नई दिल्ली: पंजाब के कई गांव ऐसे हैं जहां किसी भी परिवार में कोई पुरुष नहीं बचा है, इन गांवों में जितने भी घर हैं उसमें रहने वाले सभी पुरुष कर्ज़ की वजह से आत्महत्या कर चुके हैं और अब लोग इन्हें विधवाओं का गांव कहने लगे हैं. जब हमें इन गांवों के बारे में पता चला तो हमने Zee मीडिया की रिपोर्टिंग टीम को इन गांवों में भेजा और आज हमारे रिपोर्टर ने उन गांवों में जाकर क्या देखा? आपको सिलसिलेवार तरीके से बताते हैं.


पंजाब में विधवाओं का गांव


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

ये बहुत अफसोस की बात है कि जिस पंजाब में आधी राजनीति के लिए किसानों के कंधे का सहारा है. वो किसान नेताओं के लिए सिर्फ और सिर्फ एक मात्र वोटबैंक हैं. जिस चौखट पर कभी गेहूं और धान की कटी हुई फसल बरकत का इशारा लाया करती थी, उस चौखट पर अब उदासी भरी सांझ रहती है. आपको एक-एक करके आपको इस गांव के दर्द से रूबरू करवाते हैं.


मानसा का कोट धर्मु गांव


ज़ी मीडिया की टीम पंजाब के मानसा पहुंची, जहां के कोट धर्मु गांव में किसान नाज़र सिंह का घर है. अब नाज़र सिंह की सिर्फ यादें बाकी हैं, जिस पेड़ के नीचे नाज़र सिंह ने कभी अपने बेटे राम सिंह को किसानी के गुर सिखाए थे. पहले नाज़र सिंह ने उसी पेड़ पर फांसी लगाकर जान दे दी और फिर इसी साल उनके बेटे राम सिंह ने भी सलफास की गोलियां खा ली. दोनों पीढ़ियां सिर्फ इसलिए खत्म हो गईं क्योंकि इस परिवार ने किसानी करने के लिए जो 4 लाख रुपये का कर्ज़ लिया था, ये परिवार उसे चुकाने की स्थिति में नहीं था.



नाज़र सिंह की पत्नी की नजरें अब एक टक उसी पेड़ को देखती रहती हैं, जिस पर लटक कर नाज़र सिंह ने अपनी जान दी थी. ये वाकया 1 सितंबर 2011 का है और आज भी नाज़र सिंह की पत्नी और बेटी उस दिन को याद करके रुआंसी हो उठती हैं. 4 लाख रुपये के कर्ज़ ने पहले पिता को आत्म हत्या के लिए मजबूर किया, घर का एक हिस्सा बेचने के बाद भी परिवार दो ढाई लाख रुपये ही जुटा पाया. नाज़र सिंह के बेटे राम सिंह ने अपने पिता की कर्ज़ की किस्ते चुकाने की भरसक कोशिश की. लेकिन ब्याज़ बढ़ता गया, मूलधन वहीं का वहीं रहा और राम सिंह ने भी उसी दहलीज़ पर जान दे दी. जिससे वो और उनके पिता खुशियों के अंदर आने का इंतज़ार ताउम्र करते रहे.


हर घर की यही कहानी


कोटधर्मु गांव में ये सिसकियां किसी एक घर की कहानी नहीं है. बल्कि एक एक करके इस गांव के ज्यादातर घरों के पुरुष कर्ज़ के बोझ के तले. आत्म हत्या कर चुके हैं. आपको एक और परिवार के बारे में बताते हैं. ज़ी मीडिया की टीम रंजीत सिंह नाम के किसान परिवार के घर पहुंची.


रंजीत सिंह का परिवार.. जिन्होंने किसानी के लिए कर्ज़ लिया था जो बढ़ते बढ़ते 11 लाख तक पहुंच गया ऊपर से बेटे की बीमारी ने परिवार को तोड़कर रख दिया और रंजीत ने एक दिन अपने खेत में ही जाकर फांसी लगा ली.


