होकर आज गृह मंत्रालय ने पोर्ट ब्लेयर का नाम 'श्री विजयपुरम' करने का निर्णय लिया है. 'श्री विजयपुरम' नाम हमारे स्वाधीनता के संघर्ष और इसमें अंडमान और निकोबार के योगदान को दर्शाता है."
इस द्वीप का स्वाधीनता और इतिहास में अद्वितीय स्थान
अमित शाह ने आगे लिखा, "इस द्वीप का हमारे देश की स्वाधीनता और इतिहास में अद्वितीय स्थान रहा है. चोल साम्राज्य में नौसेना अड्डे की भूमिका निभाने वाला यह द्वीप आज देश की सुरक्षा और विकास को गति देने के लिए तैयार है. यह द्वीप नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी द्वारा सबसे पहले तिरंगा फहराने से लेकर सेलुलर जेल में वीर सावरकर व अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा मां भारती की स्वाधीनता के लिए संघर्ष का स्थान भी है."
पोर्ट ब्लेयर, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की राजधानी है. यह दक्षिण अंडमान द्वीप के पूर्वी तट पर स्थित है. इसे अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है.
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर सेलुलर जेल थी. इसका नाम 'काला पानी की सजा' के तौर पर काफी प्रसिद्ध रहा. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में एक ब्रिटिश औपनिवेशिक जेल थी. इस जेल का इस्तेमाल भारत की ब्रिटिश सरकार अपराधियों और राजनीतिक कैदियों को निर्वासित करने के उद्देश्य से करती थी.
1906 में अंग्रेजों द्वारा निर्मित यह तीन मंजिला जेल स्वतंत्रता सेनानियों के लिए एक तीर्थ स्थल रही थी. इसे राष्ट्रीय स्मारक के रूप में बदल दिया गया है. यहां स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों की गाथा लेजर एंड साउंड शो के जरिए दिखाया जाता है.
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