क्या धरती पर सचमुच `महाविनाश` की आशंका है?
साल 2020 में ऐसी कई प्राकृतिक घटनाएं सामने आ रही हैं, जो वास्तव में अजीबोगरीब हैं. रेगिस्तानों में बर्फबारी और बारिश हो रही है. सालों भर बर्फ में घिरे रहने वाले पहाड़ों पर घास दिखाई दे रही है. धरती के विशाल जंगल आग से तबाह हो रहे हैं. आखिर ये किस तरह के संकेत हैं. क्या महान भविष्यवक्ता `मिशेल द नास्त्रेदमस` ने इन्हीं लक्षणों को अपनी दिव्यदृष्टि से 500 साल पहले देखकर साल 2020 को महाविनाश का साल बताया था.
नई दिल्ली: हमारी प्यारी धरती माता शायद लगातार बढ़ती आबादी का बोझ सहते हुए थक गई है. जनसंख्या और उससे पैदा हुए प्रदूषण की वजह से पूरी दुनिया में ऐसी अजीब घटनाएं देखी जा रही हैं, जो पहले कभी नहीं देखी गई थीं. आखिर ये घटनाएं क्या संकेत दे रही हैं-
आग में झुलस गया 'दुनिया का फेफड़ा'
दुनिया के बड़े और विशाल जंगल जो लाखों वर्षों से हमारी दुनिया को ऑक्सीजन प्रदान कर रहे थे. पिछले कुछ समय से वो लगातार आग का शिकार हो रहे हैं.
इसकी शुरुआत अमेजन के जंगलों से हुई. दक्षिण अमेरिका के ये जंगल दुनिया का फेफड़ा(Lungs of earth) कहे जाते हैं. क्योंकि ये घने जंगल ऑक्सीजन पैदा करके दुनिया में कार्बन प्रदूषण को नियंत्रित रखने में अहम भूमिका अदा करते थे. लेकिन अब ये जंगल आग से तबाह हो चुके हैं.
अमेजन के वर्षावनों में लगी आग की घटनाओं में ब्राजील के रोराइमा में 141%, एक्रे में 138%, रोंडोनिया में 115% और अमेजोनास में 81% वृद्धि हुई है. जबकि दक्षिण में मोटो ग्रोसो डूो सूल में 114% बढ़ी हैं. अमेजन के जंगलों में लगी इस भीषण आग से निकलने वाले धुएं का असर दक्षिणी अमेरिका के 9 देशों में देखने को मिल रहा है.
नासा का कहना है कि ये धुआं अटलांटिक तटों तक फैल रहा है. यानी यह फैलकर 2800 वर्ग किमी क्षेत्रफल को घेर रहा है. आग से बड़ी मात्रा में कार्बन डाईऑक्साइड पैदा हो रही है. अमेजन की आग से अब तक 228 मेगाटन कार्बन डाईऑक्साइड पैदा हुई है. यह 2010 के बाद सबसे ज्यादा है. इसके अलावा जहरीली गैस कार्बन मोनो ऑक्साइड भी पैदा हो रही है. जो धरती पर जीवन के लिए बेहद घातक है.
दुबई जैसे रेगिस्तानी इलाके में बाढ़
पूरे साल सूखी और गर्म हवाओं का सामना करने वाले मध्य पूर्व के इलाके दुबई में भीषण बरसात की खबर है. ये कोई मामूली रिमझिम फुहारें नहीं बल्कि तबाही की बारिश हैं. जिसकी वजह से दुनिया के सबसे व्यस्ततम एयरपोर्ट दुबई के अल मकतूम इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पानी भर गया है. भारी बारिश के कारण विमानों के पहिए पानी में डूब गए हैं.
फ्लाइट्स रद्द होने से एयरपोर्ट पर सैकड़ो यात्री फंसे हुए हैं. यही नहीं दुबई की सड़कों पर भारी जलजमाव की वजह से यातायात ठप पड़ा हुआ है. चारो तरफ पानी भर चुका है.
ऑस्ट्रेलिया की आग पूरी दुनिया के लिए चिंता का सबब
ऑस्ट्रेलिया में दक्षिणी पूर्वी इलाके के दो जंगली क्षेत्र से आग शुरू हुई थी, जो देखते ही देखते 15 लाख एकड़ के क्षेत्र में फैल गई है. इससे अब तक तीन हजार से ज्यादा घर ध्वस्त हो गए हैं और 26 लोगों की जान गई है. एक अरब से ज्यादा जानवर मर गए और जो बचे हैं उनके खाने के लिए पेड़ पौधे ही नहीं हैं.
ये आग कितनी भयावह है, इसका अंदाज़ा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि इस आग से अब तक 1 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जलकर राख हो चुका है. ये इतना बड़ा महाविनाश है, जिसकी तुलना किसी और विनाश से की ही नहीं जा सकती है.
ऑस्ट्रेलिया के वनों में लगी आग से 600,000 से 700,000 जीव जंतुओं की दुर्लभ प्रजातियां या तो नष्ट हो गई या नष्ट होने की कगार पर हैं.
हिमालय के बर्फीले क्षेत्रों में घास
जहां मिडिल ईस्ट के रेगिस्तान बारिश में डूब गए हैं, वहीं दुनिया के सबसे ठंडे स्थानों में से एक हिमालय के शिखर धीरे धीरे गर्म होते जा रहे हैं. दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट के आसपास के इलाके में गर्मी बढ़ने का असर देखा जा रहा है.
एवरेस्ट के आसपास और कभी पूरी तरह से बर्फ से ढके रहने वाले हिमालय के बर्फीले इलाकों में घास और झाड़ियां पनप रही हैं. ब्रिटेन की एक्सटर विश्वविद्यालय के अध्ययन में यह बात सामने आई है.