परिवार का कहना है कि खेती करने के तरीकों में आए बदलाव की वजह से रंजीत सिंह को अपनी फसल पर दो से तीन गुना ज्यादा निवेश करना पड़ रहा था. यानी लागत ज्यादा थी और मुनाफा कम.. ऐसे में कर्ज़ कम होने की बजाय बढ़ता गया,


भम्मा गांव के किसानों का दर्द


ज़ी मीडिया के रिपोर्टर ने आगे बढ़ते हुए और पड़ताल शुरू की. कुछ ही दूरी पर भम्मा गांव के किसान गुरप्यार सिंह के परिवार में भी अब कोई भी पुरुष नहीं बचा है. अब इस घर में सिर्फ गुरप्यार की पत्नी परमजीत कौर और उनकी दो बेटियां रहती हैं. इस परिवार को भी कर्ज़ की दीमक खा गई और अब अकेली परमीज इस कर्ज से भी छुटकारा पाना चाहती हैं और अपनी बेटियों के भविष्य को भी सुरक्षित करना चाहती है.


अपने साथ हुए हादसे के बारे में बताते हुए गांव भम्मा की रहने वाली परमजीत कौर बताती हैं कि कई साल पहले उसके पति गुरप्यार सिंह ने 11 लाख के कर्ज के दबाव के कारण आत्महत्या कर ली थी और कुछ महीने पहले इस परिवार के आखिरी सहारे 15 साल के उनके बेटे गुरनैब सिंह की एक दर्द नाक सड़क हादसे में मृत्यु हो गई.


परमजीत कहती हैं कि मेरे बेटा ही इस परिवार की आखिरी उम्मीद था जो अब खत्म हो गयी। मेरे पति ने खेती के लिए ही कर्ज़ लिया था लेकिन फसल खराब हो गई और तब हम धान की फसल पर निर्भर होगये उसे भी बेमौसम बारिश नष्ट कर दिया. अपने पति की मौत को याद करते हुए परमजीत कहती हैं की मेरे पति मुझसे बिना कुछ कहे घर से निकल गए और अगली खबर जो मैंने सुनी वो मेरे पति की मौत की थी. मैं और मेरी बेटियां अभी तक उस सदमे से उबर नही पाएय


किसान बेटे ने कर्ज के चलते दे दी जान


जब ज़ी मीडिया की टीम पंजाब में विधवाओं के गावों से ये रिपोर्टिंग कर रही थी, तभी हमारे रिपोर्टर की मुलाकात राजविंदर कौर के परिवार से हुई, इस परिवार का किसान बेटा भी कर्ज़ की वजह अपनी जान दे चुका था. फांसी लगाने वाले जसवीर सिंह युवा थे, उनकी आंखों में अपने और अपने परिवार के लिए कई सपने थे. लेकिन कर्ज़ के बोझ ने उनकी एक एक सांस को बोझिल कर दिया था.


जसवीर के पिता अपने बेटे के जाने का गम भुला नहीं सके थे और हाल ही में उनकी भी मृत्यु हो गई. ऐसा नहीं है कि किसानों की आत्महत्याओं को रोकने की कोशिशें नहीं हो रही है, लेकिन मदद के अभाव में ये काम बहुत आसान भी नहीं है.


किसानों को आत्महत्या करने से रोको सरकार


पंजाब का मालवा.. अब किसानों की आत्महत्या के लिए पूरे देश में बदनाम हो रहा है. मानसा के कोठधर्मु गांव में 4000 हज़ार वोटर्स रहते हैं लेकिन इनके बीच करीब 20 से 25 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. आरोप ये भी है कि कई बार किसानों को कपास जैसी फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम कीमत पर बेचने पर मजबूर किया जाता है. इसके अलावा मौसम की मार और लचर सरकारी व्यवस्थाएं कई बार किसानों के लिए आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ती.


आत्महत्या करने वाले किसानों को मुआवज़ा देने के लिए भी कई योजनाए बनाई गईं लेकिन ज्यादातर योजनाएं कागज़ों से नीचे नहीं उतर पातीं. भारत को एक कृषि प्रधान देश कहा जाता है, लेकिन भारत के किसान जिस तरह से  कर्ज़ के बोझ की वजह से अपनी जान दे रहे उसे देखकर लगता नहीं है कि हमारे देश के सिस्टम और राजनैतिक पार्टियों ने किसानों को कभी वोट से ज्यादा कुछ समझा है.


देश और दुनिया की हर एक खबर अलग नजरिए के साथ और लाइव टीवी होगा आपकी मुट्ठी में. डाउनलोड करिए ज़ी हिंदुस्तान ऐप, जो आपको हर हलचल से खबरदार रखेगा... नीचे के लिंक्स पर क्लिक करके डाउनलोड करें-


Android Link - https://play.google.com/store/apps/details?id=com.zeenews.hindustan&hl=en_IN


iOS (Apple) Link - https://apps.apple.com/mm/app/zee-hindustan/id1527717234