क्या राजीव गांधी हत्याकांड के रहस्य से पर्दा उठना बाकी है?
किताबों में इतिहास को बदल देने की सत्तर सालों तक सत्तारूढ़ कांग्रेस ने कोशिश तो पूरी की है लेकिन इतिहास को बदलने में ये पार्टी कामयाब नहीं हो पाई. इतिहास की किताब में वो पन्ने भी सुरक्षित हैं जो अक्सर चीख-चीख कर सवाल करते हैं कि इतिहास के कुछ गुनहगारों को सजा कब होगी. क्या इतिहास की एक ये आवाज भी सुनी जानी चाहिये जिसमें वह राजीव गांधी हत्याकांड की दुबारा पूरी जांच की मांग कर रहा है ताकि पूर्व प्रधानमन्त्री को पूरा न्याय मिल सके ?
नई दिल्ली. आज है इक्कीस मई. लगभग तीस साल पहले आज ही भारत के छठे प्रधानमंत्री की हत्या की गई थी. लेकिन कांग्रेस एक ऐसा कुनबा है जहां कटटरपंथी सोच पूरी कट्टरता के साथ काम करती है और मजहब में अकल की दखल नहीं का व्यावहारिक मुजाहिरा इस पार्टी में भरपूर मिलता है. मुंह पर उंगली रख कर बिना कुछ कहे सिर्फ आंखे तरेर कर जब एक बार हाईकमान चुप करा देता है तो पार्टी के लोग जरखरीद गुलामों की तरह खामोश हो जाते हैं. और तब कोई भी मामला हो, चाहे कितना भी बड़ा और जघन्य क्यों न हो, उस पर हमेशा के लिये पर्दा डाल दिया जाता है और न कोई सवाल होता है न कोई जवाब मिलता है.
क्या हुआ था उन्तीस साल पहले
उन्तीस साल पहले 21 मई 1991 को भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी का कत्ल कर दिया गया था तमिलनाडु में. तमिलनाडु के श्रीपेरंबदुर की एक चुनावी सभा को राजीव गांधी सम्बोधित करने गये थे, उस समय हुए आत्मघाती बम विस्फोट में राजीव गांधी वाले जनसभा मंच के चीथड़े उड़ गए थे. लेकिन इस हत्या का सच ठीक उसी तरह साफ़-साफ़ सामने नहीं आ सका जिस तरह उनसे पहले मारी गई भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का सच भी पूरी तरह साफ़ हो कर सामने नहीं आ सका है. राजीव गांधी की हत्या के भयंकर षडयन्त्र को ओपन एन्ड शट केस क्यों बना दिया गया?
सवाल क्यों लाजवाब हैं ?
राजीव गांधी की हत्या की चूंकि पूरी जांच ही नहीं की गई इसलिए इस हत्या का पूरा सच भी कभी सामने नहीं आ पाया है. इतिहास इस हत्या को लेकर सवाल कर रहा है और उसके सवाल लाजवाब हैं. एक नहीं अनेकों सवाल ऐसे हैं जिनको जवाब चाहिए. राजीव गांधी कांग्रेस पार्टी के ही नेता नहीं थे या देश के एक गणमान्य नागरिक ही नहीं थे, अपितु देश के प्रधानमंत्री भी थे. अतएव उनकी इस क्रूरतापूर्ण हत्या से जुड़े तथ्यों की जांच होनी चाहिए और छुपे सवालों के खुले जवाब सामने आने चाहिए.
जीके मूपनार से पूछताछ क्यों नहीं हुई?
जीके मूपनार वह नाम है जिससे इस हत्याकांड के लिए सबसे पहले और सबसे ज्यादा पूछताछ होनी चाहिए थी. लेकिन कांग्रेस के इस बड़े नेता के साथ पूछताछ नहीं की गई. मूपनार वह नेता था जो चेन्नई एयरपोर्ट से इस जनसभा के स्थान तक राजीव गांधी के साथ था. कांग्रेस का यह स्थानीय नेता प्रदेश का सबसे बड़ा कांग्रेस नेता था जो पचास किलोमीटर लम्बी यात्रा में राजीव गांधी की कार में उनके साथ बैठा हुआ था और उनको जनसभा के स्थल तक ले गया था.
मंच पर जाने की बजाये दूर क्यों गए चले मूपनार?
जीके मूपनार पर सबसे पहले संदेह की उंगलियां उनकी इस हरकत से उठती हैं कि जब वे राजीव गांधी के साथ उनकी कार में बैठ कर जनसभा के स्थल तक पहुंचे तो वे उसके बाद राजीव गांधी के साथ मंच पर क्यों नहीं गए? राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे - इतनी कर्ट्सी तो बनती है और तरीका भी यही होता है कि उनकी कार में उनकी बगल में बैठ कर जनसभा स्थल पर पहुंचाने वाला बड़ा नेता उनके साथ मंच तक भी जाता. क्योंकि राजनीति की दुनिया में स्वाभाविक तौर पर हमेशा ऐसा ही होता है.
