वक्त आ गया है, अब भारतीय सेना को चाहिए नया रूप (भाग-3)
भारतीय सेना का शौर्य और पराक्रम जगजाहिर है. आज भारत में 1962 का दुर्बल और विलासी नेतृत्व नहीं है, सौभाग्य से आज कर्मयोगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व देश को प्राप्त है जिनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि है और जो चुनौतियों से समझौता करना नहीं पसंद करते अपितु संघर्ष करके उन पर विजय पाना पसंद करते हैं. आज देश की सेना को देश की जनता और देश के नेतृत्व का पूरा समर्थन है अतएव भारत की सेना आज सशक्त है और इसीलिए भारत भी आज सशक्त है..
नई दिल्ली. एक 1962 का युद्ध छोड़ दें तो भारत ने लगातार तीन युद्ध (1967, 1971, 1999) जीते हैं. भारत युद्ध से नहीं डरता और इस तथ्य से अब विश्व भी परिचित हो चुका है. इसका श्रेय भी वर्तमान राष्ट्र-स्वाभिमानप्रिय प्रधानमंत्री मोदी को जाता है जिन्होंने पुरानी सरकारों की तरह भारत के सबसे बड़े शत्रु चीन से दब कर चलना नहीं सीखा है. और इस बात ने चीन को भी हैरान किया है. अब समय आ गया है कि हम जय हिन्द की सेना के स्तर को श्रेष्ठतर करें.
सेना का पूरा साथ देना होगा सरकार को
सरकार तो सेना के साथ है ही, अब सरकार को सेना का विशेष साथ देना होगा. सेना के जवान गर्वित अनुभव कर सकें इसके लिए उन्हें इस तरह भी मान देना होगा. देश की रक्षा के लिए सेना के हर परामर्श को सरकार गंभीरता से ले. सेना में सुधार और सेना की आवश्यकताओं को लेकर सेना की हर सलाह पर सरकार विचार करे और उन्हें यथासम्भव समर्थन दे. सेना के रखरखाव को विश्वस्तरीय बनाया जाए और सबसे जरूरी बात ये कि सैन्य बजट को बढ़ाया जाए इस बढ़े हुए व्यय के हिस्से की आपूर्ति देश की विलासिता वाले गैरजरूरी खर्चे में कमी करके की जाए.
सेना के मान का अंतर्राष्ट्रीय ध्यान रखा जाए
जिन देशों के साथ युद्ध में हमारे वीर जवानों ने अपने प्राणों का उत्सर्ग किया है, भारत सरकार को उन देशों से मेल-मिलाप नहीं रखना चाहिए. देश का एक बेटा दुश्मन से लड़कर अपनी जान दे दे और दूसरा बेटा उनसे जा कर हाथ मिलाये - यह अमानवीय अपमान है सेना का. आम भाषा में या बलिदानी परिवार की दृष्टि से देखा जाये तो ये सीधे तौर पर गद्दारी है. यदि देश की सरकार इस विचार पर गौर कर सके, तो यह सेना के मनोबल को बढ़ाने का एक सराहनीय कदम होगा.
पूर्व-सैनिकों को पुनः अवसर
सेना छोड़ चुके जवानों को एक निश्चित आयु-सीमा के भीतर फिर मौक़ा दिया जाए क्योंकि वे प्रशिक्षण पहले ही प्राप्त कर चुके हैं इस कारण उन्हें प्रशिक्षण की विशेष आवश्यकता नहीं होगी. उनकी वापसी पर भले ही उनके वेतन और सेवा की अवधि कम रखी जाए किन्तु वे नए रंगरूटों के मुकाबले सेना के अधिक काम आएंगे क्योंकि उन्हें सेना का पूर्व-अनुभव प्राप्त है.
ये भी पढ़ें. वक्त आ गया है, अब भारतीय सेना को चाहिए नया रूप (भाग-2)