नई दिल्ली: क्या आपसे कभी दफ्तर में किसी साथी ने चाय बनाने को कहा है? सैमसंग कंपनी द्वारा हाल ही में करवाए गए एक सर्वे में सामने आया है कि अगर आप एक महिला हैं तो आपके साथ ऐसा होने का रिस्क तीन गुना ज्यादा है. यह सर्वे यूनाइटेड किंगडम में करीब 2000 कर्मचारियों पर किया गया है. 


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सर्वे के मुताबिक दफ्तर में महिला कर्मचारियों को मुख्य काम के अलावा कई अन्य भी काम करने पड़ते हैं जैसे अन्य सहयोगियों के लिए गिफ्ट की व्यवस्था करना, सहयोगियों के लिए पार्टी ऑर्गेनाइज करने की जम्मेदारी संभालना. यह भी कहा गया कि अगर कोई महिला यह काम करने से मना कर दे तो उसके बाद भी यह जिम्मेदारी किसी दूसरी महिला कर्मचारी को ही उठानी पड़ती है. 


कौन सा 'डर'?
सर्वे में सामने आया है कि 'डर' की वजह से महिलाएं दफ्तर में ऐसे काम करती हैं जिसकी उन्हें सैलरी नहीं मिलती. यानी यह काम अनपेड लेबर की तरह होता है. सर्वे के मुताबिक महिलाओं को लगता है कि अगर उन्होंने यह काम नहीं किए तो अन्य महिला सहकर्मी इसे करेंगी. इसी डर की वजह से महिलाएं ऐसे कामों को मना नहीं करती, साथ ही अपनी अनिच्छा भी नहीं जाहिर करती हैं. इस तरह से अपनी बातें न कहने, अपनी भावनाओं का इजहार न करने और दूसरों के दबाव में काम करने को 'इमोशनल लेबर' यानी 'भावनात्मक श्रम' कहा जाता है. 


किस समाजशास्त्री ने दिया था यह कॉन्सेप्ट
द कंवर्सेनशन पर प्रकाशित एक लेख के मुताबिक अमेरिकी समाजशास्त्री आर्ली होशील्ड ने पहली बार 1983 में इमोशनल लेबर का कॉन्सेप्ट दिया था. हालांकि तब इस टर्म का जेंडर से कोई लेना-देना नहीं था. लेकिन अब हालिया सर्वे के आधार पर इस टर्म को महिलाओं के साथ जोड़ा जा रहा है. 


क्यों महिलाओं पर होता है दबाव?
लेख में कहा गया है- काबिलियत और सहानुभूति के मामले में स्त्री और पुरुष लगभग बराबर होते हैं. लेकिन सहानुभूति प्रदर्शित करने के मामले में स्त्री और पुरुषों का तरीका अलग होता है. महिलाएं समाज में अपने जेंडर पर आधारित रोल को निभाने के लिए ज्यादा सोचती हैं. साथ ही इसे निभाने में वो भी पीछे नहीं हटतीं. कई बार ऐसा वो अपने करियर में आगे बढ़ने के लिए भी करती हैं. लेख में इमोशनल लेबर से जुड़े कई पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की गई है.


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