इस विश्वविद्यालय के ग्लोबल चेंज बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में सामने आया है कि हिमालय में कुछ इलाके ऐसे हैं जहां पर किसी भी प्रकार की वनस्पति पैदा नहीं होती थी और साल में कोई ऐसा वक्त नहीं होता था जब यहां पर बर्फ न हो. लेकिन यहां अब घास फूस और छोटी झाड़ियां दिखाई दे रही हैं.
ये ग्लोबल वार्मिग की तरफ इशारा करता बेहद खतरनाक संकेत है. क्योंकि पहाड़ों पर गर्मी बढ़ने का मतलब है समुद्रों का जलस्तर में बढ़ोत्तरी का होना. इसकी वजह से धरती पर जीवन संकट में पड़ जाएगा.
रेगिस्तानों में बर्फबारी
इसे प्रकृति का प्रकोप कहें या विनाश के संकेत कि सऊदी अरब जैसे सूखे और रेगिस्तानी इलाकों में रेत के मैदानों पर बर्फ दिख रही है. सऊदी अरब के उत्तरी हिस्से ताबुक में भारी बर्फ़बारी होने की खबर है. ये बर्फ़बारी 10 जनवरी शुक्रवार सुबह से शुरू हुई.
अरब मीडिया ने बताया कि बर्फ़ से जबल अल-लावज़, अल-दाहेर और अल्क़ान पर्वत ढंक गए हैं. इन इलाकों में तापमान शून्य से नीचे चला गया है. लेकिन बर्फबारी मात्र इन पहाड़ों तक सीमित नहीं है. बल्कि सउदी अरब के आम तौर पर गर्म रहने वाले रेगिस्तानों पर भी इसका असर दिखाई दे रहा है. जहां बर्फीले मैदानों पर बर्फ की चादर दिखाई दे रही है.
सउदी प्रशासन ने लोगों को इस मौसम को लेकर सतर्क किया है. मौसम विभाग ने ताबुक, मदीना और उत्तरी सीमावर्ती इलाक़े में भारी बारिश की भी चेतावनी दी है.
ये हाल सिर्फ सऊदी अरब का ही नहीं बल्कि पूरे मध्य-पूर्व में भारी बर्फ़बारी हो रही है. गल्फ़ न्यूज़ के अनुसार बुधवार को लेबनान के नैबतियेह प्रांत में भारी बर्फ़बारी से तीन लोगों की मौत हो गई है. लेबनान के पश्चिमी इलाक़े के सारे पहाड़ बर्फ़ से ढँक गए है. ईरान, फ़लस्तीनी इलाक़े, लेबनान और जॉर्डन में भी भारी बर्फ़बारी हुई है. वेस्ट बैंक में रामल्लाह की सड़कें बर्फ़ से बंद हो गई है.
नास्त्रेदमस ने भी दिया है विनाश का संकेत
दुनिया के सबसे विख्यात भविष्यवेत्ता 'मिशेल द नास्त्रेदमस' ने अपनी मशहूर किताब सेंचुरीज में इन घटनाओं के संकेत दिए हैं. उन्होंने कहा है कि साल 2020 का साल बदलाव का होगा. इस दौरान कई ऐसे बदलाव देखने को मिलेंगे. जो मानव आबादी के लिए विनाशकारी साबित होंगे.
नास्त्रेदमस अपनी अनसुलझी और काव्यात्मक भविष्यवाणियों के लिए मशहूर थे. उन्होंने साल 2020 के लिए लिखा है कि-
'एक समय ऐसा भी आएगा कि विश्वव्यापी आग से अधिकांश राष्ट्रों में नरसंहार होगा...' यह समय तब आएगा जब मेष, वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या और मंगल बृहस्पति तथा सूर्य के प्रभाव में होंगे. तब धरती जलने लगेगी, जंगल और शहर यूं तबाह होंगे जैसे मोमबत्ती पर लिखे अक्षर.'(सेंचुरी 6-35)
नास्त्रेदमस ने जिन खगोलीय संकेतों का उल्लेख किया है, वह बेहद नजदीक हैं. इस तरह के आकाशीय संकेत 22 फरवरी 2020 और फिर 28 मई 2021 में घटित होंगे.
ग्रहण की भरमार
वैसे तो आम तौर पर चांद या सूर्य को ग्रहण लगना मात्र एक खगोलीय घटना मानी जाती है. लेकिन ज्योतिषीय मान्यताओं के मुताबिक ग्रहण का संबंध विनाश से भी लगाया जाता है. इतिहास में ऐसा देखा गया है कि समय के जिस हिस्से में ग्रहण की संख्या ज्यादा हो जाता है, उस समय कई विनाश की घटनाएं होती हैं.
इस साल 6 ग्रहण लग रहे हैं. पिछले साल यानी 2019 का अंत भी ग्रहण के साथ ही हुआ था.
साल 2019 के आखिर में 26 दिसंबर को सूर्यग्रहण लगा था.
10 जनवरी को चंद्रग्रहण लगा
5 जून को चंद्रग्रहण
21 जून को सूर्यग्रहण
5 जुलाई को चंद्रग्रहण
30 नवंबर को चंद्रग्रहण
14 दिसंबर को सूर्यग्रहण
इस साल ग्रहण का ज्यादा लगना क्या विनाश का संकेत दे रहा है?
आप भले ही ज्योतिष और भविष्यवाणियों को नहीं मानते हों. लेकिन दुनिया के अलग अलग हिस्सों में प्रकृति जिस तरह के अपना विचित्र रुप दिखा रही है. वह सचमुच डराने वाला है. क्या वास्तव में ये किसी बड़ी तबाही या विनाशलीला शुरु होने का संकेत है?