सुरक्षित दूरी पर खड़े हुए थे मूपनार
स्थानीय या प्रदेश का सबसे बड़ा नेता अपने क्षेत्र में होने वाले कार्यक्रम में प्रधानमंत्री अथवा किसी भी मुख्य/विशिष्ट अतिथि के साथ मंच शेयर करता है. जीके मूपनार प्रधानमंत्री के साथ मंच शेयर नहीं किया और बजाये इसके वे सिगरेट पीने के बहाने मंच से दूर चले गए. राजनीति की समझ रखने वाला हर व्यक्ति समझ सकता है कि यह मूपनार की कितनी अस्वाभाविक किस्म की गतिविधि थी. राजनीतिक रूप से इस तरह के घटनाक्रम के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता. इसके बाद हुई ऐतिहासिक घटना और मानवबम धनु ने मंच पर पहुँच कर अपनेआप को उड़ा लिया और राजीव गांधी सहित कुल पंद्रह लोग इस बम काण्ड में मारे गए. लेकिन मंच से दूर अर्थात सुरक्षित दूरी पर खड़े जीके मूपनार को खरोंच भी नहीं आई.
क्या टाइमिंग का सही हिसाब रखा गया था?
राजीव गांधी के मंच पर आने से लेकर उनकी हत्या के वक्त तक यदि समय की मोटे तौर पर गणना की जाए तो करीब छह मिनट होते हैं. करीब दस बज कर पंद्रह मिनट पर राजीव गांधी वहां पहुंचे और दस बज कर इक्कीस मिनट पर चंदन का हार लिए आत्मघातिनी धनु राजीव गांधी के पैर छूने के लिए झुकी तो एक कानों को बहरा कर देने वाला धमाका हुआ और उसके बाद जब धुआं छटा तो तेरह अन्य लोगों के साथ राजीव गांधी और उनके सुरक्षा अधिकारी पीके गुप्ता की लाशें पड़ी हुईं थीं. इन छह मिनट्स तक जीके मूपनार सिगरेट पीते रहे और सुरक्षित दूरी पर सुरक्षित रहे.
जयंती नटराजन से पूछताछ क्यों नहीं हुई?
जिस तरह से पूछताछ जीके मूपनार से नहीं हुई वैसे ही जयंती नटराजन से भी नहीं हुई. तमिलनाडु कांग्रेस के नंबर वन नेता थे मूपनार और नंबर टू थीं जयंती नटराजन. हैरानी होती है यह कल्पना करके कि देश का प्रधानमंत्री प्रदेश की रैली में आया है और प्रदेश का एक नेता उनके साथ मंच शेयर नहीं करता तो दूसरा भी उनको अकेला ही मंच पर भेज देता है. मूपनार और जयंती दोनो ही राजीव गांधी की अगवानी के लिये एयरपोर्ट गये थे. एक कार से मूपनार राजीव गांधी को लेकर एयरपोर्ट से चले थे और दूसरी कार में जयंती उनके साथ-साथ आईं थी. जयंती नटराजन ने भी वही किया जो मूपनार ने किया. मूपनार मंच पर नहीं गये और जयंती भी राजीव गांधी के साथ मंच पर नहीं गईं. क्या ऐसा हो सकता है? प्रदेश के दोनों सर्वोच्च नेता सुरक्षित दूरी पर थे और मंच पर थे राजीव गांधी अपने सुरक्षा अधिकारी के साथ. जयंती नटराजन तो सिगरेट नहीं पीतीं, फिर वे मंच पर क्यों नहीं गईं? उस समय वे क्या कर रही थीं ? उस समय राजीव गांधी के साथ मंच पर जाने से ज्यादा जरूरी किस काम में वे व्यस्त थीं?
राममूर्ति और एम चंद्रशेखर से भी पूछताछ क्यों नहीं हुई?
श्रीपेरंबदूर में उस भयंकर धमाके के समय तमिलनाडु कांग्रेस के तीनों चोटी के नेता जीके मूपनार, जयंती नटराजन और राममूर्ति वहां राजीव गांधी के साथ मौजूद थे लेकिन इन तीनों में से कोई भी मंच पर उनके साथ नहीं था. राममूर्ति मंच पर राजीव गांधी से भी पहले पहुंचे और राजीव गांधी के मंच पर आ जाने के बाद मंच पर नहीं रुके. सांसद मारगाथम चंद्रशेखर राममूर्ति के साथ उस बुलेट प्रूफ कार में सवार थे जिसमें मूपनार राजीव गांधी को लेकर वापस आ रहे थे. मारगाथम चंद्रशेखर के हाथ में इस चुनावी सभा की सारी जिम्मेदारी भी थी, उनको भी राजीव गांधी के साथ मंच पर नहीं देखा गया. मारगाथम और उनके साथ वहां आये उनके परिवार के सदस्य भी साफ तौर पर मंच से सुरक्षित दूरी पर थे और इनमें से किसी को भी खरोंच तक नहीं आई. यदि यह संयोग मात्र था तो भी इस कमाल के संयोग मात्र के इन प्रमुख किरदारों से किसी तरह की कोई पूछताछ क्यों नहीं हुई? यदि कांग्रेस ने पूछताछ की तो उपरोक्त सभी नेताओं से की गई वह पूछताछ सार्वजनिक क्यों नहीं की गई? देश के प्रधानमंत्री की इस जघन्य हत्या के समय घटनास्थल पर मौजूद इन महत्वपूर्ण लोगों से पूछताछ न करने या पूछताछ करने के बाद उसे सार्वजनिक न करने के पीछे क्या मंशा हो सकती है?